“अगर घर वापसी नहीं होती, तो आदिवासी राष्ट्र-विरोधी हो जाते”: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दावा किया है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल के दौरान संघ के घर वापसी कार्यक्रम की प्रशंसा की थी। भागवत के अनुसार, मुखर्जी ने कहा था कि अगर संघ ने धर्मांतरण रोकने का प्रयास नहीं किया होता, तो आदिवासियों का एक बड़ा वर्ग राष्ट्र-विरोधी हो सकता था।

यह बयान सोमवार को इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया गया, जहां भागवत ने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता चंपत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान किया। चंपत राय श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव भी हैं।

प्रणब मुखर्जी और घर वापसी पर चर्चा

भागवत ने अपने संबोधन में कहा, “डॉ. प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति थे, तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया। उस समय संसद में घर वापसी को लेकर काफी बहस चल रही थी। मुझे लगा कि वे कई सवाल पूछेंगे, लेकिन उन्होंने पूछा, ‘आप यह कैसे करते हैं? आपका यह प्रयास प्रभावशाली है।'”

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भागवत ने कहा कि मुखर्जी ने उनके कार्य को सराहा और कहा, “आपके प्रयासों के कारण 30% आदिवासी सही दिशा में आए। अगर ऐसा नहीं हुआ होता, तो वे ईसाई बनकर देशद्रोही हो सकते थे।”

धर्मांतरण पर संघ का रुख

भागवत ने कहा, “अगर धर्मांतरण किसी आंतरिक आह्वान से होता है, तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब यह प्रलोभन या बल के माध्यम से होता है, तो इसका उद्देश्य आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि प्रभाव बढ़ाना होता है।” उन्होंने यह भी कहा कि धर्मांतरण व्यक्ति को अपनी जड़ों से दूर कर देता है, जिससे सांस्कृतिक और सामाजिक बंधन कमजोर होते हैं।

संघ और आदिवासी धर्मांतरण का मुद्दा

संघ परिवार आदिवासियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण के खिलाफ लंबे समय से अभियान चला रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में, संघ से जुड़े संगठनों ने यह मांग की है कि धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जाए।

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यह मुद्दा संघ परिवार के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है और इसे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के संदर्भ में देखा जाता है।

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