झारखंड कम्युनिकेटर वर्कशॉप का समापन, कॉमन्स रिपोर्टिंग पर हुई चर्चा

रांची: असर कॉमन्स ग्राउंड द्वारा आयोजित दो दिवसीय झारखंड कम्युनिकेटर वर्कशॉप का समापन बीएनआर चाणक्य, रांची में हुआ। इस वर्कशॉप का उद्देश्य कॉमन्स (सार्वजनिक संसाधन) से संबंधित रिपोर्टिंग को समझना और पत्रकारों को इस क्षेत्र में अधिक प्रभावी बनाने पर केंद्रित था।

दो दिवसीय इस कार्यशाला में 92 कम्यूनिकेटर्स, जिनमें पत्रकार, सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर्स, विजुअल स्टोरीटेलर्स और स्वतंत्र पत्रकार शामिल थे, ने भाग लिया।
झारखंड के सभी 24 जिलों के 45 ब्लॉक से आए प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला में हिस्सा लिया। इस दौरान आदिवासी लेखकों और चित्रकारों ने पत्रकारों को कॉमन्स पर आधारित रिपोर्टिंग के प्रभावी तरीकों से अवगत कराया। कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन, कृषि, भूमि उपयोग और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में कॉमन्स की भूमिका पर गहन चर्चा की गई।

विशेष अतिथियों की उपस्थिति

27 फरवरी को आयोजित सत्र में झारखंड ग्रामीण एवं पंचायत विकास मंत्री दीपिका पांडेय, आईएफएस अधिकारी रवि रंजन और संजीव कुमार बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। उन्होंने पत्रकारों और प्रतिभागियों को कॉमन्स रिपोर्टिंग के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दी।

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री, श्रीमती दीपिका पांडे ने अपने कीनोट एड्रेस में कहा, “पर्यावरण संरक्षण केवल एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक संकल्प है। सरकार झारखंड को अधिक हरित और समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।”

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झारखंड के एडिशनल पीसीसीएफ श्री रवि रंजन (IFS) और जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री संजीव कुमार (IFS) ने भी कार्यशाला को संबोधित किया। उन्होंने पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने, जैव विविधता संरक्षण और समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।

पर्यावरणविद् चामी मुर्मू ने अपने संघर्ष और जंगल संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका पर प्रकाश डाला।

दूसरे दिन का सत्र

दूसरे दिन प्रतिभागियों के ग्रुप प्रेजेंटेशन कराए गए, जहां उन्होंने कॉमन्स से जुड़ी रिपोर्टिंग पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके अलावा, रिपोर्टिंग स्कॉलरशिप और स्टोरीटेलिंग तकनीकों पर भी चर्चा की गई, जिससे युवा पत्रकारों को इस क्षेत्र में शोध और लेखन के नए आयामों को समझने का अवसर मिला।

पूर्व आईएएस अधिकारी श्री एन.एन. सिन्हा ने ‘कॉमन्स पर नीति निर्माताओं की भागीदारी’ सत्र में प्रभावशाली स्टोरीटेलिंग के लिए सरकारी संसाधनों के उपयोग पर चर्चा की।

कार्यशाला में निम्नलिखित मुद्दों पर विशेष सत्र आयोजित किए गए:

कॉमन्स पर रिपोर्टिंग: ग्रामीण रिपोर्टिंग की चुनौतियाँ और समाधान

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डेटा-आधारित पत्रकारिता: तकनीक और डेटा का उपयोग

स्थानीय दृष्टिकोण और राष्ट्रीय सुर्खियाँ: ग्राउंड रिपोर्टिंग का महत्व

डिजिटल मीडिया रणनीतियाँ: सोशल मीडिया और मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म का प्रभावी उपयोग

कॉमन्स क्या हैं?

कॉमन्स (Commons) सार्वजनिक संसाधनों को संदर्भित करता है, जिनका उपयोग पूरे समुदाय द्वारा किया जाता है। इनमें जंगल, चरागाह, जल स्रोत और अन्य प्राकृतिक संसाधन शामिल होते हैं। ये संसाधन किसी एक व्यक्ति की संपत्ति नहीं होते बल्कि पूरे समुदाय द्वारा साझा किए जाते हैं और सामूहिक रूप से इनका प्रबंधन किया जाता है।

भारत में 20.5 करोड़ एकड़ कॉमन्स भूमि मौजूद है, जो अमेरिका के क्षेत्रफल के बराबर है। ये संसाधन विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराते हैं, जैसे—भोजन, जलावन, चारा आदि। हालांकि, इन संसाधनों के अत्यधिक उपयोग और अव्यवस्थित प्रबंधन के कारण जलवायु परिवर्तन, सामाजिक असमानता और ग्रामीण संकट जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

आदिवासी समुदायों में कॉमन्स का महत्व

आदिवासी समुदायों में कॉमन्स संसाधनों का पारंपरिक रूप से सामूहिक प्रबंधन किया जाता रहा है। यह प्रणाली न केवल स्थानीय संसाधनों के सतत उपयोग में सहायक है, बल्कि यह जमीनी स्तर के लोकतंत्र को भी सशक्त बनाती है।

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1998 के एनएसएसओ (NSSO) सर्वेक्षण में कॉमन्स संसाधनों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया:

  1. कानूनी स्वामित्व वाले संसाधन: गांव की सीमा के भीतर मौजूद वे संसाधन, जिनका औपचारिक स्वामित्व ग्राम पंचायत या समुदाय के पास होता है।
  2. वास्तविक स्वामित्व वाले संसाधन: ऐसे संसाधन, जिनका उपयोग तो ग्रामीण समुदाय द्वारा किया जाता है, लेकिन उन पर उनका कानूनी स्वामित्व नहीं होता। इनमें राजस्व भूमि, वन भूमि और परंपरागत रूप से इस्तेमाल की जाने वाली निजी भूमि शामिल हो सकती हैं।

झारखंड कम्युनिकेटर वर्कशॉप ने स्थानीय पत्रकारों, शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को कॉमन्स रिपोर्टिंग के महत्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराया। इस आयोजन से यह स्पष्ट हुआ कि सार्वजनिक संसाधनों का संरक्षण और न्यायसंगत उपयोग केवल सरकारी नीतियों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक है।

(रिपोर्ट: FirstPeople.in)

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