जसिंता केरकेट्टा को मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार

जसिंता केरकेट्टा को महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में शनिवार को मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार दिया गया. यह पुरस्कार नवोदित आदिवासी साहित्य परिषद द्वारा दिया गया.

मौके पर जसिंता केरकेट्टा ने कहा कि आदिवासी समाज को स्वशासन, अस्तित्व और प्रकृति को बचाने के लिए बौद्धिक रूप से सशक्त होना होगा. इसके लिए पढ़ने-लिखने, रचने, संगठित होने, अपनी कमियां और शक्तियों को पहचानने की जरूरत है.

क्या है मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार

मधुकरराव मड़ावी महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के एक प्रख्यात समाज सुधारक और चिंतक थे, जिन्होंने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने शिक्षा, संस्कृति और आदिवासी अधिकारों के क्षेत्र में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। मड़ावी ने आदिवासी समाज को संगठित करने और उनकी आवाज़ को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयास किए। उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए उनके नाम पर “मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार” स्थापित किया गया है, जो हर साल आदिवासी साहित्य और समाज में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। उनके विचार और कार्य आज भी आदिवासी सशक्तिकरण की प्रेरणा बने हुए हैं।

See also  मणिपुर में मुक्त आवाजाही पर रोक: आदिवासी संगठन का विरोध

कौन है जसिंता केरकेट्टा

जसिंता केरकेट्टा झारखंड की एक प्रख्यात आदिवासी कवयित्री, लेखिका और पत्रकार हैं, जो अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से आदिवासी समाज की आवाज़ को अंतरराष्ट्रीय मंच तक ले गई हैं। उनका लेखन प्रकृति, मानव अधिकारों और आदिवासी संस्कृति से गहराई से जुड़ा है। उनकी प्रमुख रचनाओं में अंगोर और जंगल पुकारे जैसे कविता संग्रह शामिल हैं। जसिंता ने अपने लेखन से आदिवासी अस्मिता, संघर्ष और स्वशासन के मुद्दों को प्रमुखता दी है। वे न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी आदिवासी साहित्य के प्रतीक के रूप में पहचानी जाती हैं। उनकी कविताएँ आदिवासी समाज की संवेदनाओं और चुनौतियों को सशक्त रूप में अभिव्यक्त करती हैं।

बता दें महाराष्ट्र में आदिवासियों ने आदिवासी समुदाय के लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नवोदित आदिवासी साहित्य परिषद का निर्माण किया है. इसके ही बैनर तले हर साल एक साहित्यिक सम्मेलन, कविता पाठ और पुरस्कार समारोह आयोजित किया जाता है. इस दौरान आदिवासियों द्वारा लिखी किताबों का विमोचन भी होता है. इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों से आदिवासी जुटते हैं. महाराष्ट्र में आदिवासी महात्मा फुले, बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों के साथ धरती आबा वीर बिरसा मुंडा को अपनी प्रेरणा मानते हैं.

See also  लद्दाख में सरकारी नौकरियों में ST आरक्षण 85% होगा

जसिंता केरकेट्टा को “मधुकरराव मड़ावी साहित्यभूषण पुरस्कार” मिलना आदिवासी साहित्य और समाज के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह सम्मान आदिवासी लेखन को नई पहचान और सशक्तिकरण का प्रतीक है। जसिंता केरकेट्टा ने अपने लेखन और विचारों के माध्यम से आदिवासी समुदाय की आवाज़ को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया है।

मधुकरराव मड़ावी और व्यंकटेश आत्राम जैसे समाज सुधारकों ने आदिवासी समुदाय के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया है, और उनके नाम पर दिए जाने वाले यह पुरस्कार साहित्य और जागरूकता के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

नवोदित आदिवासी साहित्य परिषद जैसे मंच आदिवासी संस्कृति, साहित्य, और विचारधारा को संरक्षित और प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। महाराष्ट्र के आदिवासियों का महात्मा फुले, बाबा साहेब आंबेडकर और धरती आबा बिरसा मुंडा के विचारों से प्रेरणा लेना, उनके सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन को और मजबूत करता है। यह पहल आदिवासी समाज के बौद्धिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण के लिए एक प्रेरणादायक कदम है।

See also  चमत्कार' नहीं, आदिवासी जीवन की 'सहजीविता' है

सम्मान समारोह सह साहित्यिक सम्मेलन में वरिष्ठ साहित्यकार वसंत कनाके, प्रब्रह्मनंद, डॉ अरविंद कुलमेथे, बालकृष्ण गेडाम, राजू मड़ावी, शंकर मड़ावी, कविता कनाके, गंगा गवली, रामदास गिलंदे, प्रो नितिन टेकाम, प्रो नीलकांत कुलसंगे, कुसुम अलाम सहित अन्य उपस्थित थे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन