झारखंड के सरकारी स्कूलों में अक्सर संसाधनों की कमी, कमजोर आधारभूत संरचना और पढ़ाई के प्रति उदासीनता की खबरें सामने आती हैं। लेकिन बोकारो जिले के एक छोटे से गांव में स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय दांतु ने इस धारा को बदलने की कोशिश की है। साधारण दिखने वाले इस स्कूल के छात्र-छात्राएं तकनीकी नवाचार में न केवल रुचि ले रहे हैं, बल्कि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सोलर लाइट, एलईडी बल्ब जैसी उपयोगी चीजें बनाकर आत्मनिर्भरता की मिसाल भी पेश कर रहे हैं।
राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का दायरा अब केवल किताबों तक सीमित नहीं रह गया है। राँची से लगभग 80 किलोमीटर दूर बोकारो जिले के कसमार प्रखंड स्थित उत्क्रमित उच्च विद्यालय दांतु के छात्र-छात्राएं अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं। ये छात्र अतिरिक्त समय में एलईडी बल्ब और सोलर लाइट बनाने जैसी तकनीकी गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं, जिससे उनकी तकनीकी दक्षता बढ़ रही है।
यह रिपोर्ट Earth Journalism Network के फील्ड विजिट के दौरान सामने आई, जहाँ टीम ने स्कूल में हो रहे नवाचारों को नजदीक से देखा और छात्रों से बातचीत की।
यह स्कूल देखने में भले ही साधारण लगता हो, लेकिन इसकी गतिविधियाँ इसे विशिष्ट बनाती हैं। झारखंड के सरकारी स्कूलों में जहाँ अधिकांश जगहों पर छात्र-छात्राएं किसी तरह परीक्षा पास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वहीं इस विद्यालय में तकनीकी नवाचार का माहौल तैयार हुआ है। यह प्रयास इसे राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों से अलग और प्रेरणादायक बनाता है।
इस पहल की शुरुआत वर्ष 2020 में पीएचडी छात्र अनिमेष ने की थी। अनिमेष ने विद्यार्थियों को तकनीकी ज्ञान देने के उद्देश्य से स्वयंसेवी रूप में यह कार्यक्रम शुरू किया। स्कूल प्रबंधन की अनुमति से छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं चलाई जा रही हैं।
दांतु गांव के मुखिया चंद्रशेखर नायक बताते हैं कि आरंभ में अभिभावक संकोचवश अपने बच्चों को इन कक्षाओं में भेजने से हिचकते थे। लेकिन जब उन्हें इसके महत्व का एहसास हुआ तो वे स्वयं बच्चों को भेजने लगे। मुखिया के अनुसार, आज ये छात्र छोटे-छोटे उपकरण बनाकर स्थानीय स्तर पर उद्यमिता की ओर बढ़ रहे हैं। गांव में टेंट लाइट की भारी मांग है, जिसकी बिक्री में छात्र भी सहयोग कर रहे हैं।

स्कूल की छात्रा अर्पणा कुमारी बताती हैं कि उन्हें एक इंटर्नशिप के माध्यम से खराब एलईडी बल्ब सुधारने का प्रशिक्षण मिला। “पहले गांव में खराब बल्ब फेंक दिए जाते थे, अब हम उन्हें ठीक कर पुनः उपयोग कर पा रहे हैं,” अर्पणा ने कहा।
वहीं, छात्र रतन कुमार ने बिजली की कमी को देखते हुए अपने घर के लिए एक छोटा सोलर ट्री तैयार किया है। रतन भविष्य में किसानों के फसलों पर लगने वाले कीड़ों को पहचानने के लिए एक रोबोट विकसित करना चाहते हैं।
ग्यारहवीं की छात्रा सुहानी कुमारी भी सोलर प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। वह खराब हो चुके पंखों को सोलर फैन में बदलने की दिशा में प्रयासरत हैं।
इसके अलावा छात्रा साजमी गांव में केंद्र सरकार की कुसुम योजना के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। वह ग्रामीणों को सौर ऊर्जा अपनाने और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
दांतु विद्यालय का यह प्रयास न केवल छात्रों को तकनीकी रूप से सक्षम बना रहा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता और ग्रामीण उद्यमिता की ओर भी अग्रसर कर रहा है। यह मॉडल राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।
रिपोर्ट: विजय उराँव, Earth Journalism Network फील्ड विजिट टीम के साथ।
क्रेडिट: यह स्टोरी Earth Journalism Network के फील्ड विजिट कार्यक्रम के दौरान संकलित की गई।