फ्रांस के बाद स्विट्जरलैंड में बुर्का प्रतिबंध, क्या बुर्का मध्यम वर्गीय पहचान है?

फ्रांस के नक्शेकदम पर चलते हुए, स्विट्जरलैंड ने सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और चेहरा ढकने वाले अन्य परिधानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस फैसले ने धार्मिक आज़ादी, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक समावेशन पर एक वैश्विक बहस को फिर से जन्म दिया है। जहां कुछ इसे लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता की दिशा में कदम मान रहे हैं, वहीं अन्य इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन और बढ़ते इस्लामोफोबिया का प्रतीक बता रहे हैं।

प्रतिबंध का संदर्भ और तर्क

यह प्रतिबंध 2021 में एक जनमत संग्रह में पारित हुआ, जिसमें 51.2% स्विस मतदाताओं ने इसका समर्थन किया। समर्थकों का कहना है कि चेहरा ढकने वाले कपड़े सुरक्षा में बाधा डालते हैं, सामाजिक संवाद को कमजोर करते हैं, और पारदर्शिता व लैंगिक समानता जैसे पश्चिमी मूल्यों के विपरीत हैं। स्विट्जरलैंड की संघीय परिषद ने स्पष्ट किया है कि यह कानून सामाजिक सामंजस्य और सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए है, किसी विशेष धर्म को लक्षित करने के लिए नहीं।

See also  पीओके में फिर से जीवित होगी जिहादी संस्कृति: पीएम अनवर हक

मुस्लिम समुदायों की आलोचना

मुस्लिम संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने इस प्रतिबंध की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि यह कानून भेदभावपूर्ण है और इसका नतीजा उल्टा होगा। आलोचकों का मानना है कि इस तरह के उपाय मुस्लिम महिलाओं को अलग-थलग कर देते हैं, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करते हैं।

स्विट्जरलैंड के इस्लामी संगठनों के महासंघ के प्रवक्ता ने कहा, “यह प्रतिबंध महिलाओं को आज़ादी नहीं देता, बल्कि उन्हें और अलग-थलग कर देता है। यह महिलाओं के अधिकारों के नाम पर एक राजनीतिक चाल है।”

क्या बुर्का वर्ग से जुड़ा मुद्दा है?

इस बहस ने मुस्लिम समुदाय के भीतर सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक विभाजन को भी उजागर किया है।

समृद्ध मुस्लिम वर्ग: शिक्षित और संपन्न मुस्लिमों के बीच बुर्का प्रचलित नहीं है। कई महिलाएं आधुनिक और पश्चिमी परिधान पहनना पसंद करती हैं। यह वर्ग बुर्का को गैर-जरूरी या पुरानी परंपराओं का प्रतीक मानता है।

कम आय वाले समूह: गरीब और कम शिक्षित समुदायों में बुर्का एक सांस्कृतिक परंपरा के रूप में देखा जाता है और इसे इस्लामी मूल्यों से जोड़ा जाता है। कई महिलाओं के लिए यह एक सुरक्षा कवच या धार्मिक अभिव्यक्ति का माध्यम है।

See also  PAK’s Air Strike in Afghanistan: 15 Dead, Including Women and Children

यह विभाजन महत्वपूर्ण सवाल उठाता है: क्या बुर्का पर विवाद मुस्लिम समाज में वर्ग विभाजन का प्रतिबिंब है? या इसे पश्चिमी समाजों द्वारा आप्रवास-विरोधी एजेंडा बढ़ाने के लिए हथियार बनाया जा रहा है?

वैश्विक प्रवृत्ति?

स्विट्जरलैंड इस दृष्टिकोण में अकेला नहीं है। फ्रांस ने 2011 में इसी तरह का प्रतिबंध लागू किया था, इसे अपने धर्मनिरपेक्षता (लैइसिटी) के प्रति प्रतिबद्धता के तहत उचित ठहराया। बेल्जियम, ऑस्ट्रिया और डेनमार्क जैसे देशों ने भी सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लगाए हैं।

इन उपायों की अक्सर आलोचना की जाती है, विरोधियों का कहना है कि ये यूरोप में इस्लामोफोबिया और सांस्कृतिक असहिष्णुता की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। ये प्रतिबंध आधुनिक समाजों की बहुसंस्कृतिवाद और धर्मनिरपेक्षता को संतुलित करने की चुनौती को भी रेखांकित करते हैं।

आदर्शों का टकराव

बुर्का प्रतिबंध पर विवाद एक गहरे सांस्कृतिक संघर्ष का प्रतीक है। समर्थकों के लिए यह धर्मनिरपेक्षता और समावेशन को बचाने का मामला है, जबकि विरोधियों के लिए यह धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता के सम्मान का प्रश्न है।

See also  How Iran Transitioned from Zoroastrianism to Islam and the Journey of Parsis Today

प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. आयशा मलिक कहती हैं, “बुर्का पर बहस कपड़ों से अधिक शक्ति समीकरणों के बारे में है—सार्वजनिक जीवन के मानदंडों को कौन तय करता है। दुर्भाग्य से, मुस्लिम महिलाएं अक्सर इन वैचारिक संघर्षों के केंद्र में होती हैं।”

स्विट्जरलैंड में बुर्का पर प्रतिबंध ने स्वतंत्रता, पहचान और समावेशन पर एक वैश्विक बातचीत को जन्म दिया है। जहां कुछ इसे सामाजिक सामंजस्य की दिशा में कदम मानते हैं, वहीं अन्य इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर खतरनाक हमला मानते हैं। जैसे-जैसे बहस जारी है, इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सूझबूझ और आपसी समझ की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन