बांग्लादेश-म्यांमार सीमा क्षेत्र जातीय, धार्मिक और राजनीतिक तनाव का केंद्र रहा है। अराकान आर्मी (जो म्यांमार के रखाइन राज्य में बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है) ने इन जटिल संघर्षों को उजागर किया है। बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ ऐतिहासिक हिंसा और वर्तमान उग्रवाद की संभावनाएं इस स्थिति को और गंभीर बनाती हैं।
अराकान आर्मी और सीमा पर तनाव
अराकान आर्मी, 2009 में स्थापित, म्यांमार के रखाइन बौद्ध समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई थी। 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद यह संगठन एक सशक्त शक्ति के रूप में उभरा। बांग्लादेश सीमा के पास कई इलाकों पर इसका नियंत्रण है, जहां यह म्यांमार की सेना और रोहिंग्या संगठनों जैसे अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (ARSA) के साथ संघर्ष कर रही है।
अराकान आर्मी ने बांग्लादेश पर बौद्धों और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाया है। उनका दावा है कि बांग्लादेश समर्थित रोहिंग्या उग्रवादी समूह इन अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। बांग्लादेश इन आरोपों से इनकार करता है, लेकिन यह विवाद सीमा क्षेत्र में जटिल सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों का इतिहास और नरसंहार
बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्धों के खिलाफ हिंसा का इतिहास लंबे समय से चला आ रहा है। यह ब्रिटिश भारत के विभाजन के समय शुरू हुआ था और विभिन्न राजनीतिक व धार्मिक संघर्षों के दौरान और बढ़ता गया।
- विभाजन और प्रारंभिक वर्ष:
1947 के विभाजन के दौरान पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। भूमि हड़पने और विस्थापन के चलते लाखों हिंदुओं ने भारत की ओर पलायन किया। - 1971 का स्वतंत्रता संग्राम और नरसंहार:
बांग्लादेश की स्वतंत्रता के दौरान पाकिस्तानी सेना ने हिंदुओं के खिलाफ व्यापक नरसंहार किया। इस युद्ध में मारे गए 30 लाख लोगों में से बड़ी संख्या हिंदुओं की थी। 1 करोड़ से अधिक शरणार्थियों ने भारत में शरण ली। - स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियां:
1988 में बांग्लादेश ने इस्लाम को राज्य धर्म घोषित कर दिया, जिससे हिंदुओं और बौद्धों की स्थिति और खराब हो गई। दंगे, मंदिरों को तोड़फोड़, और जबरन भूमि अधिग्रहण जैसी घटनाएं आम हो गईं। - चटगांव हिल ट्रैक्ट्स संघर्ष:
चटगांव क्षेत्र के बौद्ध समुदाय को राज्य प्रायोजित बांग्ला मुस्लिम पुनर्वास के कारण विस्थापन और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। यह क्षेत्र सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण तनावग्रस्त है।
रोहिंग्या उग्रवाद और चरमपंथी गठजोड़
रोहिंग्या संकट इन विवादों को और जटिल बना देता है। म्यांमार की सेना द्वारा विस्थापित किए गए लाखों रोहिंग्या शरणार्थी अब बांग्लादेश के शिविरों में रहते हैं। इन शिविरों में उग्रवादी संगठन, जैसे ARSA, सक्रिय हैं, जिन पर बौद्धों और हिंदुओं को निशाना बनाने का आरोप है।
कुछ रिपोर्ट्स में रोहिंग्या संगठनों और अल-कायदा जैसे वैश्विक चरमपंथी समूहों के बीच संभावित गठजोड़ की ओर इशारा किया गया है। हालांकि, इसका ठोस प्रमाण सीमित है। अराकान आर्मी इन दावों का उपयोग अपनी कार्रवाइयों को सही ठहराने और अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने के लिए करती है।
वर्तमान चुनौतियां और क्षेत्रीय प्रभाव
- जातीय और धार्मिक तनाव:
ऐतिहासिक संघर्ष और मौजूदा विवाद समुदायों को और विभाजित कर रहे हैं। अराकान आर्मी के अभियानों और रोहिंग्या समूहों के आरोपों ने इस तनाव को और गहरा कर दिया है। - मानवीय संकट:
म्यांमार के रखाइन राज्य में 20 लाख से अधिक लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं। वहीं, बांग्लादेश के रोहिंग्या शिविर संसाधनों की कमी और सुरक्षा जोखिमों से जूझ रहे हैं। - भूराजनीतिक अस्थिरता:
यह स्थिति बांग्लादेश-म्यांमार संबंधों को जटिल बना रही है और पड़ोसी देशों, विशेष रूप से भारत, के लिए दबाव बढ़ा रही है।
समाधान का रास्ता
इन संकटों को हल करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है:
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना: दोनों देशों को अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कानून लागू करने की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता: ASEAN और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों को तनाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए।
मूल कारणों का समाधान: भूमि विवादों का निपटारा, संसाधनों का समान वितरण, और शरणार्थियों की सुरक्षित वापसी की व्यवस्था करना अनिवार्य है।
बांग्लादेश और म्यांमार में जातीय तनाव, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, और उग्रवाद का इतिहास क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए क्षेत्रीय सहयोग और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता है, ताकि हिंसा और अस्थिरता के इस चक्र को समाप्त किया जा सके।