पूरी दुनिया में गोवा अपने खूबसूरत बीचेज, नाइट लाइफ, वॉटर स्पोर्ट्स, फूड्स वगैरह के लिए जाना जाता है लेकिन गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 450 सालों तक शासन किया।
भारत को तो 15 अगस्त 1947 में ही आज़ादी मिल गई थी, लेकिन इसके 14 साल बाद भी गोवा पर पुर्तग़ाली अपना शासन जमाये बैठे थे। 19 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय अभियान’ शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तग़ालियों के शासन से मुक्त कराया था। प्रत्येक वर्ष गोवा मुक्ति दिवस 19 दिसम्बर को मनाया जाता है।
बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसम्बर, 1962 को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1967 में वहाँ जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वाँ राज्य बना।
जिसने गोवा देख लिया, उसे लिस्बन देखने की ज़रूरत नहीं है।
पुर्तग़ाल ने गोवा पर अपना कब्ज़ा मजबूत करने के लिये यहाँ नौसेना के अड्डे बनाए थे।
गोवा के विकास के लिए पुर्तग़ाली शासकों ने प्रचुर धन खर्च किया। गोवा का सामरिक महत्त्व देखते हुए इसे एशिया में पुर्तग़ाल शसित क्षेत्रों की राजधानी बना दिया गया। अंग्रेज़ों के भारत आगमन तक गोवा एक समृद्ध राज्य बन चुका था तथा पुर्तग़ालियों ने पूरी तरह गोवा को अपने साम्राज्य का एक हिस्सा बना लिया था। पुर्तग़ाल में एक कहावत आज भी है कि “जिसने गोवा देख लिया, उसे लिस्बन देखने की ज़रूरत नहीं है।” सन 1900 तक गोवा अपने विकास के चरम पर था। उसके बाद के वर्षों में यहाँ हैजा, प्लेग जैसी महामारियाँ शुरू हुईं, जिसने लगभग पुरे गोवा को बर्बाद कर दिया। अनेकों हमले हुए, लेकिन गोवा पर पुर्तग़ाली कब्ज़ा बरकरार रहा। 1809-1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तग़ाल पर कब्ज़ा कर लिया और एंग्लो पुर्तग़ाली गठबंधन के बाद गोवा स्वतः ही अंग्रेज़ी अधिकार क्षेत्र में आ गया। 1815 से 1947 तक गोवा में अंग्रेज़ों का शासन रहा और पूरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेज़ों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया।
गोवा स्वतंत्रता आंदोलन
गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन 1928 में शुरू हुआ जब गोवा के राष्ट्रवादियों ने मिलकर 1928 में मुंबई में ‘गोवा कांग्रेस समिति’ का गठन किया। गोवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष डॉ.टी.बी.कुन्हा थे। डॉ. टी. बी. कुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है। दो दशक तक लगभग गोवा का स्वतंत्रता आंदोलन थोड़ा धीमा रहा। 1946 में स्वतंत्रता सेना और प्रमुख समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया के गोवा पहुंचने से आंदोलन को नई दिशा मिलती है। उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की चेतावनी दे डाली। मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
भारतीय सेना की तैयारी
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षामंत्री कृष्ण मेनन के बार-बार के आग्रह के बावजूद पुर्तगाली भारत को छोड़ने तथा झुकने को तैयार नहीं हुए। उस समय दमन-दीव भी गोवा का हिस्सा था। जब पुर्तगाली पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह को नहीं माने तो अंत में भारत के पास ताकत का इस्तेमाल ही एकमात्र विकल्प रह गया था। 1954 के मध्य में गोवा के राष्ट्रवादियों ने दादर और नगर हवेली की बस्तियों पर कब्जा कर लिया और भारत समर्थक प्रशासन की स्थापना की। 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार हो जाने के आदेश मिले। मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ को ’17 इन्फैंट्री डिवीजन’ और ’50 पैरा ब्रिगेड’ का प्रभार मिला। भारतीय सेना की तैयारियों के बावजूद पुर्तगालियों पर किसी भी प्रकार का असर नहीं पड़ा। भारतीय वायु सेना के पास उस समय छह हंटर स्क्वॉड्रन और चार कैनबरा स्क्वाड्रन थे।
गोवा मुक्ति अभियान
गोवा अभियान में हवाई कार्रवाई की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के पास थी। भारतीय सेना ने 2 दिसंबर को ‘गोवा मुक्ति’ अभियान शुरू कर दिया। वायु सेना ने 8 और 9 दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की। भारतीय थल सेना और वायु सेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। इस तरह 19 दिसंबर, 1961 को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने समर्पण समझौते पर दस्तखत कर दिए। इस तरह भारत ने गोवा और दमन दीव को मुक्त करा लिया और वहां से पुर्तगालियों के 451 साल पुराने औपनिवेशक शासन को खत्म कर दिया। पुर्तगालियों को जहां भारत के हमले का सामना करना पड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उन्हें गोवा के लोगों का रोष भी झेलना पड़ रहा था।
जब पूर्ण राज्य बना गोवा
बाद में गोवा में चुनाव हुए और 20 दिसंबर, 1962 को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। गोवा के महाराष्ट्र में विलय की भी बात चली, क्योंकि गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में ही स्थित था। वर्ष 1967 में वहां जनमत संग्रह हुआ और गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया। बाद में 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया और इस प्रकार गोवा भारतीय गणराज्य का 25वां राज्य बना।
भारत आने वाले पहले और भारत को सबसे अंत में छोड़ने वाले यूरोपीय शासक कौन थे?
पुर्तगाली भारत आने वाले पहले (1510) और यहां उपनिवेश छोड़ने वाले आखिरी (1961) यूरोपीय शासक थे। गोवा में उनका 451 साल तक शासन रहा जो अंग्रेजों से काफी अलग था। पुर्तगाल ने गोवा को ‘वाइस किंगडम’ का दर्जा दिया था और यहां के नागरिकों को ठीक वैसे ही अधिकार हासिल थे जैसे पुर्तगाल में वहां के निवासियों को मिलते हैं। उच्च तबके के हिंदू और ईसाइयों के साथ-साथ दूसरे धनी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार भी थे। जो लोग संपत्ति कर देते थे उन्हें 19वीं शताब्दी के मध्य में यह अधिकार भी मिल गया था कि वे पुर्तगाली संसद में गोवा का प्रतिनिधि चुनने के लिए मत डाल सकें।