आदिवासी महिलाएं अपने समाज, संस्कृति और अधिकारों के लिए दशकों से संघर्ष कर रही हैं। उनके प्रयासों ने न केवल उनके समुदायों में बदलाव लाया है, बल्कि देशभर में सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस महिला दिवस पर हम कुछ ऐसी आदिवासी महिलाओं की कहानियां साझा कर रहे हैं, जिन्होंने अपनी हिम्मत, मेहनत और दृढ़ संकल्प से समाज को नई दिशा दी।
1. सोनी सोरी (छत्तीसगढ़) – संघर्ष और न्याय की प्रतीक
सोनी सोरी छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे पहले एक शिक्षिका थीं और बाद में आम आदमी पार्टी से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। 2011 में उन्हें नक्सलियों को जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 2014 में रिहाई के बाद से वे पुलिस और नक्सलियों द्वारा किए गए अत्याचारों के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।
2. दयामनी बारला (झारखंड) – आदिवासी पत्रकारिता की आवाज
दयामनी बारला झारखंड की जानी-मानी आदिवासी पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे पूर्वी झारखंड में आर्सेलर मित्तल के स्टील प्लांट के खिलाफ आदिवासी जमीन बचाने के आंदोलन के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते हैं और 2014 में आम आदमी पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ा था।
3. जमुना टुडू (झारखंड) – जंगलों की संरक्षक ‘लेडी टार्जन’
झारखंड के सिंहभूम जिले की जमुना टुडू को ‘लेडी टार्जन’ कहा जाता है। 1998 में शादी के बाद जब उन्होंने देखा कि उनके गांव के आसपास तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं, तो उन्होंने इस विनाश को रोकने का फैसला किया। पहले सिर्फ चार महिलाओं के साथ शुरू किया गया आंदोलन आज 300 से अधिक महिलाओं के समूह में बदल गया है, जो जंगलों की रक्षा कर रही हैं।
4. तुलसी मुंडा (ओडिशा) – शिक्षा की अलख जगाने वाली पद्मश्री विजेता
तुलसी मुंडा ओडिशा की प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें 2001 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने आदिवासी बच्चों को शिक्षा देने के लिए खनन क्षेत्र में एक विद्यालय स्थापित किया। उनका योगदान यह साबित करता है कि शिक्षा ही असली सशक्तिकरण का माध्यम है।
5. सीथक्का (तेलंगाना) – नक्सली से जनसेवक तक का सफर
कोया जनजाति से ताल्लुक रखने वाली सीथक्का ने एक समय में नक्सली कमांडर के रूप में काम किया था, लेकिन बाद में उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया। उन्होंने कानून की पढ़ाई कर वकालत शुरू की और फिर राजनीति में कदम रखा। वे तेलंगाना विधानसभा की सदस्य हैं और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं।
6. चेकोट्टु करियान जानू (केरल) – आदिवासी अधिकारों की योद्धा
केरल की आदिवासी नेता चेकोट्टु करियान (सीके) जानू ने आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। 1994 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में भारत के आदिवासियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने शिक्षा प्राप्त किए बिना भी खुद से मलयालम, अंग्रेजी और कई अन्य भाषाएं सीखीं और आदिवासी हकों की लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया।
7. बिरूबाला राभा (असम) – डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई की नायिका
बिरूबाला राभा असम में डायन हत्या और अंधविश्वास के खिलाफ अभियान चला रही हैं। उन्होंने मिशन बिरूबाला नामक संस्था बनाई, जिसके प्रयासों से असम सरकार ने 2015 में डायन शिकार रोकथाम अधिनियम पारित किया। 2021 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
8. रतन मंजरी नेगी (हिमाचल प्रदेश) – महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की प्रहरी
रतन मंजरी नेगी किन्नौर की 70 वर्षीय आदिवासी महिला हैं, जो हजारों महिलाओं के लिए पैतृक संपत्ति में समान अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर क्षेत्र में Customary Law के कारण महिलाओं को संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था। इसे बदलने के लिए उन्होंने 1980 के दशक में विधानसभा चुनाव तक लड़ा।
9. हेकानी जखालू (नागालैंड) – नागालैंड की पहली महिला विधायक
हेकानी जखालू नागालैंड की एक सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता हैं। उन्होंने युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए यूथनेट नागालैंड नामक NGO की स्थापना की। 2018 में उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार मिला और हाल ही में वे नागालैंड विधानसभा के लिए चुनी गईं, जिससे वे राज्य की पहली महिला विधायक बनीं।
10. अलाना गोलमेई (मणिपुर) – पूर्वोत्तर के लोगों की संरक्षक
अलाना गोलमेई पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासियों के खिलाफ बड़े शहरों में हो रहे भेदभाव से लड़ रही हैं। उन्होंने North East Support Centre and Helpline (NESCH) की स्थापना की, जो पूर्वोत्तर के लोगों के उत्पीड़न, कार्यस्थल पर शोषण और अन्याय के खिलाफ मदद करती है।
इन आदिवासी महिलाओं की कहानियाँ प्रेरणादायक हैं और यह साबित करती हैं कि कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत और संकल्प से बदलाव लाया जा सकता है। महिला दिवस के इस अवसर पर हमें इन संघर्षशील महिलाओं के योगदान को पहचानना और उनका सम्मान करना चाहिए। उनकी कहानियाँ न केवल आदिवासी समाज बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा हैं।