छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में 12 दिसंबर को सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में चार नाबालिगों को भी गोली लगने की खबर है। पुलिस का दावा है कि नक्सलियों ने अपने बड़े नेताओं को बचाने के लिए इन बच्चों का ढाल की तरह इस्तेमाल किया। घायल बच्चों का गांव में पारंपरिक जड़ी-बूटियों से इलाज किया जा रहा है, जबकि पुलिस ने इन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाएं देने के प्रयास शुरू किए हैं।
7 नक्सलियों के मारे जाने का दावा
इस मुठभेड़ में पुलिस ने 40 लाख रुपये के इनामी सात नक्सलियों को मार गिराने का दावा किया है। इनमें 25 लाख रुपये का इनामी नक्सली रामचंद्र उर्फ कार्तिक उर्फ दसरू भी शामिल था।
पुलिस का बयान
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि मुठभेड़ के छह दिन बाद जानकारी मिली कि नक्सलियों ने अपने नेता रामचंद्र को बचाने के लिए ग्रामीणों और बच्चों को ढाल बनाया था। इसी दौरान फायरिंग में चार नाबालिगों को गोली लगी। पुलिस का यह भी कहना है कि इस मुठभेड़ में 4-5 नक्सली घायल हुए, जिनका इलाज जंगल में उनके साथी कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों का आरोप
11-12 दिसंबर को नारायणपुर और बीजापुर जिलों की सीमा पर कुम्मम-लेकावड़ा गांवों में हुई मुठभेड़ को लेकर स्थानीय लोगों और आदिवासी कार्यकर्ताओं ने पुलिस के दावों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि मारे गए सात लोगों में से पांच माओवादी नहीं, बल्कि ग्रामीण थे। इसके अलावा, चार नाबालिग ग्रामीण भी घायल हुए हैं।
मृतकों की पहचान पर विवाद
पुलिस ने जिन सात माओवादियों को मारने का दावा किया है, उनमें से पांच के नाम – रैनू, सोमारू उर्फ मोटू, सोमारी, गुडसा और कमलेश उर्फ कोहला बताए गए हैं। पुलिस के मुताबिक, ये सभी माओवादी संगठन में ‘पी.एम.’ पद पर थे और प्रत्येक पर दो लाख रुपये का इनाम था। वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि ये सभी माड़िया आदिवासी समुदाय के लोग थे और माओवादी नहीं थे।
माड़िया समुदाय और पीवीटीजी का मुद्दा
घटना में घायल और मारे गए सभी लोग माड़िया आदिवासी समुदाय से हैं, जिसे सरकार ने विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में वर्गीकृत किया है। बताया जा रहा है कि एक 14 वर्षीय बच्चे की गले में गोली फस गयी है।
माओवादी हिंसा में बढ़ोतरी
पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में बस्तर क्षेत्र में अब तक 220 से अधिक माओवादी मारे गए हैं। यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। गृह मंत्रालय के अनुसार, 2018 में 125, 2019 में 79, 2020 में 44, 2021 में 48, और 2022 में 31 माओवादी मारे गए थे।
केंद्र सरकार की रणनीति
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक माओवाद के उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। हालिया घटनाओं को इसी दिशा में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, इस मुठभेड़ को लेकर उठे सवाल सुरक्षा बलों की कार्रवाई और रणनीति पर गंभीर चिंताएं खड़ी कर रहे हैं।