एक तरफ धर्मांतरण, दूसरी ओर आदिवासी एकता का ढोंग

तोरपा के संत जोसेफ हाई स्कूल में चर्च द्वारा बुलाए गए, आदिवासी मिलन समारोह को आदिवासी सरना समाज ने विरोध किया है। इस आयोजन को चर्च समर्थित सरना संगोम समिति तथा पड़हा समिति ने समर्थन दिया है।

सरना समाज के रेड़ा मुंडा ने कहा, “सरना संगोम समिति तथा पड़हा समिति मिशनारियों की आड़ में आदिवासी भाषा संस्कृति परंपरा रीति रिवाज तथा पारंपरिक व्यवस्था को पैरों तले रौंद कर तथा तोड़ मरोड़ कर खत्म करने का सढयंत्र रचा जा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा कि पड़हा के महामंत्री रेजन गुड़िया की इस सढयंत्रकारी खेल ने पूरे आदिवासी सरना समाज की भाषा संस्कृति परंपरा रीति-रिवाज और पड़हा का दुरुपयोग कर संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 13(3)क, प्रथागत कानून यानी कस्टमरी लाॅ एवं अनुच्छेद 25, 2 को तारतार कर दिया है. इनको अपने पूरखों का नियम दस्तुर और कायदे कानून की जानकारी ही नहीं है.

धर्मांतरण को बढ़ावा, संस्कृति बचाने का ढोंग

रेडा मुंडा ने कहा कि वह आदिवासी भाषा संस्कृति बचाने का ढोंग कर रहे हैं. वे एक ओर धर्मांतरण जैसे मुद्दों को आत्मसात देकर बढ़ावा देते हैं और वही दूसरी ओर आदिवासी एकता अखंडता भाषा संस्कृति बचाने का ढोंग कर रहे हैं.

रेंडा मुंडा ने आगे कहा कि वे पड़हा की आड़ में सारे मुंडा, पहान, पानी भरा, सरना, मसना हड़गड़ी यह पुरखों का अपमान कर रहे हैं. अब खेला बहुत हो गया है. वे कभी चर्च में जदुर करम नाचवाते हैं. यदि उनको यही करना है तो पुरखों के रास्ते सरना में पुन: क्यों नही आ जाते. उनको आदिवासी व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है.

रेजन गुड़िया को अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए कि पड़हा व्यवस्था के साथ चलना है या ईसाई धार्मिक व्यवस्था के साथ चलना है. यदि पड़हा व्यवस्था के साथ चलना है तो आप अपने पूरखों के विरासत के साथ चलकर पुरखौती परंपरा में वापस आएं अन्यथा आप पड़हा व्यवस्था से अपना इस्तीफा दे देना चाहिए.

दुर्गावती ओड़ेया को अब ईसाई संगोंम समिति बना लेना चाहिए। सरना के नाम पर अपनी ही व्यवस्था को हरण करने में लगी है। उनको कम से कम अपने पूरखों की व्यवस्था का मान मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। जिन लोगों ने हमें धार्मिक गुलाम बनाकर हमारी व्यवस्था को चकनाचूर कर रहे हैं। उसी का साथ देकर अपने समाज को खत्म किया जा रहा है। यह सरना समाज के लिए कदापि उचित नहीं है। वे यदि ऐसे ही लोगों के साथ के साथ जाना चाहती हैं वे जा सकती हैं लेकिन उन्हें पुरखौती परंपरा को हरण करने का अधिकार नहीं है।

विरोध रेंडा मुंडा, बुदा मुंडा, सुखराम पहान, हिंगुवा गुड़िया, मनकिरण गुड़िया, रोहित तानि, गोला गुड़िया, दुलारी बरला, भाजु मुंडा, बिरसा कन्डुलना, प्रताप गुड़िया, कुदलू गुड़िया आदि ने किया है.

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