सलीमा टेटे भारतीय महिला हॉकी टीम की एक बेहतरीन मिडफील्डर हैं, जिनकी कहानी प्रेरणा और संघर्ष का प्रतीक है। उनका जन्म 26 दिसंबर 2001 को झारखंड के सिमडेगा जिले के बड़की चापर गांव में हुआ। यह इलाका आदिवासी संस्कृति और खेल प्रतिभा के लिए जाना जाता है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से बेहद पिछड़ा है। सलीमा एक आदिवासी परिवार से हैं, जहां संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने अपने खेल कौशल और मेहनत के दम पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
सलीमा का बचपन चुनौतियों से भरा था। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, और उनकी मां भी परिवार की आजीविका के लिए छोटे-मोटे काम करती हैं। सीमित साधनों के बावजूद, सलीमा ने अपने खेल को कभी प्रभावित नहीं होने दिया। बचपन से ही हॉकी में उनकी रुचि थी, और उन्होंने बांस की बनी हॉकी स्टिक से खेलना शुरू किया। उनके गांव में हॉकी एक लोकप्रिय खेल है, लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण खिलाड़ियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
खेल करियर की शुरुआत
सलीमा की प्रतिभा को पहली बार उनके कोच फाल्गुनी सिंह ने पहचाना, जिन्होंने उनकी कड़ी मेहनत और लगन को निखारने में मदद की। उन्होंने झारखंड की जूनियर हॉकी टीम में शामिल होकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। साल 2016 में, सलीमा ने भारतीय जूनियर टीम के लिए खेलना शुरू किया और जल्द ही सीनियर टीम में अपनी जगह बना ली।
अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन और उपलब्धियां
सलीमा टेटे ने 2017 में एशिया कप के दौरान भारतीय टीम का हिस्सा बनकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इसके बाद, उन्होंने 2018 में ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना में आयोजित यूथ ओलंपिक गेम्स में भारतीय महिला टीम की कप्तानी की। यह टीम सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रचने में सफल रही।
2021 में, सलीमा ने टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए खेलते हुए अपनी बेहतरीन मिडफील्डिंग का प्रदर्शन किया। भले ही भारत को कांस्य पदक से चूकना पड़ा, लेकिन टीम के प्रदर्शन ने लाखों दिल जीते। सलीमा के खेल की गति, पासिंग और आक्रमण करने की क्षमता ने उन्हें टीम के सबसे प्रभावशाली खिलाड़ियों में से एक बना दिया।
2023 में आयोजित महिला हॉकी एशिया कप में, सलीमा ने भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने न केवल अपने शानदार खेल से टीम का मनोबल बढ़ाया, बल्कि युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा भी बनीं।
सामाजिक प्रभाव
सलीमा टेटे झारखंड की आदिवासी लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल हैं। उन्होंने दिखाया कि सीमित संसाधनों के बावजूद, कड़ी मेहनत और समर्पण से बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। वह अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार, कोच और झारखंड की हॉकी संस्कृति को देती हैं।
सम्मान और पुरस्कार
सलीमा को कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। झारखंड सरकार ने उन्हें विशेष पुरस्कारों से नवाजा है। उनकी प्रेरणादायक यात्रा को देखते हुए, सलीमा टेटे को भारतीय हॉकी के भविष्य का चमकता सितारा कहा जा सकता है।
सलीमा टेटे की कहानी केवल एक खिलाड़ी की नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, मेहनत और सफलता की गाथा है। उन्होंने आदिवासी समुदाय से आने वाले युवा खिलाड़ियों के लिए नए रास्ते खोले हैं। भारतीय हॉकी में उनका योगदान न केवल खेल के स्तर पर, बल्कि सामाजिक जागरूकता और प्रेरणा के रूप में भी अनमोल है।