प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी धुमकुड़िया ने आदिवासी विषयों पर नयी सोच, कला, चित्रकला और शोधपत्र के आमंत्रित किया है। धुमकुड़िया आदिवासियों का एक वैचारिक संगठन है।
क्या है धुमकुड़िया
धुमकुड़िया उरांव जनजाति के बीच एक पारंपरिक शैक्षणिक संस्थान है, यह संस्थान सांस्कृतिक, धार्मिक, व्यावसायिक और जीवित रखने का सबब तथा पुरखों से सिखने का केंद्र है। सामान्तर संस्थान में गिती-ओड़ा (संथाल आदिवासी), घोटूल (गोंड आदिवासी) और सेल्नेडिंगों (बोंडा आदिवासी) है। जहां शिक्षा का तरीका मौखिक है और यह आज भी जीवित अवस्था में है। आज के परिदृश्य में ‘ धुमकुड़िया’, आदिवासियों को ऐतिहासिक रूप में नकारात्मक तरीके से प्रदर्शित करने को नकारता है, वैकल्पिक विकास की संकल्पना जो की आदिवासी दर्शन के अनुसार टिकाऊ है को स्वीकार करता है| अस्तित्व, आदिवासियों के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक है और ‘धुमकुड़िया’ टिकाऊ विकास के जनजातीय जीवन के विभिन्न घटकों के लिए मंच प्रदान करता है। जीवन के इन सवालों को ‘धुमकुड़िया’ महत्वपूर्ण स्थान देता है साथ ही भूत के शैक्षणिक विरासत को वर्तमान और भविष्य के शिक्षा से जोड़ने का संकल्प लेता है|
धुमककुड़िया क्यों
चर्चा और बहस की दुनिया में जनजाति और उनके जीवन को सबसे अनदेखी और हाशिए पर रखे जाते हैं, और उनके विचारों को शायद ही कभी बहुत महत्व देकर सुना जाता है। यद्यपि आदिवासी पहले से ही थोपी गयी तमाम किस्म के विचारधाराओं में फंसे हुए हैं और अपने मजबूत दर्शन से बेखबर हैं तथापि आने वाले समय में धुमकुड़िया के संसर्ग में पनपने वाले विचार और दर्शन को इतिहास नहीं रोक पायेगा| ऐतिहासिक रूप से, प्रमुख सभ्यता हमेशा श्रेष्ठ रूप में देखी जाती है और बाकी सभ्यताएं उनके द्वारा लिखित वृतांतों के मार्ग का पालन करने का प्रयास करती है। प्रमुख सभ्यता का निर्माण करने के लिए, विषमता के बावजूद, पृष्ठभूमि निर्माण, सकारात्मक लेखन बहुत ही महत्वपूर्ण है।
लैटिन अमेरिकी विद्वान, ग्रिमाल्डो रेंगीफो वास्केज के अनुसार “स्थानीय आदिवासी सोच में, जीवित ज्ञान है जो चीजों की प्रकृति के बारे में बहुत से पूर्व तथ्यों को इकट्ठा नहीं करता है। आपको जानना है तो आपको जीना है। कई टिप्पणीकार पश्चिमी ज्ञान को आदिवासी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण और रणनीतिक रूप से जरूरी मानते हैं पश्चमी विचारों में काफी पूर्वाग्रहें भी निहित हैं जो यदा-कदा आदिवासियों के लिए असभ्य शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं और आदिवासी सोच को निम्नतर समझने और उसे दरकिनार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है| फलस्वरूप आदिवासियों को उनके पारम्परिक जीवन पद्धति, प्राकृतिक शिक्षा पद्धति, भाषा इत्यादि से महरूम ही रखा गया है|
इस समय विद्वानों को सामुदायिक रूप से सीखने के प्रामाणिक तरीकों पर जोर देना चाहिए जिसमें पारिस्थितिक, आध्यात्मिक इत्यादि का भी महत्वपूर्ण स्थान है| सीखने का यह एक रूप है और यह जानकर कि आदिवासी आंदोलन स्कूलों और सीखने की अन्य स्थानों में पुनरुत्थान, मूल्य, सम्मान को निहित करना चाहता है, न केवल अपने बच्चों के लाभ के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के बचाने के लिए।
मूल विचार यह है कि, आप मांसाहारी शेरों द्वारा शासित साम्राज्य में रह रहे हैं और दुर्भाग्यवश, ‘हिरण का इतिहास शेरों द्वारा कभी नहीं लिखा जा सकता है, जब तक हिरण अपना खुद का इतिहास न लिख रहा हो’। अब जब आदिवासी विद्वान अकादमिक दुनिया में बहुत मुखर हैं, केवल वस्तु और दर्शक बने रहना अपराध है। हालांकि, आदिवासी पहले से ही लंबे समय से यात्रा कर चुके हैं कुछ पथदर्शी लोगों द्वारा पोषित हैं, लेकिन अब और भी लम्बी यात्रा के लिए जाने की जरूरत है, जहां हम आने वाले भविष्य में कुछ और मील का पत्थर स्थापित करने की उम्मीद कर सकते हैं।
