पीओके में फिर से जीवित होगी जिहादी संस्कृति: पीएम अनवर हक

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) और गिलगित-बाल्टिस्तान में बेरोजगारी और भुखमरी को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के बीच, पीओके के प्रधानमंत्री अनवर हक ने जिहादी संस्कृति को फिर से स्थापित करने का ऐलान किया है। यह घोषणा क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।

जिहादी संस्कृति का इतिहास

पाकिस्तान में जिहादी संस्कृति की जड़ें 1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान गहराई से पनपी थीं। उस समय, अमेरिका और पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ने के लिए मुजाहिदीन लड़ाकों को समर्थन दिया। पाकिस्तान की आईएसआई ने इन गुटों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए।

1990 के दशक में, पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने के लिए जिहादी समूहों का इस्तेमाल शुरू किया। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठन भारत के जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने में सक्रिय रहे।

2001 में, अमेरिका पर हुए 9/11 हमलों के बाद, अंतरराष्ट्रीय दबाव में आकर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने कई जिहादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाए। हालांकि, ये समूह गुप्त रूप से संचालित होते रहे और पाकिस्तान की नीति का हिस्सा बने रहे।

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अनवर हक का विवादित बयान

हाल ही में, पीओके के प्रधानमंत्री अनवर हक ने ‘आत्मनिर्णय अधिकार दिवस’ के मौके पर मुजफ्फराबाद में जिहादी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की घोषणा की। उन्होंने जिहाद का समर्थन करते हुए “अल-जिहाद, अल-जिहाद” के नारे भी लगाए। अनवर हक का यह कदम पाकिस्तान की स्थिरता के लिए तो खतरा है ही, साथ ही भारत के जम्मू-कश्मीर की शांति पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है।

भारत की बढ़ती चिंताएं

पीओके में जिहादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। आतंकवाद को लेकर भारत पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की आलोचना करता रहा है। अब अनवर हक का बयान क्षेत्र में शांति और स्थिरता को और कमजोर कर सकता है।

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जिहादी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की योजना क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा सकती है। यह कदम केवल पीओके के लोगों की दुर्दशा को बढ़ाएगा और भारत-पाक संबंधों को और अधिक जटिल बना देगा।

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