मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के लोढ़ा गाँव में जन्मी जोधैया बाई बैगा (Jodhaiya bai baitha) ने बैगा जनजाति की पारंपरिक कला को न केवल जीवित रखा, बल्कि इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाया। 86 वर्षीय इस महान कलाकार का रविवार, 15 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। वह पिछले 11 महीनों से बीमार थीं, और इसी साल 24 जनवरी को उन्हें पैरालिसिस का आघात हुआ था। उनके निधन से भारत की जनजातीय कला को एक गहरा आघात पहुँचा है।
कला की यात्रा: जंगल से विश्व पटल तक
जोधैया बाई का जन्म 1938 में हुआ था। उनका बचपन उमरिया जिले के जंगलों के बीच बीता, जहाँ बैगा जनजाति की पारंपरिक जीवनशैली और प्रकृति के साथ सामंजस्य ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा। यहीं से उन्होंने अपनी कला के बीज लिए, जो बाद में उनके जीवन का मुख्य आधार बना।
उन्होंने बैगा जनजाति की विशिष्ट शैली को अपनाया, जो प्रकृति से गहराई से प्रेरित थी। उनके चित्रों में जानवर, पक्षी, वृक्ष, और ग्रामीण जीवन के दृश्य प्रमुखता से उभरते थे। इन चित्रों में न केवल सौंदर्य था, बल्कि यह उनकी संस्कृति, परंपराओं और विश्वासों का दस्तावेज़ भी थे।
उनकी कला में विशेषता यह थी कि वह प्राकृतिक रंगों का उपयोग करती थीं, जो मिट्टी, चारकोल और पौधों से बनाए जाते थे। उन्होंने हाथ से बने कागज और कपड़े पर अपनी रचनाएँ बनाई, जो उनकी कला को और विशिष्ट बनाते थे।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ और तारीखें
- 2005: कला की पहचान
जोधैया बाई की कला को पहली बार भारत भवन, भोपाल में प्रदर्शित किया गया। यह वह समय था जब उनकी कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हुई। - 2013: सम्मान का पहला पड़ाव
उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा “शिखर सम्मान” से नवाजा गया, जो राज्य का सर्वोच्च कला पुरस्कार है। यह सम्मान उनकी कला की गहराई और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पण को मान्यता देता है। - 2021: अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शन
जोधैया बाई की रचनाओं को फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में प्रदर्शित किया गया। उनकी कला ने भारतीय जनजातीय जीवन की सरलता और गहराई को वैश्विक दर्शकों तक पहुँचाया। - 2023: पद्म श्री से सम्मानित
2023 में, भारत सरकार ने जोधैया बाई को “पद्म श्री” से सम्मानित किया, जो भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में उनकी कला और उनके योगदान को मान्यता देता है। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी।
सांस्कृतिक संरक्षण और योगदान
जोधैया बाई ने अपनी कला को जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने का माध्यम बनाया। वह अपनी कला के माध्यम से बैगा जनजाति के विश्वासों, परंपराओं और जीवनशैली को प्रदर्शित करती थीं।
उनका मानना था कि कला केवल सजावट का माध्यम नहीं, बल्कि अपनी विरासत को संरक्षित और व्यक्त करने का तरीका है। उन्होंने कई युवा कलाकारों को प्रशिक्षित किया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बैगा कला की परंपरा अगली पीढ़ी तक पहुँचे।
विरासत और प्रेरणा
जोधैया बाई का जीवन और उनकी उपलब्धियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं। उनकी कला न केवल बैगा जनजाति के लिए गर्व का विषय बनी, बल्कि यह आधुनिक समाज को पर्यावरण, प्रकृति और सामुदायिक जीवन के महत्व को समझाने का माध्यम भी बनी।
महत्वपूर्ण तिथियों का संक्षेप:
1938: जन्म, लोढ़ा गाँव, उमरिया।
2005: भारत भवन, भोपाल में पहली प्रदर्शनी।
2013: “शिखर सम्मान” से सम्मानित।
2021: कला का अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन।
2023: “पद्म श्री” प्राप्त किया।
15 दिसंबर 2024: निधन।
जोधैया बाई बैगा का जाना भारतीय जनजातीय कला जगत के लिए एक युग का अंत है। उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत न केवल बैगा कला को जीवित रखेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी संस्कृति और परंपरा के प्रति जागरूक बनाएगी।
जोधैया बाई बैगा को हमारी भावपूर्ण श्रद्धांजलि।