नेतरहाट फायरिंग रेंज आंदोलन: शांतिपूर्ण संघर्ष की मिसाल

नेतरहाट, झारखंड – नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आदिवासी समुदाय द्वारा चलाया गया आंदोलन भारतीय इतिहास में शांतिपूर्ण संघर्ष की एक अद्वितीय मिसाल है। लगभग तीन दशकों तक चले इस आंदोलन ने सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। प्रत्येक वर्ष 22 और 23 मार्च को इस आंदोलन की याद में संकल्प सभा का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होकर अपने जल, जंगल, जमीन की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

वर्ष 1964 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट क्षेत्र को फील्ड फायरिंग रेंज के रूप में अधिसूचित किया था। इस निर्णय के तहत लातेहार और गुमला जिलों के 245 गांवों की 1,471 वर्ग किलोमीटर भूमि को सेना के तोप अभ्यास के लिए चिन्हित किया गया था। इससे स्थानीय आदिवासी समुदाय के जीवन, संस्कृति और पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडराने लगा। इसके विरोध में 1994 से स्थानीय ग्रामीणों ने शांतिपूर्ण आंदोलन की शुरुआत की, जो निरंतर जारी रहा।

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संकल्प सभा का आयोजन

हर वर्ष 22 और 23 मार्च को केंद्रीय जन संघर्ष समिति के नेतृत्व में संकल्प सभा का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी यह सभा आयोजित की गई, जिसमें प्रभावित गांवों के हजारों लोग शामिल हुए। सभा में आंदोलन की उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा, “हमारा संघर्ष केवल भूमि के लिए नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और अस्तित्व की रक्षा के लिए है।”

आंदोलन की सफलता और वर्तमान स्थिति

लगातार संघर्ष और जनदबाव के परिणामस्वरूप, झारखंड सरकार ने 17 अगस्त 2022 को नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना को रद्द करने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस निर्णय से आदिवासी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई और इसे उनकी बड़ी जीत के रूप में देखा गया।

शांतिपूर्ण आंदोलन की मिसाल

नेतरहाट फायरिंग रेंज आंदोलन भारतीय इतिहास में सबसे लंबे और शांतिपूर्ण आंदोलनों में से एक है। लगभग 30 वर्षों तक बिना हिंसा के इस आंदोलन ने यह साबित किया कि एकजुटता और धैर्य के साथ किसी भी बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। यह आंदोलन आज भी देशभर के जन आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

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आगे की राह

हालांकि सरकार ने अधिसूचना रद्द कर दी है, लेकिन स्थानीय समुदाय अपनी भूमि, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के प्रति सतर्क है। संकल्प सभा के माध्यम से वे अपनी एकजुटता को मजबूत करते हैं और आने वाली पीढ़ियों को संघर्ष की इस गाथा से अवगत कराते हैं।

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