एक राष्ट्र, एक चुनाव: केंद्र सरकार ने दी हरी झंडी

परिचय: एक राष्ट्र, एक चुनाव का विचार

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में सुधार लाने का एक महत्वाकांक्षी विचार है। इसका उद्देश्य देशभर में लोकसभा, विधानसभाओं, पंचायतों, और नगर निगमों के चुनाव एक साथ कराना है। यह पहल मुख्य रूप से चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए है।

हाल ही में, केंद्र सरकार ने इस विचार को नए सिरे से जोर दिया है। 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने इस प्रणाली की व्यवहार्यता का अध्ययन किया और 2024 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद, केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी दी और इसे एक ऐतिहासिक चुनाव सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया गया।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” न केवल आर्थिक बचत का वादा करता है, बल्कि प्रशासनिक बोझ को कम करने और विकास कार्यों में तेजी लाने का एक साधन भी माना जा रहा है। हालांकि, यह विचार संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो इसे लागू करने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।

एक राष्ट्र, एक चुनाव: समकालीन संदर्भ और विकासशील पहल

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election) भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सुधार और संसाधनों की बचत के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण विचार है। इसका उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है, ताकि बार-बार होने वाले चुनावों के कारण विकास कार्यों में रुकावट और धन का दुरुपयोग रोका जा सके।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

1952 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए। लेकिन राज्यों और केंद्र में अस्थिर सरकारों के कारण यह चक्र टूट गया। 1968-69 के बाद अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे, जिससे सरकारों पर वित्तीय और प्रशासनिक दबाव बढ़ा।

सरकार की हालिया पहल (2019–2024):

  1. उच्च स्तरीय समिति का गठन:
    सितंबर 2023 में, केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसका उद्देश्य इस विचार की व्यवहारिकता, संवैधानिकता और प्रशासनिक आवश्यकताओं का अध्ययन करना था।

समिति ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की गई।

  1. कैबिनेट की स्वीकृति:
    सितंबर 2024 में, केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी। सरकार ने इसे दो चरणों में लागू करने की योजना बनाई है:

पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।

दूसरे चरण में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव इस प्रक्रिया में शामिल होंगे।

  1. चुनावी सुधार पर जोर:
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस और अन्य अवसरों पर इस विचार का समर्थन करते हुए इसे “समय की मांग” बताया। उन्होंने बार-बार चुनावों को देश की प्रगति में बाधा के रूप में रेखांकित किया।
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लाभ:

  1. वित्तीय बचत:

बार-बार होने वाले चुनावों में भारी धनराशि खर्च होती है। उदाहरण:

2019 के आम चुनाव का खर्च ₹60,000 करोड़ आंका गया।

एक साथ चुनाव कराने से यह खर्च काफी हद तक घट सकता है।

  1. प्रशासनिक सुधार:

चुनावों के दौरान सुरक्षा बल और सरकारी अधिकारी चुनावी कार्य में व्यस्त रहते हैं। एक साथ चुनाव कराने से यह बोझ कम होगा।

  1. विकास कार्यों में तेजी:

बार-बार चुनाव आचार संहिता लागू करते हैं, जिससे सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों में देरी होती है।

चुनौतियां और विरोध:

  1. संघीय ढांचे पर प्रभाव:

आलोचकों का कहना है कि यह विचार राज्यों की स्वायत्तता और संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।

  1. सरकार के गिरने पर संकट:

यदि किसी राज्य की सरकार कार्यकाल से पहले गिर जाए, तो क्या राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा या सभी चुनाव दोबारा कराए जाएंगे?

  1. राजनीतिक और क्षेत्रीय विविधता:

भारत जैसे विविध देश में राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनावों से क्षेत्रीय दलों की भूमिका कम हो सकती है।

  1. विपक्ष का विरोध:
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कांग्रेस, आप, और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां इस प्रस्ताव का विरोध कर रही हैं। उनका तर्क है कि यह केवल सत्ताधारी दल के लाभ के लिए है।

संविधानिक चुनौतियां और समाधान:

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” को लागू करने के लिए संविधान में 18 संशोधन आवश्यक होंगे। इनमें प्रमुख हैं:

अनुच्छेद 83 और 172: लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित।

अनुच्छेद 85 और 174: संसद और विधानसभा सत्रों की बुलाहट।

अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन और चुनाव प्रक्रिया।

सरकार को इन संशोधनों के लिए संसद और राज्यों से अनुमोदन प्राप्त करना होगा।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” भारतीय लोकतंत्र में बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे चुनावी खर्च कम होगा, प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होगा, और विकास कार्यों में तेजी आएगी। हालांकि, इसे लागू करने के लिए व्यापक राजनीतिक सहमति और कानूनी उपायों की आवश्यकता होगी। यह विचार संसाधनों की बचत और लोकतंत्र की मजबूती का एक अवसर है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में संवैधानिक, राजनीतिक, और व्यवहारिक बाधाएं भी शामिल हैं।

इस विषय पर आगे बढ़ने के लिए सभी पक्षों को मिलकर एक संतुलित समाधान ढूंढना होगा, ताकि यह विचार भारतीय लोकतंत्र के लिए एक प्रभावी सुधार साबित हो सके।

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