झारखंड की राजधानी रांची स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम अब बदलकर “वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय” कर दिया गया है। यह निर्णय 9 मई 2025 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट बैठक में लिया गया। राज्य सरकार के इस निर्णय को झारखंड की जनजातीय अस्मिता, इतिहास और संस्कृति के सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पूर्व में रांची कॉलेज के नाम से जाना जाने वाला यह संस्थान 2017 में रघुवर दास सरकार द्वारा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय नाम से स्थापित किया गया था। इस नाम परिवर्तन को लेकर उस समय ही विरोध के स्वर उठने लगे थे। विशेषकर आदिवासी छात्र संगठनों ने इसे झारखंड की मूलवासी-आदिवासी अस्मिता पर हमला बताया था। छात्रों ने परिसर में प्रदर्शन किया, विश्वविद्यालय के गेट पर ताले जड़े और सरकार से नाम पुनर्विचार की मांग की।
इन विरोधों के बीच वीर बुधु भगत के नाम पर विश्वविद्यालय का नाम रखने की मांग निरंतर उठती रही। जनजातीय संगठनों और स्थानीय समाज ने यह तर्क दिया कि एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी को विश्वविद्यालय का नाम समर्पित किया जाना चाहिए, जो इस भूमि की आत्मा और संघर्ष की पहचान हैं।
वीर बुधु भगत: झारखंड का गौरव
वीर बुधु भगत उरांव जनजाति से ताल्लुक रखते थे और झारखंड के रांची जिले के सिलागाई गांव में 17 फरवरी 1792 को जन्मे थे। 1831-32 के कोल विद्रोह (जिसे लरका आंदोलन भी कहा जाता है) के नेतृत्वकर्ता के रूप में वे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनजातीय प्रतिरोध के अग्रदूत बने।
बुधु भगत ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर ब्रिटिश सेना और उनके स्थानीय जमींदार सहयोगियों को करारा जवाब दिया। उनका आंदोलन सिर्फ राजनीतिक नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक दमन के खिलाफ भी था। उनके नेतृत्व में हजारों आदिवासी योद्धा संगठित हुए और जंगलों में लड़ाई लड़ी। 13 फरवरी 1832 को ब्रिटिश सैनिकों के साथ संघर्ष में बुधु भगत अपने दो पुत्रों हलधर और गिरधर के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी शहादत आज भी झारखंड के जनमानस में वीरता और संघर्ष की प्रतीक है।
सरकार का निर्णय और प्रतिक्रियाएं
कैबिनेट द्वारा नाम परिवर्तन की स्वीकृति के बाद राज्यभर में आदिवासी समाज और छात्रों ने खुशी जाहिर की। आदिवासी छात्र संघ (TSU) ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय परिसर में ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक गीतों के साथ जश्न मनाया। यह फैसला उन संघर्षों का परिणाम माना गया जो लंबे समय से झारखंड की भूमि में आदिवासी नायकों को पहचान दिलाने के लिए चल रहे थे।
हालांकि, इस निर्णय का विरोध भी हुआ है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (ABRSM) और कुछ राजनीतिक दलों ने इस फैसले को “राजनीतिक लाभ” के लिए किया गया कदम बताया और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे राष्ट्रनिर्माता के नाम को हटाए जाने पर आपत्ति जताई।
सांस्कृतिक पुनर्स्थापन की दिशा में पहल
यह नाम परिवर्तन केवल एक संस्थान के नाम का बदलाव नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मृति को पुनर्स्थापित करने का एक बड़ा प्रयास है। यह निर्णय राज्य के उन जनजातीय नायकों को सम्मान देने की प्रक्रिया का हिस्सा है, जिनका योगदान अब तक भारतीय इतिहास के मुख्य विमर्शों में हाशिये पर रहा है।
वर्तमान सरकार की यह पहल झारखंड की जड़ों से जुड़ने, युवाओं को अपने नायकों से परिचित कराने और जनजातीय चेतना को मजबूती देने की दिशा में एक सार्थक कदम माना जा रहा है।
“वीर शहीद बुधु भगत विश्वविद्यालय” का गठन केवल एक नामकरण नहीं, बल्कि झारखंड के आत्म-सम्मान, इतिहास और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की घोषणा है। यह निर्णय उस संघर्ष का प्रतिफल है जो वर्षों से आदिवासी समुदाय अपनी पहचान और विरासत की रक्षा के लिए कर रहा है। यह कदम आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा कि वे अपने नायकों को जाने, समझें और उनसे प्रेरणा लें।