प्रत्येक वर्ष 1 दिसंबर को अरूणाचल प्रदेश में इंडिजिनियस फेथ डे मनाया जाता है. इस दिवस का उद्देश्य जनजातियों की पहचान को बनाए रखना है. इसके अलावा आदिवासी आस्था और परंपरा की रक्षा और प्रचार करने के लिए यह दिन मनाया जाता है.
तलोम रुक्बो ने इंडिजिनियस फेथ आंदोलन का नेतृत्व किया था. 31 दिसंबर, 1986 को पासीघाट में इंडिजिनियस फेथ बिलिवर्स के लिए एक आम मंच के रूप में दोनी पोलो येलम केबांग की नींव रखी गई थी. दोनी पोलो अरूणाचल प्रदेश के आदिवासियों का धर्म है. दोनो पोली आदिवासियों के सर्वोच्च देवता है. दोनी पोलो का अर्थ सूरज व चंद्रमा होता है. दोनी पोलो येलम केबांग के द्वारा ही 1 दिसंबर को अरूणाचल प्रदेश में इंडिजिनियस फेथ डे की शुरूआत की गई.
बता दें कि राज्य में 82% वन क्षेत्र है और सालाना 118 इंच से अधिक की औसत वर्षा होती है. पूरे राज्य में 26 प्रमुख जनजातियाँ और 100 उप-जनजातियाँ निवास करती हैं. राज्य में 11,000 वर्ष पुराने नवपाषाणकालीन उपकरण(Neolithic tools) पाए गए हैं. इसका जनसंख्या घनत्व भारत में सबसे कम 13 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है.
लुप्त हो रही रीति रिवाज और परंपरा को बचाने की कोशिश
बढ़ते आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण के कारण इस खूबसूरत राज्य के सदियों पुराने रीति-रिवाज और परंपराएं लुप्त होती जा रही हैं. बहुत से लोग अपनी समृद्ध विरासत को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं.
प्रत्येक वर्ष इस दिन को चिह्नित करने के लिए स्वदेशी आस्था, सभाओं, प्रार्थना सभाओं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की संस्कृति के संरक्षण और पहचान के महत्व पर जागरूकता बढ़ाने के लिए जुलूस आयोजित किए जाते हैं.
हालांकि राज्य में मुख्य धर्म ईसाई (30%) और हिंदू (29%) हैं, एक चौथाई से अधिक आबादी (मुख्य रूप से मूल तानी आबादी) एक आदिवासी विश्वास प्रणाली का पालन करती है, जिसे “दोनी-पोलो” (सूरज चंद्रमा) नाम के तहत व्यवस्थित किया गया है.