करम पर्व : आदिवासी जीवन का पर्यावरण और सामूहिकता का उत्सव

करम पर्व भारत के मध्य और पूर्वी राज्यों—झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल के आदिवासी समुदायों का प्रमुख त्योहार है। यह पर्व हर वर्ष भादो मास (अगस्त-सितंबर) में मनाया जाता है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, खेती, भाई-बहन के रिश्ते और सामूहिक जीवन का उत्सव है। करम पर्व की कथा…

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आदिवासी समाज और चर्च की बढ़ती पकड़: आस्था या पहचान का संकट?

*”भारत के आदिवासी समुदाय सिर्फ इंसान नहीं, बल्कि प्रकृति के सच्चे संरक्षक माने जाते हैं। झारखंड और छत्तीसगढ़ की धरती पर सरना धर्म ‘जाहेरथान’ और ‘मरांग बुरू’ की पूजा से जीवन को दिशा देता है। अरुणाचल की पहाड़ियों में डोनी-पोलो – यानी सूरज और चाँद – लोगों के जीवन का प्रकाश और समय का चक्र…

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डूंगरी बांध: विकास का सपना या विस्थापन की त्रासदी?

राजस्थान का करौली-धौलपुर इलाका प्राकृतिक खूबसूरती, ऐतिहासिक धरोहरों और उपजाऊ ज़मीन के लिए जाना जाता है। यमुना और चंबल के बीच बसा यह इलाका सांस्कृतिक रूप से भी बेहद समृद्ध है। इसी इलाके में प्रस्तावित है डूंगरी बांध परियोजना – एक ऐसी योजना जिसे सरकार “विकास और जल प्रबंधन” के बड़े कदम के रूप में…

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आभा कुजूर: एक आदिवासी बेटी की बॉडीबिल्डिंग से अंतर्राष्ट्रीय मंच तक की प्रेरणादायक यात्रा

आज जब दुनिया महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की बात कर रही है, तब छत्तीसगढ़ की एक साधारण-सी लड़की, आभा कुजूर, असाधारण संकल्प और संघर्ष से न केवल महिला शक्ति का प्रतीक बनीं, बल्कि उन्होंने यह साबित कर दिया कि मजबूत इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत के सामने कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। एक आदिवासी…

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आंध्र प्रदेश में आदिवासी बच्चों का कुपोषण संकट: एक गंभीर मानवीय चुनौती

🔴 60 हज़ार से अधिक आदिवासी बच्चे कुपोषण का शिकार आंध्र प्रदेश की आदिवासी आबादी लंबे समय से उपेक्षा और विकास की मुख्यधारा से कटे होने का दंश झेल रही है। अब इस स्थिति की सबसे त्रासद तस्वीर सामने आई है – राज्य में 5 वर्ष से कम आयु के 60,000 से अधिक आदिवासी बच्चे…

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83 percent of Tribal Professor Posts Vacant: Central Government

The Central Government has admitted in Parliament that there is a significant delay in filling reserved category posts in higher education. The situation is particularly alarming at the professor level, where appointments from the general category far exceed those from reserved categories. The gap is even wider for candidates from Other Backward Classes (OBC), Scheduled…

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खासी जनजातियों की मातृसत्तात्मक व्यवस्था

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में बसी खासी जनजाति दुनिया की उन गिनी-चुनी जनजातियों में से एक है, जो आज भी मातृसत्तात्मक व्यवस्था (Matrilineal system) का पालन करती है। इस व्यवस्था में न केवल संपत्ति की उत्तराधिकार प्रणाली माँ की ओर से चलती है, बल्कि परिवार में निर्णयों का केंद्र भी महिलाएँ होती हैं। मातृसत्तात्मक…

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मलती मुर्मू: जब एक महिला ने पेड़ के नीचे स्कूल खड़ा कर दिया

By firstpeople.in “जहां सरकारें चुप थीं, वहां मलती मुर्मू ने chalk उठा लिया।” झारखंड और बंगाल के सीमांत पर बसे गांवों में कोई नया क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हुआ। न ही कोई बड़ा राजनीतिक भाषण दिया गया। लेकिन एक महिला ने—अपने आंगन में, एक पेड़ के नीचे, अपने बच्चों और पड़ोस के बच्चों को बिठाकर—वह कर…

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एत्वा उराँव (फादर जे. बखला) : आदिवासी शिक्षा और भाषा आंदोलन के अग्रदूत

जन्म: 12 अगस्त 1951देहांत: 9 जुलाई 2025 झारखंड की भूमि ने कई महान सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने न केवल अपने समुदाय के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का कार्य किया है। इन्हीं में एक नाम है एत्वा उराँव, जिन्हें फादर जे. बखला (Fr. J. Baxla) के नाम से भी जाना जाता…

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10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन