संसद की स्थायी समिति ने 2022-23 में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (PVTGs) की विकास योजनाओं के तहत फंड की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। समिति ने पाया कि झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों को कोई आवंटन नहीं किया गया, जबकि इन राज्यों में आदिवासी आबादी काफी बड़ी है।
फंड की कमी और धीमी प्रगति
समिति ने सवाल उठाया कि जब योजनाबद्ध विकास के लिए फंड ही उपलब्ध नहीं थे, तो इन राज्यों में विकास कार्य कैसे पूरे हुए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 से 2022-23 के बीच पीवीटीजी योजनाओं के बजटीय आवंटन में कटौती की गई।
कार्यक्रम में खामियां
जनजातीय मामलों के मंत्रालय से संबंधित इस रिपोर्ट में प्रमुख समस्याओं की ओर इशारा किया गया, जैसे:
- आवंटित धन का कम उपयोग।
- उपयोग प्रमाण पत्र (UC) प्रस्तुत करने में देरी।
- प्रक्रियात्मक अक्षमताएं।
समिति की सिफारिशें
समिति ने फंड के वितरण और कुशल उपयोग के लिए एकल नोडल खाता प्रणाली (SNA) को मजबूत करने की सिफारिश की। इसके अलावा, राज्य-स्तरीय समस्याओं, जैसे भूमि अधिग्रहण में देरी और परियोजना प्रस्तावों में बाधाओं को भी दूर करने पर जोर दिया।
समग्र दृष्टिकोण की मांग
समिति ने प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (PMAAGY) और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) जैसी पहलों के साथ पीवीटीजी योजनाओं को जोड़ने की सलाह दी। साथ ही, जमीनी स्तर पर आदिवासी समुदायों और संगठनों की सक्रिय भागीदारी पर बल दिया।
आलोचना और चेतावनी
हालांकि सरकार ने आदिवासी कल्याण के लिए 6,399 करोड़ रुपये (EMRS) और 1,000 करोड़ रुपये (PMAAGY) आवंटित किए, लेकिन समिति ने चेतावनी दी कि लक्ष्यों की कम उपलब्धि और फंड का अकुशल उपयोग योजनाओं की प्रभावशीलता को बाधित कर सकता है।
समिति ने कठोर निगरानी तंत्र लागू करने और स्वतंत्र ऑडिट कराने का सुझाव दिया, ताकि प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान जैसी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया जा सके।