झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने हाल ही में आयोजित चंगाई महोत्सव पर कड़ा बयान देते हुए कहा कि धर्मांतरण के बाद कोई व्यक्ति खुद को ‘कैथोलिक आदिवासी’ नहीं कह सकता। उन्होंने इसे संविधान और आदिवासी पहचान दोनों के खिलाफ बताया।
चंपई सोरेन ने कहा, “आज एक नया शब्द सुना – कैथोलिक आदिवासी! कोई इन्हें बताए कि या तो आप कैथोलिक हो सकते हैं या फिर आदिवासी। दोनों एक साथ होना संभव नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुसार आदिवासी अनुसूचित जनजाति में आते हैं, जबकि ईसाई अल्पसंख्यक वर्ग में।”
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2024 के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन करने के साथ ही व्यक्ति अनुसूचित जाति या जनजाति की संवैधानिक पहचान खो देता है क्योंकि ईसाई धर्म में जातिगत व्यवस्था नहीं होती।
चंपई ने आदिवासी जीवनशैली की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा, “हम पेड़ के नीचे पूजा करने वाले लोग हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे संस्कार पाहन, पड़हा राजा, मानकी मुंडा और मांझी परगना करवाते हैं। जबकि धर्म परिवर्तन के बाद चर्च और पादरी के माध्यम से ईसाई रीति-रिवाज़ अपनाए जाते हैं। वहाँ क्या मरांग बुरु या सिंग बोंगा की पूजा होती है?”
उन्होंने साफ कहा कि जिन्हें भी ईसाई धर्म स्वीकार करना है, वे करें — “हमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन हम यह सुनिश्चित करेंगे कि भारतीय संविधान द्वारा आदिवासी समाज को मिले आरक्षण के अधिकार में धर्मांतरित लोग अतिक्रमण ना कर सकें।”
अपने बयान के अंत में उन्होंने आदिवासियों को जागरूक होने की अपील करते हुए कहा — “जागो आदिवासियों, जागो!”
यह बयान राज्य की राजनीति और विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों से संबंधित आरक्षण की बहस को और तेज कर सकता है।