आदिवासियों से सम्बंधित — गरीबी, भूख, संवैधानिक अधिकार, संस्कृति परंपरा, और अधिक (गैर) सभ्य समाज में शामिल होने, अस्तित्व बचाने के लिए प्रतिरोध, अक्सर समाचार होते हैं| सम्मानित जीवन तो हर कोई जीना चाहता है और उसके लिए संघर्ष भी करना चाहता है और इसमें आदिवासी समाज अपवाद नहीं है। भारत में जनजातियों के उत्थान के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा बहुत प्रयास किये गए हैं साथ ही आदिवासी खुद भी अपने तरीके से प्रयास किये हैं और दोनों प्रयास अक्सर अलग दिशाओं में जाती हैं| सरकारी प्रयासों में, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के माध्यम से पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की जीवन शैली उनमें से एक है। वैकल्पिक रूप से, एक व्यक्ति (आदिवासी) पूरे मानव जीवन में पूंजी की उत्पादक क्षमता को बनाए रखने के माध्यम से सतत विकास की परिधि में सोचता है। इस तरह के वैकल्पिक विचार से विश्व के कोई भी आदिवासी समुदाय अछूता नहीं है, चाहे वो माओरी हो या मोहोक, या भारत के जनजाति।
इन विषयों पर धुमकुड़िया ने मंगाए हैं शोधपत्र
“धुमकुड़िया – 2023”, आपलोगों से शोधपत्र/ कला और चित्र/नयी सोच निम्नलिखित विषयों पर आमंत्रित करता है:
(1) संस्कृति और परंपरा
• आधुनिक जीवन शैली और पारंपरिक जीवन शैली की संगतता।
• वर्तमान समय में रीति-रिवाजों और परंपराओं का अभ्यास।
• भाषा, साहित्य, कला, संगीत और रीति-रिवाज के लिए चुनौतियां।
• संस्कृति, परंपरा और सुधार।
(2) संवैधानिक अधिकार और स्वायत्तता
• संविधान और मानवाधिकार।
• जनजातियों के बीच लोकतंत्र और कानून।
• परंपरागत कानून और संविधान।
(3) वैश्वीकरण के समय में आदिवासी
• वैश्वीकरण की दुनिया में आदिवासी।
• आदिवासियों के बीच सामाजिक संस्थानों की आवश्यकता।
• आदिवासी समाज और सामाजिक बुराइयाँ जैसे — डाईन प्रथा, दहेज, अपराध और भ्रष्टाचार।
• वैश्वीकरण की दुनिया में आदिवासियों के बीच लोकतंत्र और एकता।
• सामूहिकता और समाजवाद की भावना।
(4) शिक्षा और स्वास्थ्य
• आदिवासियों के बीच शिक्षा और स्वास्थ्य।
• पारंपरिक शिक्षा संस्थान बनाम आधुनिक शैक्षणिक संस्थान।
• आदिवासियों की शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
• समाज में आदिवासी बौद्धिकता की भूमिका।
• शिक्षा और विकास।
(5) इतिहास निर्माताओं के रूप में आदिवासी
• आदिवासियों में मेगालिथिक परम्परा।
• इतिहास लेखन का महत्व।
• इतिहास बनाने का महत्व।
(6) लिंग समानता
• लिंग समानता और आदिवासी।
• आदिवासियों के बीच लिंग और अपराध।
(7) खाद्य और आजीविका
• पारंपरिक खाद्य बनाम फास्ट फूड।
• वन उत्पाद, बाजार और प्रबंधन।
(8) शिक्षा और आर्थिक विकास
• सतत विकास और आदिवासी।
• आदिवासियों के बीच पूंजी।
(9) साहित्य
• आदिवासी साहित्य और उनका इतिहास।
• साहित्य, संगीत और गीत।
(10) कृत्रिक ज्ञान के समय में आदिवासी
• आदिवासी और प्रौद्योगिकी।
• सतत प्रौद्योगिकी और आदिवासी।
(11) आदिवासी और पर्यावरण
• आदिवासियों के लिए आजीविका के रूप में प्रकृति।
• प्राकृतिक संसाधन और आदिवासी।
(12) आदिवासियों के बीच कृषि और उद्योग
• उद्योग के रूप में कृषि।
• पारंपरिक कृषि एवं आजीविका।
(13) जल और वन संसाधन
• वन संसाधन प्रबंधन|
• जल संकट एवं जल संसाधन|
• जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधन।
(14) आदिवासी चिकित्सा और उपचार तंत्र
• पारंपरिक आदिवासी चिकित्सा।
• पारंपरिक बनाम आधुनिक उपचार तंत्र।
• संगीत चिकित्सा
(15) लोकगीत और लोककथाओं
• पारम्परिक एवं आधुनिक कथा वाचन।
• कल्पित और अकल्पित कहानियां।
(16) अर्थव्यवस्था एवम व्यवसाय
• आदिवासियों के बीच व्यवसाय।
• अर्थव्यवस्था एवं सघन पलायन।
• विस्थापन एवं मानव तस्करी।
इसके अलावा यदि आपकी दृष्टि, कल्पना और संभावित लेख उक्त विषयों के बाहर आता है लेकिन आदिवासियों और उनके दर्शन से सम्बंधित है तथा आपका पेपर अंतिम रूप से चयनित होता है तो ‘धुमकुड़िया – 2023′ में उसे आप प्रस्तुत कर सकते हैं।
शोधपत्र आप अपने लिखे गए किसी भी आदिवासी भाषा लेकिन हिंदी या अंग्रेजी में भी अनुदित dhumkudiyaa@gmail.com ई-मेल पर भेज सकते हैं।
अपने शोध पत्र का सार भेजने की अंतिम तिथि: 20/11/2023
शोध पत्र स्वीकारोक्ति की अंतिम तिथि: 25/11/2023
पूरा शोध पत्र भेजने की अंतिम तिथि : 15/12/2023
What is thinking about Jonkh erpa and Pello erpa traditional educational institutions of Adivasis kurukh parha youths
Jonkh Edpa and Pello Erpa are the constituents of Dhumkudiya. Further segregation is possible once the idea of Dhumkudiya in its current format is successful.