व्यक्ति के द्वारा शुरू में जोहार, जोआर (मुंडा/संताल/हो), सेवा जोहार और इसका जवाब ‘सेवा-सेवा’/ ‘सेवा-सेवा-सेवा जोहार/ जय जोहार (मध्य-पश्चिम भारत) कहा जाता है.
‘सेवा-जोहार’, ‘सेवा-सेवा-सेवा जोहार’ भटकाव नहीं है बल्कि आदिवासी कबीलाई समुदाय के एक दूसरे से मिलने से उत्पन्न शब्द हैं जो किसी-न-किसी प्रकार से पूरब-पश्चिम, और उत्तर-दक्षिण के आदिवासियों का एक मिलाप बिंदु है. भविष्य में ‘सेवा-जोहार’ के बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे.
‘जोहार’ — मुख्यतः झारखण्ड के छोटानागपुर और संतालपरगना में प्रचलित अभिवादन है. कहीं पर भी किसी से मुलाकात होने पर (खासकर आदिवासी समुदायों के बीच) अभिवादन स्वरुप ‘जोहार’ शब्द का इस्तेमाल होता है. जो बचपन से अभी तक समझ में आया है, ‘जोहार’ का अर्थ है — हमारा अभिवादन स्वीकार करें, और कहिये क्या सेवा करें.
‘मुण्डा’, ‘संताल’ और ‘हो’ समुदायों के बीच में प्रचलित है — ‘जोआर’ जो कि छोटानागपुर और संतालपरगना क्षेत्र में ‘जोहार’ का ही समानांतर रुप है.
मेरे विचार से ‘जोहार’ का प्रचलित रुप ‘जोआर’ से आया है. मध्य भारत में मुख्यतः गोंड समुदाय के बीच ‘जय सेवा’, ‘सेवा-सेवा’ प्रचलित है. ‘जय सेवा’ का प्रत्युत्तर ‘सेवा-सेवा’ होता है, मुख्यतः इसका अर्थ है — हमारा अभिवादन स्वीकार करें, और कहिये क्या सेवा करें, या समूल रूप से बृहत प्रकृति के सेवा या संरक्षण को अभिवादन स्वरुप इस्तेमाल किया जा रहा है.
कुल मिलाकर, ‘जोहार’, और ‘जय-सेवा’ के अभिवादन का एक ही मतलब है और इसका मतलब काफी प्राकृतिक भी है. इसमें कोई धर्म, ईश्वर, और समुदाय का बोध नहीं हो रहा है. कुल मिलाकर ये अभिवादन समुदायों को जोड़ने वाले अभिवादन हैं.
समय के साथ देश के बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के साथ, ‘जोहार’ का इस्तेमाल व्यापक होने लगा है. मध्य और पश्चिम भारत के काफी सारे आदिवासी समुदायों में ‘जय जोहार’, ‘सेवा जोहार’, और सेवा-सेवा-सेवा जोहार ज्यादा प्रचलित हो रहा है.
हालाँकि, ‘जय’ को ‘जोहार’ के उपसर्ग की तरह इस्तेमाल करना, शब्द को जबरदस्ती समायोजित करने जैसे लगता है, क्योंकि ‘जय जोहार’, यानि ‘हमारा अभिवादन स्वीकार करें और कहिये क्या सेवा करें’ को जयकार करने जैसी बात है, जो की काफी उचित नहीं लगता है. यानि ‘हमारा अभिवादन स्वीकार करें और कहिये क्या सेवा करें’ अपने आप में पूर्ण हैं लेकिन फिर इसके जयकारे का औचित्य काफी स्पष्ट नहीं होता है.
दूसरी ओर ‘सेवा जोहार’ का इस्तेमाल काफी व्यापक हो चला है, जोकि ‘जय-सेवा’ से ‘सेवा’ को निकाल कर जोहार के साथ सन्धि की तरह समझा जा सकता है. ‘सेवा जोहार’ शब्द का प्रादुर्भाव, लगता है पूरब-पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के आदिवासियों को मिलाने के लिए हो रहा है, जो काफी सटीक और उपयुक्त प्रतीत होता है.
