संत रविदास भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने जाति, भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई और प्रेम, समानता तथा भक्ति का संदेश दिया। हर साल माघ पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है, जो न केवल उनके अनुयायियों बल्कि समूचे समाज के लिए प्रेरणादायक होती है।
संत रविदास की जीवनी
रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी के एक चर्मकार (चमड़े का काम करने वाले) परिवार में हुआ था। उस समय समाज में जातिगत भेदभाव चरम पर था, लेकिन उन्होंने इन बाधाओं को पार करते हुए अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आगे बढ़ाया। उनका मन बचपन से ही ईश्वर-भक्ति में लगा रहता था, और उन्होंने अपने काव्य व उपदेशों के माध्यम से सामाजिक समानता की अलख जगाई।
कहा जाता है कि वे भगवान के अनन्य भक्त थे और उनके भजन एवं दोहे लोगों के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम एवं भक्ति की भावना जागृत कर देते थे। उनकी सरल वाणी और संदेशों ने न केवल आम जनमानस बल्कि बड़े-बड़े राजा और विद्वानों को भी प्रभावित किया।
संत रविदास का आंदोलन और उनके विचार
संत रविदास भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। उन्होंने अपने समय के सामाजिक भेदभाव और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। वे मानते थे कि ईश्वर की भक्ति के लिए किसी जाति, धर्म या वर्ग की जरूरत नहीं है, बल्कि सच्चे हृदय से की गई पूजा ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।
उनकी रचनाएँ समाज में भाईचारे, प्रेम और समानता की भावना को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने ‘बेगमपुरा’ नामक एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जहाँ कोई भेदभाव न हो और सभी को समान अधिकार मिले।
उनके प्रमुख विचार:
- जात-पात का खंडन: उन्होंने कहा कि इंसान की पहचान उसके कर्मों से होती है, न कि उसकी जाति से।
- ईश्वर की भक्ति सर्वश्रेष्ठ: उनके अनुसार, सच्ची भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है, जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- सामाजिक समानता: वे मानते थे कि समाज में सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए और छुआछूत जैसी प्रथाओं को खत्म किया जाना चाहिए।
- श्रम की महत्ता: उन्होंने मेहनत और ईमानदारी से किए गए कार्यों को सर्वोपरि माना।
संत रविदास का प्रभाव और उनकी शिक्षाएँ
संत रविदास के विचारों ने समाज में एक क्रांति ला दी। उनके अनुयायी, जिन्हें ‘रविदासिया’ कहा जाता है, आज भी उनके उपदेशों का पालन करते हैं। उनकी वाणी का प्रभाव सिख धर्म पर भी पड़ा, और उनके कई भजन गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किए गए।
उन्होंने गुरु नानक, कबीर, मीराबाई सहित कई संतों और भक्तों को प्रभावित किया। कहा जाता है कि मीराबाई ने संत रविदास को अपना गुरु माना था।
वर्तमान समय में संत रविदास की प्रासंगिकता
आज भी संत रविदास के विचार और शिक्षाएँ उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी उनके समय में थीं। जाति-व्यवस्था, सामाजिक भेदभाव और असमानता जैसी समस्याएँ अब भी बनी हुई हैं। उनके संदेश हमें एक ऐसे समाज की ओर ले जाने का मार्ग दिखाते हैं जहाँ सभी को समान अवसर मिलें और किसी के साथ अन्याय न हो।
उनकी जयंती पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें, समानता को बढ़ावा दें और भक्ति तथा प्रेम के संदेश को जन-जन तक पहुँचाएँ। संत रविदास केवल एक धार्मिक संत नहीं थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे, जिनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं।
निष्कर्ष
संत रविदास ने अपनी भक्ति, ज्ञान और सामाजिक सुधार के प्रयासों से समाज को नई दिशा दी। उनकी जयंती मनाना सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि उनके विचारों को जीवन में अपनाने का अवसर है। अगर हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें तो एक ऐसे समाज का निर्माण संभव है, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले और सभी प्रेम और भाईचारे के साथ रहें।
“रविदास के बोल सदा अमर हैं, जो हमें मानवता, समानता और भक्ति का मार्ग दिखाते हैं।”