आदिवासी भगवान कौन है?

आदिवासी समाज के धर्म और संस्कृति में “भगवान” की धारणा मुख्य रूप से प्रकृति और उनके पूर्वजों की पूजा पर आधारित है। आदिवासियों के लिए भगवान का स्वरूप पारंपरिक धार्मिक ग्रंथों से अलग होता है। वे प्रकृति, जल, जंगल, और जानवरों को ही पूजनीय मानते हैं क्योंकि उनका जीवन इन तत्वों पर निर्भर करता है। भारतीय संदर्भ में आदिवासी समाज के भगवान या देवता को समझने के लिए उनकी जीवनशैली, रीति-रिवाज, और सांस्कृतिक धरोहर को जानना आवश्यक है।

  1. प्रकृति-पूजा और उसके महत्व

आदिवासियों के लिए प्रकृति ही सर्वोच्च भगवान है। उनके धार्मिक अनुष्ठानों में सूर्य, चंद्रमा, धरती, नदी, और जंगल की पूजा होती है। उदाहरण के तौर पर, झारखंड, छत्तीसगढ़, और ओडिशा के आदिवासी “सिंबली”, “सरना” और “जाहेरथान” नामक स्थानों पर प्रकृति देवताओं की पूजा करते हैं। “सरना धर्म” में जल, जंगल, और जमीन को पवित्र मानते हुए उनकी रक्षा की जाती है।

  1. मूल देवता और उनके प्रतीक

भारतीय आदिवासी समाज के कई समूहों में विशिष्ट देवताओं की मान्यता है। जैसे:

See also  Tribal Man Dragged by Tourists in Wayanad: Police File Case

सरना धर्म: झारखंड और छत्तीसगढ़ में सरना धर्म मानने वाले लोग “सिंगबोंगा” (सूर्य भगवान) को सर्वोच्च मानते हैं।

भील और गोंड समाज: ये लोग “भगोरिया देव” और “धरती माता” की पूजा करते हैं।

संताल समुदाय: ये लोग “मारांग बुरु” (महान पहाड़) और “जाहेर आयो” (वन देवी) की पूजा करते हैं।

  1. आदिवासी संस्कृति और उनकी आध्यात्मिकता

आदिवासी भगवान का स्वरूप उनकी सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा है। उनके लिए भगवान कोई मूर्ति या विशाल मंदिर में रहने वाला देवता नहीं, बल्कि उनके आस-पास के प्रकृति के रूप में मौजूद है। उनकी पूजा पद्धति में कोई कर्मकांड नहीं होता, बल्कि सरलता और सामूहिकता का भाव होता है। वे नृत्य, गीत, और सामूहिक भोज के जरिए अपने देवताओं को प्रसन्न करते हैं।

  1. भारत में आदिवासी धर्म की विशेषता

भारत के विभिन्न आदिवासी समुदायों के भगवान अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनके मूलभूत तत्व समान हैं। वे हमेशा अपने समुदाय और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देते हैं। उनके भगवान कोई वर्चस्ववादी या दंड देने वाले नहीं, बल्कि संरक्षण देने वाले होते हैं।

  1. आधुनिक संदर्भ में आदिवासी धर्म
See also  लद्दाख के आदिवासी बहादुरी और बुद्ध में आस्था के लिए जाने जाते हैं: राष्ट्रपति

आज के समय में आदिवासी धर्म और भगवान की पहचान को बचाने के लिए विभिन्न आंदोलन हो रहे हैं। झारखंड में “सरना कोड” की मांग इसी दिशा में एक कदम है, ताकि आदिवासियों की पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित किया जा सके।

भारतीय आदिवासी समाज के भगवान मुख्य रूप से प्रकृति और पूर्वजों के रूप में हैं। वे अपने जीवन के हर पहलू में प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। आदिवासियों की इस धार्मिक परंपरा ने यह सिखाया है कि भगवान किसी रूप में नहीं, बल्कि हर जगह मौजूद हैं, खासकर वहां जहां से जीवन संचालित होता है। यह भारतीय समाज और संस्कृति के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन