संत रविदास के प्रसिद्ध विचार और उनका सामाजिक संदेश

संत रविदास 15वीं-16वीं शताब्दी के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे और उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उनके विचार आज भी प्रेरणादायक हैं और मानवता के मूल्यों को सिखाते हैं।

1. मन की पवित्रता का महत्व

संत रविदास का सबसे प्रसिद्ध कथन है – “मन चंगा तो कठौती में गंगा।” इसका अर्थ है कि यदि मन शुद्ध है तो कहीं भी पवित्रता और आध्यात्मिकता प्राप्त की जा सकती है। वे बाहरी आडंबरों से ज्यादा आंतरिक पवित्रता को महत्व देते थे। उनका मानना था कि सच्ची भक्ति मन की शुद्धता से आती है, न कि तीर्थ यात्रा या बाहरी धार्मिक क्रियाओं से।

2. जात-पात और भेदभाव का विरोध

संत रविदास सामाजिक समानता के समर्थक थे। उन्होंने कहा – “जात-पात के फेर में, ऊँच-नीच न मान।” उनका संदेश था कि सभी मनुष्य समान हैं और किसी की जाति से उसकी श्रेष्ठता या निम्नता निर्धारित नहीं की जा सकती। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत और ऊँच-नीच की भावना का कड़ा विरोध किया।

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उनका एक और प्रसिद्ध दोहा है –
“रविदास जन्म के कारणे, होत न कोउ नीच।
नर को नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।”

इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच या उच्च नहीं होता, बल्कि उसके कर्म उसे श्रेष्ठ या निकृष्ट बनाते हैं।

3. समानता पर आधारित समाज की कल्पना

संत रविदास ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहाँ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो और सभी को समान अधिकार मिले। उन्होंने अपने विचारों को इस तरह व्यक्त किया –

“ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।”

उनका सपना एक आदर्श समाज (बेगमपुरा) का था, जहाँ कोई दुख, भेदभाव या अन्याय न हो।

4. भक्ति और सच्ची आध्यात्मिकता

संत रविदास ने बाहरी दिखावे की जगह सच्ची भक्ति को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा –

“भगति बिना क्या जाति हमारे,
मोहि न भावै वैद की विद्या, मोहि न भावै साधु की सिधि।”

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वे मानते थे कि केवल ज्ञान या चमत्कारी शक्तियों से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि प्रेम और भक्ति ही असली मार्ग है।

निष्कर्ष

संत रविदास के विचारों ने समाज को समानता, भाईचारे और मानवता का मार्ग दिखाया। वे समाज के शोषित वर्ग के लिए एक प्रकाशस्तंभ थे और उनके संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उनके दोहे हमें सिखाते हैं कि मनुष्य को जात-पात, ऊँच-नीच से ऊपर उठकर कर्म और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए। उनका सपना एक ऐसे समाज का था, जहाँ सबको समान अधिकार मिले और कोई भी भेदभाव न हो।

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