अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में BRICS देशों को धमकी दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि इन देशों ने डॉलर के खिलाफ कोई नई मुद्रा बनाने की कोशिश की, तो वे 100 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे।
बता दें BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) के सदस्य देशों ने वैश्विक आर्थिक और वित्तीय प्रणाली में अधिक स्वायत्तता की ओर कदम बढ़ाने के संकेत दिए हैं। हाल ही में, सऊदी अरब, यूएई, ईरान, मिस्र, अर्जेंटीना, और इथियोपिया जैसे नए सदस्यों के शामिल होने से इस समूह का विस्तार हुआ है। इन देशों का रुख और उनकी भूमिकाएं Dedollarization के प्रयासों को नई दिशा दे सकती हैं। हालांकि, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का यह बयान कि “भारत डॉलर को कमजोर नहीं करना चाहता,” इस बहस में एक संतुलित दृष्टिकोण जोड़ता है। यह बयान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ और डॉलर-केंद्रित नीतियों के बाद भारत के परिपक्व रुख को दर्शाता है। आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
Dedollarization क्या है?
Dedollarization का मतलब है वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेनदेन में अमेरिकी डॉलर की प्रमुखता को कम करना। अमेरिकी डॉलर वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और रिजर्व मुद्रा के रूप में प्रभुत्व रखता है।
डॉलर का प्रभुत्व क्यों है?
- ब्रेटन वुड्स प्रणाली: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी डॉलर को वैश्विक रिजर्व मुद्रा का दर्जा दिया गया।
- पेट्रोडॉलर व्यवस्था: तेल व्यापार में डॉलर का उपयोग एक मानक बन गया।
- आर्थिक स्थिरता: अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती और वित्तीय बाजारों की गहराई ने डॉलर को विश्वसनीय बनाया।
लेकिन हाल के वर्षों में, BRICS जैसे समूह डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के प्रयास कर रहे हैं।
BRICS और डॉलर पर निर्भरता कम करने का प्रयास
1. डॉलर निर्भरता के नुकसान
- विनिमय दर का जोखिम: डॉलर की मजबूती या कमजोरी अन्य देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
- अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव: डॉलर आधारित वित्तीय प्रणाली में अमेरिका का प्रभावी नियंत्रण रहता है, जो आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से देशों को लक्षित कर सकता है।
2. BRICS के कदम
- स्थानीय मुद्राओं में व्यापार: BRICS देशों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा है। उदाहरण के लिए, भारत और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार में रुपये और रूबल का उपयोग।
- नया भुगतान तंत्र: BRICS देशों ने एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय भुगतान तंत्र विकसित करने की संभावना पर चर्चा की है, जो SWIFT प्रणाली पर निर्भरता को कम करेगा।
- साझा मुद्रा की चर्चा: BRICS बैंक (New Development Bank) ने साझा मुद्रा पर विचार किया, हालांकि यह अभी प्रारंभिक चरण में है।
BRICS का विस्तार और नए देशों का रुख
2023 में BRICS समूह में सऊदी अरब, यूएई, ईरान, मिस्र, अर्जेंटीना, और इथियोपिया जैसे नए देशों के शामिल होने से इस समूह का दायरा और भी बढ़ गया है।
नए सदस्यों का योगदान
- सऊदी अरब और यूएई:
- ये देश ऊर्जा व्यापार में बड़े खिलाड़ी हैं। डॉलर पर उनकी निर्भरता को कम करने के प्रयासों से पेट्रोडॉलर व्यवस्था को चुनौती मिल सकती है।
- स्थानीय मुद्राओं या एक साझा मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने की उनकी रुचि Dedollarization को गति दे सकती है।
- ईरान:
- अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करने के कारण, ईरान पहले से ही डॉलर के विकल्प तलाश रहा है। BRICS के माध्यम से यह प्रयास और मजबूत हो सकता है।
- अर्जेंटीना और मिस्र:
- ये देश आर्थिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं और डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए BRICS के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा दे सकते हैं।
- इथियोपिया:
- इथियोपिया जैसे विकासशील देश BRICS को एक मंच के रूप में देख रहे हैं जहां वे डॉलर के वर्चस्व से बचकर अपने आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
नए सदस्यों का Dedollarization पर रुख
- अधिकांश नए सदस्य अमेरिकी डॉलर के दबदबे को कम करने में रुचि रखते हैं।
- हालांकि, इनके प्रयास उनके आर्थिक ढांचे और राजनीतिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करेंगे।
- उदाहरण के लिए, सऊदी अरब और यूएई का रुख संयमित हो सकता है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था अभी भी पश्चिमी वित्तीय प्रणाली से जुड़ी हुई है।
भारत का रुख
एस. जयशंकर का बयान क्यों महत्वपूर्ण है?
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत का उद्देश्य डॉलर को कमजोर करना नहीं है, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है। उनके बयान के पीछे मुख्य कारण हैं:
- वैश्विक स्थिरता का महत्व:
- भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक वित्तीय प्रणाली के साथ गहराई से जुड़ी है। डॉलर में अस्थिरता से भारत की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है।
- समायोजित दृष्टिकोण:
- भारत धीरे-धीरे Dedollarization की ओर बढ़ रहा है, लेकिन किसी एक कदम से वैश्विक वित्तीय प्रणाली को अस्थिर करने से बचना चाहता है।
- संतुलित कूटनीति:
- भारत अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को खराब नहीं करना चाहता।
- ट्रम्प टैरिफ और उसका प्रभाव:
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ और संरक्षणवादी नीतियों के बाद, भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों को अधिक संतुलित और आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। जयशंकर का बयान इसी दिशा में एक कदम है।
अमेरिका और यूरोपीय देशों का रुख
1. अमेरिका का रुख
- अमेरिका BRICS के Dedollarization प्रयासों को अपनी आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभुत्व के लिए खतरा मानता है।
- संभावित प्रतिक्रियाएं:
- आर्थिक दबाव: अमेरिकी प्रतिबंधों और टैरिफ का उपयोग उन देशों पर किया जा सकता है जो डॉलर पर निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
- डॉलर को मजबूत बनाने की नीतियां: फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बदलाव या डॉलर के आकर्षण को बढ़ाने वाले उपाय कर सकता है।
- सुरक्षा चिंताएं: अमेरिका BRICS के वैकल्पिक भुगतान तंत्र को वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिए अस्थिरता का स्रोत बता सकता है।
2. यूरोपीय देशों का रुख
- यूरोपीय देश इस मुद्दे पर मिश्रित दृष्टिकोण रखते हैं।
- सहयोग और प्रतिस्पर्धा: यूरो को डॉलर के विकल्प के रूप में बढ़ावा देना यूरोप के हित में हो सकता है, लेकिन चीन के बढ़ते प्रभुत्व से सतर्कता बनाए रखेंगे।
- नीतिगत संतुलन: यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ECB) BRICS की नीतियों पर नजर रखेगा और यूरो का दायरा बढ़ाने के प्रयास करेगा।
BRICS देशों के समक्ष चुनौतियां
1. साझा मुद्रा का अभाव
- BRICS देशों की अर्थव्यवस्थाएं और मुद्राएं एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं।
- एक साझा मुद्रा के लिए नीतिगत समन्वय और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी।
2. चीन का प्रभुत्व
- चीन की अर्थव्यवस्था BRICS में सबसे बड़ी है। किसी भी वैकल्पिक वित्तीय प्रणाली में चीन का नेतृत्व होगा, जिसे अन्य देश संतुलित करना चाहेंगे।
3. तकनीकी अवसंरचना
- SWIFT जैसे अंतरराष्ट्रीय भुगतान तंत्र का विकल्प तैयार करना तकनीकी और वित्तीय दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है।
4. अमेरिका की प्रतिक्रिया
- Dedollarization के प्रयास अमेरिका को आर्थिक और राजनीतिक रूप से आक्रामक बना सकते हैं, जिससे BRICS देशों पर दबाव बढ़ सकता है।
Dedollarization का वैश्विक प्रभाव
1. वित्तीय प्रणाली में बदलाव
अगर BRICS देश सफल होते हैं, तो वैश्विक वित्तीय प्रणाली अधिक बहुध्रुवीय हो सकती है।