हाल ही में स्विट्जरलैंड ने भारत से “मोस्ट फेवर्ड नेशन” (MFN) का दर्जा वापस ले लिया, जिससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर प्रभाव पड़ सकता है। यह फैसला भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा MFN प्रावधानों पर दिए गए हालिया निर्णय और टैक्स संधियों को लेकर हुए विवादों का परिणाम है। इस घटनाक्रम ने भारत में लगभग 100 बिलियन डॉलर के स्विस निवेश पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है MFN दर्जा और इसका महत्व?
“मोस्ट फेवर्ड नेशन” (MFN) दर्जा विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत देशों को समान व्यापारिक अवसर और सुविधाएं प्रदान करने की नीति है। इसके तहत एक देश दूसरे देश के उत्पादों और सेवाओं को सबसे कम टैरिफ, उच्चतम आयात कोटा, और न्यूनतम व्यापार बाधाओं के साथ बाजार तक पहुंचने की अनुमति देता है।
भारत और स्विट्जरलैंड के बीच यह दर्जा कई दशकों से लागू था, जिससे दोनों देशों को व्यापारिक संबंधों में फायदा हुआ। लेकिन हालिया घटनाओं ने इस संबंध को झटका दिया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और विवाद की शुरुआत
भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कई टैक्स संधियां की गई थीं, जिनमें MFN प्रावधान शामिल थे। इसके तहत स्विट्जरलैंड और अन्य देशों को टैक्स में छूट दी जाती थी, जो भारत ने अन्य OECD देशों के साथ पहले से निर्धारित की थी। हालांकि, 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट और 2022 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने इस व्यवस्था को लेकर संदेह जताया।
इस साल, भारत की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि MFN प्रावधानों को लागू करने के लिए भारत सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करना जरूरी है। यह फैसला स्विट्जरलैंड जैसे देशों के लिए झटका था, क्योंकि उनके निवेशकों को पहले से लागू टैक्स छूटों पर निर्भरता थी। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, “प्रत्येक देश को टैक्स नियमों की व्याख्या और उनका क्रियान्वयन अपने अनुसार करने का अधिकार है”।
स्विट्जरलैंड की प्रतिक्रिया
स्विट्जरलैंड ने इस फैसले को “अनुचित और अनुबंध के खिलाफ” बताया। उनका तर्क था कि जब भारत ने अन्य OECD देशों को कम टैक्स दरें प्रदान की हैं, तो स्विट्जरलैंड के निवेशकों को भी वही लाभ मिलना चाहिए। भारत की नई स्थिति को देखते हुए स्विट्जरलैंड ने MFN का दर्जा वापस लेने का निर्णय किया।
स्विस निवेशक भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में कई वर्षों से सक्रिय रहे हैं। भारतीय उद्योगों में स्विस निवेश ने मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा दिया है। लेकिन अब टैक्स में बढ़ती अनिश्चितता से यह निवेश प्रभावित हो सकता है।
भारत के लिए संभावित असर
भारत में स्विस कंपनियों का लगभग 100 बिलियन डॉलर का निवेश है। इसमें फार्मास्यूटिकल्स, बैंकिंग, और मशीनरी जैसे क्षेत्र प्रमुख हैं। लेकिन MFN दर्जा हटाने के बाद स्विट्जरलैंड की कंपनियां अपने व्यापारिक हितों को पुनः परख सकती हैं।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि टैक्स मामलों में स्पष्टता नहीं आई, तो भारत विदेशी निवेश के मामले में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खो सकता है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के अन्य देश भी इसी प्रकार की शिकायत कर सकते हैं, जिससे भारत के विदेशी निवेश का परिदृश्य और अधिक जटिल हो जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
टैक्स मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद भारत की “टैक्स स्थिरता” की छवि को कमजोर कर सकता है। हालांकि, सरकार का पक्ष है कि “अधिसूचना अनिवार्यता” का फैसला देश के टैक्स हितों की रक्षा करने के लिए लिया गया है।
भारत को अपने टैक्स नियमों में सुधार लाने और MFN प्रावधानों की व्याख्या को अधिक पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
क्या हो सकता है समाधान?
पुनर्विचार और बातचीत: भारत और स्विट्जरलैंड के बीच उच्चस्तरीय वार्ता इस विवाद को सुलझाने में मदद कर सकती है।
संधियों में संशोधन: भारत को टैक्स संधियों में लचीलापन और स्पष्टता लाने के लिए नई शर्तें तय करनी चाहिए।
विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ाना: टैक्स मामलों में स्थिरता और पारदर्शिता लाकर भारत विदेशी निवेशकों को आश्वस्त कर सकता है।
भारत और स्विट्जरलैंड के बीच MFN दर्जा विवाद ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश पर गहरा प्रभाव डाला है। भारत की सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार अपनी टैक्स नीति के मामलों में स्वतंत्र है, लेकिन इसे वैश्विक निवेशकों की चिंताओं को भी ध्यान में रखना होगा।
यदि इस विवाद का समाधान जल्दी नहीं निकाला गया, तो यह अन्य विदेशी निवेशकों के लिए भी नकारात्मक संकेत बन सकता है। भारत के लिए अब चुनौती यह है कि वह अपनी टैक्स नीतियों को संतुलित रखते हुए विदेशी निवेशकों का विश्वास बहाल करे।