23 मार्च का दिन भारत के इतिहास में एक ऐसा अध्याय है, जो न केवल वीरता और बलिदान की गाथा कहता है, बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि स्वतंत्रता का असली अर्थ क्या है। इस दिन 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फाँसी दे दी थी। लेकिन यह फाँसी केवल तीन युवाओं की जीवनलीला समाप्त नहीं कर सकी; बल्कि इसने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा और विचारधारा दी।
भगत सिंह: क्रांतिकारी से विचारक तक
भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वे एक गहरे विचारक और समाज सुधारक भी थे। उनका सपना केवल अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जो शोषण, भेदभाव और असमानता से मुक्त हो। उन्होंने अपने लेखों और विचारों में स्पष्ट किया था कि स्वतंत्रता का अर्थ केवल सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि एक समतावादी समाज की स्थापना है।
“इन्कलाब ज़िंदाबाद” का असली अर्थ
भगत सिंह के सबसे प्रसिद्ध नारे “इन्कलाब ज़िंदाबाद” का अर्थ महज़ सत्ता पलटने तक सीमित नहीं था। वे चाहते थे कि समाज में एक गहरी वैचारिक क्रांति आए, जहाँ व्यक्ति अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझे, अंधविश्वास से मुक्त हो और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए। उन्होंने धर्म, जाति और पूँजीवाद के नाम पर किए जाने वाले शोषण का कड़ा विरोध किया।
भगत सिंह और आज का समाज
भगत सिंह ने कहा था—
“अगर बहरों को सुनाना है, तो आवाज़ को बहुत ज़ोरदार होना पड़ेगा।”
आज जब हम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं को देखते हैं, तो लगता है कि भगत सिंह की यह बात पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो गई है। क्या हमारी स्वतंत्रता केवल दिखावटी रह गई है? क्या शोषण के नए रूप पैदा नहीं हो गए हैं? अगर हाँ, तो क्या आज भी हमें एक नए ‘इन्कलाब’ की जरूरत नहीं है?
शहीद दिवस: आत्ममंथन का अवसर
शहीद दिवस केवल भगत सिंह और उनके साथियों को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि यह उनके विचारों को आत्मसात करने का भी अवसर है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जिसका सपना भगत सिंह ने देखा था? क्या हम जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर न्याय और समानता की दिशा में बढ़ रहे हैं?
अगर हम उनके विचारों को सही मायने में अपनाते हैं, तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हमें क्रांति के अर्थ को समझना होगा—वह क्रांति जो केवल व्यवस्था परिवर्तन नहीं, बल्कि विचारों और मानसिकता का परिवर्तन लाए।
“इन्कलाब ज़िंदाबाद!”