तराओ जनजाति संरक्षित जनजातियों में से एक जनजाति है. यह समुदाय पूर्वोत्तर भारत में मणिपुर के चंदेल जिले के पहाड़ियों में रहते हैं. इनका संबंध तिब्बति-बर्मन जनजाति के मंगोलियाई नस्ल से संबंधित हैं.
एक किंवदंती के अनुसार, तराओं की उत्पत्ति मणिपुर के दक्षिणी भाग में स्थित एंथोना पहाड़ी या हौबी पहाड़ी के तुकलीहखुर गुफा से निकले हैं. वे चंदेल जिले के पांच गांवों में रहते हैं, जिसमें लैमनई, लीशोकचिंग, खुरिंगमुउल और हाइकपोकपी एक उखरूल जिले के सनाकेथेल गांव में शामिल है. तराओं समाज एक पितृसत्तात्मक समाज है.
तराओं एक वर्गविहीन समाज है, जहां अमीर-गरीब सभी गतिविधियों में साथ मिलकर रहते हैं. उनके बीच मे कोई भेदभाव नहीं है. हालांकि, उनके गांव के लिए अपने कोई लिखित पारंपरिक नियम नहीं है. वे अपने प्रशासकों का हमेशा सम्मान करते हैं.
तराओं की परिवार व्यवस्था
तराओं समाज में पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाता है. हालांकि, उनके बीच काम का विभाजन होता है. पितृसत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण महिलाओं को घर के काम देखने होते हैं. वहीं बेटों को खेती, शिकार, मछली पकड़ने, घर बनाने और जंगल साफ करने के काम दिए जाते हैं. इसमें पिता घर का मुखिया होता है. घर का बड़ा बेटा शुरू से ही पिता के कामों में सहायता करता है.
आमतौर पर लड़कों की शादी 20 और लड़कियों की शादी 18 के बाद की जाती है. शादी तराओं के पारंपरिक व्यवस्था के आधार पर होता है. साथी का चुनाव होने के बाद लड़के और लड़कियों की मां रिश्ता लेकर पहुंचते हैं. एक बार सगाई हो जाने के बाद दोनों को पति-पत्नी मान लिया जाता है. औपचारिक रूप से विवाह दोनों परिवार और गांव के बुजुर्गों के सुविधानुसार किया जाता है.
हालांकि, एक ही गोत्र में शादी करने को अपराध माना जाता है. ऐसे विवाह को रद्द कर दिया जाता है. बच्चा होने की स्थिति में लड़के-लड़की को चार साल का नाओ-जोकमान(वार्षिक भत्ता) देना होता है और बच्चा पिता को सौंपा जाता है.
वहीं तराओं समुदाय में तलाक वर्जित है या दुर्लभ घटना माना जाता है. इसका मतलब यह नहीं है कि इस समुदाय में तलाक नहीं होता है. तलाक के लिए कुछ शर्तें है, जैसे – बांझपन, विवाहेत्तर संबंध, पति-पत्नी के बीच न बनना, पति द्वारा दूर्व्यवहार शामिल है. अगर पति तलाश चाहता है, तो उसे पत्नी को झुम जमीन के साथ, वधु मूल्य भी वापस करना होगा.
पारिवारिक संपत्ति में महिलाओं को सीमित अधिकार दिए गए हैं. बेटों को ही चल और अचल संपत्ति में अधिकार मिलता है. वहीं परिवार में पुरूष उत्तराधिकार की अनुपस्थिति में करीबी रिश्तेदार को संपत्ति मिलता है, लेकिन तब तक जब तक की लड़की शादी नहीं हो जाती.
इस समय जब दूनियां के कई हिस्से जनसंख्या विस्फोट जैसी समस्या का सामना कर रही है, वहीं भारत के मनिपुर की सबसे कम जनसंख्या वाली तराओ आदिवासी समुदाय विलुप्त होने की कगार पर है और स्वयं को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है.
तराओ आदिवासियों की जनसंख्या महज 1200 के करीब रह गई है. जनगणना 2011 के अनुसार तराओ आदिवासियों की जनसंख्या महज 1,066 है. वहीं द कमिटी ऑन प्रोमोशन ऑफ तराओ कम्युनिटी (COPTARC) के सर्वें अनुसार 2018 तक तराओ आदिवासियों की जनसंख्या महज 900 के आसपास है, जिसमें तराओ समुदाय के 192 घर है.
लुप्तप्राय जनजाति
कई जनजाति के लोग, जो अपनी बस्तियों के स्थानों में अन्य समुदायों के प्रभुत्व वाले है, अन्य बड़ी जनजातियों के साथ शामिल हो गए है, जिससे इस प्रक्रिया में उनकी पहचान खो गई है. तराओ के छोटी आबादी के कारण तराओ आदिवासियों को लुप्तप्राय समुदाय में रखा जा रहा है.
हालांकि, कहा जाता है कि तराओ आदिवासी समुदाय 1075 इस्वीं से मनिपुर में बसी हुई है. भारत सरकार 2003 में तराओ समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी थी. कई लोगों के अनुसार तराओ तत्कालीन बर्मा से आए थे और मनिपुर के कुछ हिस्सों में बस गए थे, मुख्यत: चंदेल क्षेत्र में इसकी कुछ आबादी उखरूल में पायी जाती है.
तराओ जनजाति चंदेल जिले के चार गांवों में निवास करती है, जिसमें लैमनई, लीशोकचिंग, खुरिंगमुउल और हाइकपोकपी एक उखरूल जिले के सनाकेथेल गांव में शामिल है.
युनेस्कों घोषणा कर चुकी थी कि तराओ विलुप्त हो गए
तराओ लिटरेचर सोसाइटी(TLS) के अनुसार “संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (युनेस्को) ने 2009 में घोषना की थी कि तराओ आदिवासी विलुप्त हो चुकी है क्योंकि उनकी आधिकारिक भाषा अब बोली नही जाती है.”