‘सेवा जोहार’ शब्द तात्कालिक आदिवासी कबीलाई और इनके परंपरा, संस्कृति, आध्यात्म से जुड़ाव को काफी मजबूती प्रदान किया है. साथ ही, ‘सेवा जोहार’ इस गोंडवाना प्रायद्वीप के आदिवासियों के बृहत् राजनीतिक, सामाजिक परिदृश्य को एक बेहतर प्रजातान्त्रिक स्थान दे रहा है और भविष्य में भी देता रहेगा. यह प्रजातान्त्रिक मजबूती और कबीलाई समुदायों के सहअस्तित्व, सामंजस्य और जुड़ाव का नायाब नमूना है, जिसमें धर्म, ईश्वर और समुदाय का प्रभाव नजर नहीं आता है, बल्कि इसकी व्यापकता और समस्त आदिवासी समुदायों की एकता का प्रतिनिधित्व करता है.
काल-खण्ड में धर्म रुपी साम्राज्यवाद जब आदिवासियों के बीच घुसता है तो “जोहार” का धार्मिक और ईश्वरीक रूपांतरण होने लगता है. हिन्दू और ईसाई धर्मालम्बियों के बीच में प्रचलित शब्द क्रमशः — ‘राम-राम’/ जय श्री राम, और जययेशु/ यीशु सहाय/ प्रेज द लार्ड है. धार्मिक समुदायों के बीच में प्रचलित ये अभिवादन अपने उनके मतावलम्बी को पहचानने और समरसता को प्रगाढ़ करने का अच्छा जरिया है.
झारखण्ड, छतीसगढ, ओड़िशा जैसे राज्यों में आदिवासी समुदाय बहुलता में है. इन धार्मिक मतावलम्बियों द्वारा अपने गढ़े गए शब्दों का आदिवासी समुदायों में धड़ल्ले से प्रवेश (पेनेट्रेशन) है, जो काफी हद तक आदिवासी समुदायों को अपने पक्ष में करने, और अपने साम्राज्य विस्तार का संघर्ष और महत्वकांक्षा प्रतीत होता है.
‘जोहार’ या ‘सेवा-जोहार’ किसी की बपौती नहीं है और ना ही इसपर किसी का कॉपीराइट है, लेकिन जब एक समुदाय, दूसरे समुदाय से धर्म और ईश्वर के लाग-लपेट के बिना एक होड़ (इंसान) की तरह मिलता है तो एक बृहत् ‘जोहार’ या ‘सेवा जोहार’ समुदाय का निर्माण होता है जिसका परिणाम बेहतर आदिवासी भविष्य के लिए सार्थक प्रतीत होता है.
हालाँकि, बीच-बीच में ‘जोहार’ का इस्तेमाल ‘धार्मिक’ और ‘ईश्वरीक’ स्वीकृति के लिए पेश किये जाते रहे हैं, ताकि जहाँ पर धार्मिक व्यापार का खेत उर्वर हों वहां अपनी व्यापकता बढ़ायी जा सके, जैसे — ‘मसीह जोहार’. इन सबके अलावा, स्कूल के नाम जैसे — ‘जीशु जाहेर हाई स्कूल’, ‘बिरसा शिशु विद्या मंदिर स्कूल’ भी अपने मत वाले धार्मिक और ईश्वरीय प्रभुत्व बढ़ाने के ही नमूने हैं.
‘जोहार’ की तरह ‘गोड़-लगी’ शब्द का इस्तेमाल भी बचपन से ही व्यापक तरीके से देख रहा हूँ लेकिन ‘जोहार’ या ‘सेवा-जोहार’ गोंडवाना प्रायद्वीप का आदिवासीय पहचान का पर्याय बन चुका है. ‘जोहार’ एक शब्द मात्र के इतर आदिवासी समरसता, एकता और प्रजातान्त्रिक राजनीति को एक व्यापक रूप देता है. इसकी व्यापकता और भी महत्वपूर्ण हो जायेगा अगर इसे बिना धर्म, समुदाय, जाति, ईश्वर का रंग लगाए इस्तेमाल किये जाएँ| मेरे ख़याल से, ‘जोहार’, ‘जोआर’, तथा ‘सेवा जोहार’ का प्रयोग काफी उपयुक्त लगता है. मेरे दृष्टिकोण से धर्म के धंधे वाले शब्द सिर्फ आदिवासी समूहों में सेंधमारी करके तोड़ने वाले रहे हैं.
गणेश मांझी (लेखक के निजी विचार हैं, वे IIT जोधपुर में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं)