उधम सिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में साहस और बलिदान की प्रतीक है। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडियन एसोसिएशन की बैठक में उन्होंने ब्रिटिश राज के अधिकारी माइकल ओ’डवायर की हत्या कर जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लिया। यह वही ओ’डवायर थे जिन्होंने जनरल डायर के जालियांवाला बाग में निर्दोष भारतीयों पर गोलियां चलाने के कदम का समर्थन किया था।
कैसे किया बदला?
उधम सिंह ने एक किताब में बंदूक छिपाकर सभा में प्रवेश किया। जैसे ही सभा खत्म हुई, उन्होंने माइकल ओ’डवायर के सीने में दो गोलियां दाग दीं। ओ’डवायर मौके पर ही मारा गया। अन्य ब्रिटिश अधिकारी घायल हुए, लेकिन उधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की। गिरफ्तारी के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया, और 31 जुलाई 1940 को लंदन की पेंटनविल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
उधम सिंह का जीवन: संघर्ष और प्रेरणा
26 दिसंबर 1899 को पंजाब के सुनाम गांव में जन्मे उधम सिंह का बचपन कठिनाइयों से भरा था। माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया, और उन्होंने अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण ली। अनाथालय में उन्हें नया नाम “उधम सिंह” मिला।
1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार ने उनके जीवन पर गहरा असर छोड़ा। इस घटना ने उनके भीतर क्रांति की ज्वाला जगा दी। 1924 में वे गदर पार्टी से जुड़े और कई देशों की यात्रा कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धन और समर्थन जुटाया।
जेल की सजा और ड्वॉयर की हत्या की योजना
1927 में भारत लौटने पर उन्हें प्रतिबंधित हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और पांच साल जेल की सजा हुई। जेल से छूटने के बाद भी उनकी गतिविधियों पर नजर रखी गई। लेकिन उधम सिंह ने कश्मीर के रास्ते जर्मनी और फिर लंदन का रुख किया। वहां उन्होंने माइकल ओ’डवायर को मारने की योजना को अंतिम रूप दिया।
एक अमर बलिदान
उधम सिंह का बलिदान केवल बदले की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया। उनकी अंतिम इच्छा और शब्द उनके देश के प्रति उनके समर्पण को व्यक्त करते हैं। आज उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता की कीमत साहस, त्याग, और अटूट विश्वास से चुकाई जाती है।
उधम सिंह को नमन, जिनकी वीरता और बलिदान ने हमें गर्व करने का अवसर दिया।