मृत्यु संस्कार प्रत्येक जाति और समुदाय में विशिष्ट विधियों के माध्यम से संपन्न होता है। उरांव समुदाय में भी मृत्यु संस्कार की अपनी अनूठी परंपराएं हैं, जो क्षेत्र विशेष के आधार पर कुछ भिन्न हो सकती हैं। इनमें चिन्दी केसना (राख फटकना), ए-ख़ मंख़ना (छांह भितारना), खोचोल पेसना (हड्डी चुनना), और उतुर खिलना जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
कोंहा बेंजा का महत्व
कोंहा बेंजा, उरांव समाज के मृत्यु संस्कार का अंतिम चरण है। इस प्रक्रिया के पूरा होने तक गांव को अशुद्ध माना जाता है। इस दौरान गांव के लोग बाहर जाने या कृषि कार्य करने से बचते हैं। कोंहा बेंजा में मृत व्यक्तियों की हड्डियों को छोटे मटकों (भंडा) में रखकर विशेष स्थान (कुण्डी) में डुबोया जाता है।
भूईहरी परंपरा और पुलखी पत्थर
अधिकांश उरांव गांवों में एक सामूहिक कुण्डी होती है, जहां सभी परिवारों की हड्डियां डुबोई जाती हैं। यदि किसी परिवार ने अपने भूईहरी गांव से हड्डियां डुबोने की परंपरा छोड़ दी हो, तो वे नए गांव की कुण्डी का उपयोग करते हैं। कुण्डी के पास हर परिवार या वंश के लिए पुलखी पत्थर (पहचान चिह्न) होता है, जिसे विशेष विधियों से पूजा जाता है।
हड्डी डुबोने की प्रक्रिया
कोंहा बेंजा के दिन स्त्रियां भंडा को हाथों में लेकर नृत्य करती हुई जुलूस में शामिल होती हैं। गांव के पुरुष भी उनके साथ नृत्य करते हैं। यह परंपरा कुछ गांवों में समाप्त हो चुकी है, लेकिन कुण्डी में हड्डी डुबोने की रस्म आज भी कायम है।
स्त्रियां अधपके चावल, खिचड़ी, या रोटी लेकर कुण्डी के पास जाती हैं और पुलखी पत्थर पर तेल, पानी, और खैनी-चूना चढ़ाती हैं। इसके बाद पुरुष भंडा को पुलखी पत्थर पर फोड़कर हड्डियों को नदी या जलस्रोत में विसर्जित कर देते हैं।
शुद्धिकरण और गांव लौटने की परंपरा
हड्डी डुबोने के बाद गांव का पाहन (पुजारी) हल्दी और तेल का मिश्रण कुण्डी और नदी के आसपास छिड़कता है। स्नान और शुद्धिकरण के बाद सभी लोग गांव लौटते हैं। घरों में धान के भूसे पर अग्नि जलाकर और हल्दी-तेल का प्रयोग कर शुद्धिकरण की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
जतरा और सामूहिक भोज
इसके बाद गांव के युवक-युवतियां जुलूस और नृत्य करते हैं, जिसे हड़बेरा जतरा कहा जाता है। शाम को गांव के गोड़ाईत सभी को अगले दिन अखड़ा में इकट्ठा होने का संदेश देते हैं। अखड़ा में मृतक परिवार से लाए गए अन्न और हड़िया से सामूहिक भोज का आयोजन होता है। पाहन मृतकों के नाम पर तेल गिराकर उनकी विदाई करता है।
पद्दाकमना: गांव की शुद्धि
कोंहा बेंजा की समाप्ति के बाद पद्दाकमना (गांव शुद्धिकरण) किया जाता है। पाहन पानी, हल्दी, और तेल के साथ गांव के प्रत्येक कोने में जाकर शुद्धिकरण करता है और मृतकों को संबोधित करते हुए गांव को फिर से स्वच्छ और पवित्र घोषित करता है। इस अवसर पर सूर्य देवता को बलि भी दी जाती है।
आज की स्थिति
समय के साथ कोंहा बेंजा के कई परंपरागत पहलू समाप्त हो गए हैं, लेकिन कुण्डी में हड्डी डुबोने की परंपरा अधिकांश उरांव गांवों में आज भी जारी है। यह संस्कार न केवल मृतकों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि समुदाय को उसकी जड़ों और संस्कृति से जोड़ने का माध्यम भी है।