एक जनवरी को भीमा कोरेगांव युद्ध की 206वीं बरसी मनायी जाएगी. हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय 1818 की जंग की वर्षगांठ मनाते हैं, जिसमें मुंबई नैटिव इनफैंट्री के बलों ने दलित सैनिकों के साथ पुणे के पेशवा की सेना को पराजित किया था. इस मौके पर यहां स्मृति कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. दलित इस जीत को उत्पीड़ित समुदायों के आत्म-सम्मान वापस पाने की शुरुआत के रूप में मनाते हैं.
भीमा-कोरेगांव वो जगह है जहाँ एक जनवरी 1818 को मराठा और मुंबई नैटिव इनफैंट्री के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ था.
इस युद्ध में महार समुदाय ने पेशवाओं के खिलाफ अंग्रेज़ों की ओर से लड़ाई लड़ी थी. अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई नैटिव इनफैंट्री की बदौलत ही पेशवा की सेना को हराया था. जिसमे म्हारो ने मुंबई नेटिव इन्फेंट्री का साथ दिया था.
म्हारों की इस विजय की याद में ही यहां ‘विजय स्तंभ’ की स्थापना की गई है, जहां हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय के लोग, युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने और अपने पूर्वजों के शौर्य को याद करने के लिए जुटते हैं.
इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में मारे गए महार योद्धाओं के नाम अंकित हैं.
भीमा कोरेगांव की लड़ाई के बारे में जानें
भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 को कोरेगांव भीमा में मुंबई नैटिव इनफैंट्री और पेशवा सेना के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई की खास बात यह थी कि मुंबई नैटिव इनफैंट्री के झंडे तले 500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव-2 की 25000 सैनिकों की टुकड़ी से लोहा लिया था.
अंग्रेजों-महारों ने मिलकर पेशवा को हराया
उस वक्त महार अछूत जाति मानी जाती थी और उन्हें पेशवा अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं करते थे. महारों ने पेशवा से गुहार लगाई थी कि वे उनकी ओर से लड़ेंगे, लेकिन पेशवा ने ये आग्रह ठुकरा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने महारों का ऑफर मान लिया, जिसके बाद अंग्रेजों और महारों ने मिलकर पेशवा को हरा दिया.