दुर्गा बाई व्योम: गोंड कला से पद्मश्री तक की प्रेरणादायक यात्रा

दुर्गा बाई व्योम का नाम भारतीय लोककला के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वह मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और अपनी गोंड कला के लिए प्रसिद्ध हैं। दुर्गा बाई व्योम की यात्रा न केवल उनकी कलात्मक उपलब्धियों की कहानी है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देती है।

प्रारंभिक जीवन

दुर्गा बाई का जन्म 1973 में मध्य प्रदेश के मंडला जिले के छोटे से गांव में हुआ। वह गोंड आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं, जो प्रकृति और परंपराओं से गहरे जुड़े हुए हैं। उनका बचपन आर्थिक कठिनाइयों और सीमित संसाधनों के बीच बीता, लेकिन उन्होंने अपनी पारंपरिक गोंड कला में रुचि बचपन से ही दिखानी शुरू कर दी। उनके माता-पिता ने उन्हें उनकी संस्कृति और परंपराओं से जोड़े रखा, जो आगे चलकर उनकी कला में झलका।

कला की यात्रा

दुर्गा बाई ने पारंपरिक गोंड चित्रकला को अपनी पहचान बनाई। गोंड कला में प्रकृति, पौराणिक कथाओं, जनजीवन और आदिवासी परंपराओं का चित्रण किया जाता है। दुर्गा बाई की चित्रकला में गहराई, जीवंतता और सांस्कृतिक मूल्य होते हैं। उन्होंने अपनी कला को केवल परंपराओं तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे आधुनिक दृष्टिकोण से भी जोड़ा।

See also  उत्तर प्रदेश: आदिवासी युवती से छेड़छाड़, विरोध करने पर खौलते तेल में धकेला

उनकी चित्रकला में जीवंत रंगों का उपयोग और जटिल पैटर्न प्रमुख विशेषताएं हैं। पेड़, जानवर, देवी-देवता और आदिवासी जीवन उनकी पेंटिंग के प्रमुख विषय होते हैं। उनकी कला को देश और विदेश में सराहा गया है।

संघर्ष और पहचान

दुर्गा बाई का जीवन आसान नहीं था। उन्हें समाज में आदिवासी होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा, और आर्थिक कठिनाइयों ने उनकी कला यात्रा को और चुनौतीपूर्ण बना दिया। लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और कला के प्रति समर्पण ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका नहीं। उन्होंने कला प्रदर्शनियों में भाग लिया और धीरे-धीरे अपनी पहचान बनानी शुरू की।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान

दुर्गा बाई की कला ने उन्हें भारत और विदेशों में ख्याति दिलाई। उनकी पेंटिंग्स को कई प्रमुख प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया गया, और उनकी अनूठी शैली ने कला समीक्षकों और आम जनता का ध्यान खींचा। उन्होंने कई किताबों के लिए भी चित्र बनाए, जिनमें बच्चों की किताबें प्रमुख हैं।

See also  महाराष्ट्र: नासिक में आदिवासियों ने दूसरा धर्म अपनाने वालों को एसटी सूची से हटाने की मांग की

पद्मश्री सम्मान

दुर्गा बाई व्योम को उनकी कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए 2022 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में उनकी कला यात्रा का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह सम्मान न केवल उनके व्यक्तिगत योगदान का प्रतीक है, बल्कि आदिवासी कला और संस्कृति को मुख्यधारा में पहचान दिलाने का प्रयास भी है।

प्रेरणा और योगदान

दुर्गा बाई व्योम न केवल एक कलाकार हैं, बल्कि वह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा भी हैं। उन्होंने दिखाया कि सीमित साधनों और कठिनाइयों के बावजूद, अगर समर्पण और दृढ़ता हो, तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनकी कहानी भारत की सांस्कृतिक धरोहर की महत्ता को भी रेखांकित करती है।

दुर्गा बाई व्योम का जीवन और कला यह सिखाते हैं कि अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़े रहते हुए भी वैश्विक पहचान बनाई जा सकती है। उनका पद्मश्री तक का सफर हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों से लड़ते हुए अपने सपनों को साकार करना चाहता है।

See also  हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में आदिवासियों को भी डाले केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन