ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट (Zoram People’s Movement) के नेता एवं पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा (Lalduhoma) ने कहा है कि अगर उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आती है तो वह भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) या ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूजिव अलायंस’ (INDIA) में शामिल नहीं होगी.
लालदुहोमा ने कहा कि उनकी पार्टी केंद्र के नियंत्रण से मुक्त एक स्वतंत्र क्षेत्रीय दल के तौर पर अपनी पहचान बरकरार रखेगी.
जेडपीएम नेता ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘‘हम सत्ता में आने पर भी राष्ट्रीय स्तर पर किसी समूह में शामिल नहीं होंगे. हम अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना चाहते हैं और एक स्वतंत्र क्षेत्रीय दल बने रहना चाहते हैं.’’
उन्होंने कहा कि हम दिल्ली के नियंत्रण में नहीं रहना चाहते. लेकिन साथ ही कहा कि जेडपीएम केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बना कर रखेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘हम केंद्र में सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखेंगे. तर्कसंगत होने पर ही हम उसका समर्थन या विरोध करेंगे.’’
जेडपीएम का गठन 2017 में दो राजनीतिक दलों और पांच समूहों ने किया था. गैर-कांग्रेसी, गैर-एमएनएफ (मिज़ो नेशनल फ्रंट) सरकार के नारे को भुनाते हुए पार्टी 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में आठ सीट जीतकर राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी. जिससे कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई.
लालदुहोमा ने दावा किया कि महज पांच साल पुरानी अपेक्षाकृत युवा पार्टी जेडपीएम अपनी नई शासन प्रणाली नीति के साथ विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने को लेकर आश्वस्त है और राज्य में दशकों पुरानी द्विध्रुवीय राजनीति को खत्म करने की उम्मीद कर रही है.
लालदुहोमा ने दावा किया कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव जीतने को लेकर आश्वस्त है. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि पार्टी को कितनी सीट पर जीत की उम्मीद है.
उन्होंने कहा कि लोगों का एमएनएफ और कांग्रेस पर से ‘‘भरोसा उठ’’ गया है और वे बदलाव चाहते हैं.
भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘‘हमें जबरदस्त बहुमत के साथ चुनाव में जीत मिलने का भरोसा है। लोग शासन की नई प्रणाली को देखने के लिए उत्सुक हैं. हमें सकारात्मक वोट चाहिए. हम चाहते हैं कि लोग हमें एमएनएफ और कांग्रेस से उकता जाने के कारण नहीं बल्कि बदलाव के लिए वोट दें.’’
लालदुहोमा ने कहा कि अगर जेडपीएम सत्ता में आती है तो वह सत्ता के विकेंद्रीकरण का काम करेगी और विकास पर नजर रखने के लिए राज्य से लेकर गांव के स्तर तक गैर सरकारी संगठनों, गिरजाघरों और लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य संगठनों को शामिल करते हुए समितियां गठित करेगी.
उन्होंने कहा कि पार्टी वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिए खर्चों में कमी करने के कदम भी उठाएगी और सभी मंत्री एवं विधायक उन्हें मिलने वाली विभिन्न सुविधाओं में भी कटौती करेंगे.
लालदुहोमा ने मुख्यमंत्री जोरमथंगा के नेतृत्व वाली एमएनएफ सरकार के शरणार्थियों से निपटने के तरीके को ‘‘असंतोषजनक’’ बताते हुए उसकी आलोचना की.
उन्होंने कहा कि जेडपीएम को म्यांमा, बांग्लादेश और मणिपुर छोड़कर गए ‘जो’ जातीय लोगों की चिंता की है और अगर वह सत्ता में आती है तो मौजूदा सरकार से बेहतर काम करेगी.
लालदुहोमा ने दावा किया कि मणिपुर में हुई हिंसा भाजपा सहयोगी एमएनएफ की मदद करने के बजाय उसकी जीत की संभावना को प्रभावित करेगी क्योंकि भाजपा मणिपुर की स्थिति को संभालने में ‘‘विफल’’ रही.
कौन है लालदुहोमा
IPS अफसर रहे लालदुहोमा ने नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद भारतीय पुलिस सेवा में आ गए.
लालदुहोमा मिज़ोरम के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं. 1977 में आईपीएस बनने के बाद उन्होंने गोवा में एक स्क्वाड लीडर के रूप में काम किया और तस्करों पर कार्रवाई की. उनकी उपलब्धियां राष्ट्रीय मीडिया में छाने लगीं.
नौकरी के दौरान वह 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुरक्षा प्रभारी बन गए. उन्होंने 1984 में सेवा से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस के झंडे तले राजनीति में कूद गए. उसी साल सांसद चुने गए.
लेकिन फिर 1988 में कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वह दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित होने वाले पहले सांसद बने.
ZPM के गठन से पहले लालदुहोमा ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी (ZNP) के संस्थापक और अध्यक्ष हैं. 2003 में अपनी खुद की पार्टी से विधायक चुने गए थे.
फिर उन्हें 2018 मिजोरम विधान सभा चुनाव में ZNP के नेतृत्व वाले ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट गठबंधन के पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था.
आइजोल पश्चिम-1 और सेरछिप दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित लालदुहोमा ने सेरछिप का प्रतिनिधित्व करना चुना. विपक्ष के नेता के रूप में कार्य करते हुए उन्हें 2020 में दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन करने के आरोप में विधान सभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया, जो भारत में राज्य विधानसभाओं में इस तरह का पहला मामला बन गया. लेकिन वह 2021 में उपचुनाव में सेरछिप से फिर से चुने गए.
मिज़ोरम की राजनीति
आजादी से पहले मिजोरम पूर्वोत्तर के असम राज्य का हिस्सा था. 1958 में अकाल पड़ने के बाद मिजो जनजाति के लोगों ने नए राज्य की मांग की. सशस्त्र आंदोलन के बाद 1972 में मिजोरम असम से अलग हुआ और केंद्रशासित प्रदेश बना.
हालांकि मिज़ो नेशनल फ्रंट का छापामार लड़ाई जारी रखी. 1986 में समझौते के बाद 20 फरवरी 1987 को मिज़ोरम भारत का 23वां राज्य बना और लालडेंगा सीएम बने. करीब एक साल बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगा. 1989 में सत्ता कांग्रेस के पास आई और ललथनहवला मुख्यमंत्री बने. दस साल तक सत्ता में रहे.
1998 में मिज़ो नेशनल फ्रंट ने कांग्रेस को शिकस्त दी तो ज़ोरमथंगा सीएम बने. ज़ोरमथंगा भी लगातार दो टर्म तक मुख्यमंत्री रहे. 2008 में कांग्रेस सत्ता में लौटी तो ललथनहवला तीसरी बार सीएम बने. 2013 में वह चौथी बार सीएम चुने गए. 2018 में सत्ता की गेंद घूम-फिरकर फिर मिजो नेशनल फ्रंट को पास आई और जोरमथंगा तीसरी बार मिजोरम के मुख्यमंत्री बने.
मिज़ोरम ने 1993 के बाद से केवल दो मुख्यमंत्री देखे हैं. कांग्रेस से ललथनहवला और मिज़ो नेशनल फ्रंट से ज़ोरमथांगा. लेकिन इस दफा ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट के लालदुहोमा भी मैदान में हैं.
तीन पार्टियों ने 40-40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे
मिज़ोरम में 7 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है. मिज़ो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस के साथ-साथ इस बार लालदुहोमा के नेतृत्व वाली ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट भी चुनाव में ताल ठोक रही है.
कांग्रेस, मिज़ो नेशनल फ्रंट और ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने सभी 40-40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं बीजेपी ने इस बार चुनाव में सिर्फ 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं.
पिछली बार की तरह ही इस बार भी 20 से ज्यादा सीटों पर चार दलों के बीच मुकाबला है. 2018 में मिजोरम के हर सीट पर औसतन 15 हजार वोट पड़े. कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए, तो जीत का मार्जिन औसतन 200-400 वोटों का ही था.
मिजोरम के चुनाव में नोटा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है. पिछली बार 7 सीटों पर नोटा को 100 से ज्यादा वोट मिले थे. 3 सीटों पर 200 से ज्यादा वोट लोगों ने नोटा को दिया था. नोटा की वजह से कांग्रेस को तुइवॉल सीट पर हार मिली थी.