पाकुड़, अप्रैल 2025 — झारखंड के पाकुड़ ज़िले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड में जंगलों को बचाने की एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल शुरू हुई है। यहां के 14 गांवों ने मिलकर महुआ के मौसम में जंगल में परंपरागत रूप से लगाई जाने वाली आग की जगह अब वैकल्पिक, टिकाऊ और पर्यावरण-संवेदनशील तरीकों से महुआ एकत्र करना शुरू कर दिया है।
हर साल सूखी पत्तियों को जलाकर महुआ फूल इकट्ठा करना एक पारंपरिक तरीका रहा है, लेकिन इससे जंगलों की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था। मखनीपहाड़ के प्रधान बिनोद मालतो कहते हैं, “जंगल में आग कोई नई बात नहीं है। कई बार यह ज़रूरी भी होती है, लेकिन हर साल एक ही तरीके से इसे करने से जंगल कमज़ोर होने लगा था।”
इस बदलाव की शुरुआत जनवरी 2025 में हुई, जब डुरियो, झपरी, कठलपाड़ा, गद पहारी और छोटा पोखरिया जैसे गांवों में सामूहिक बैठकें हुईं। इन बैठकों में 4S इंडिया (Sarva Seva Samity Sanstha) की भूमिका सिर्फ संवाद को सुविधाजनक बनाने की थी — समाधान सुझाने की नहीं। दुरियो गांव के बड़ा गुईया बताते हैं, “मशरूम दिखना बंद हो गया था, महुआ भी कम हो रहा था, हमें लगा कुछ बदलना ज़रूरी है।”
11 फरवरी को गद पहारी चबूतरा पर हुई बड़ी बैठक में 14 गांवों ने मिलकर निर्णय लिया कि इस बार महुआ बिना आग के इकट्ठा किया जाएगा। यहीं से बनी ‘जंगल बचाओ समिति’, जिसमें गांवों ने मिलकर नियम बनाए — झाड़ू से महुआ बीनना, पत्तियों से खाद बनाना और जंगल की सामूहिक निगरानी करना।
4S इंडिया के कार्यकारी निदेशक मिहिर साहाना कहते हैं, “यह गांवों का अपना निर्णय था — बाहर से कोई नियम नहीं थोपा गया। इसी में टिकाऊपन है।” समिति के कोषाध्यक्ष तिसरो गांव के छोटू चंदू पहाड़िया कहते हैं, “हमें कोई बाहर से आकर नहीं बताने आया कि जंगल कैसे बचाना है। हमें बस साथ बैठकर बात करनी थी।”
यह बदलाव सिर्फ जंगल तक सीमित नहीं रहा। गीत, नुक्कड़ नाटक और जंगल यात्राओं के ज़रिए संदेश फैला और मार्च तक 90 से अधिक परिवारों ने आग-रहित महुआ संग्रह अपनाया, जिससे लगभग 7 हेक्टेयर जंगल क्षेत्र को संरक्षित किया गया।
महिलाओं की भूमिका भी इस प्रक्रिया में निर्णायक रही। कठलपाड़ा की महिला नेता मारथा पहाड़िन कहती हैं, “अब जंगल पहले जैसा नहीं लगता। लगता है जैसे हम अपने बच्चों के लिए कुछ बचा रहे हैं।”
अब इस मॉडल को और गांवों में दोहराने की योजना है। अप्रैल और मई में क्लस्टर समीक्षा बैठकें आयोजित होंगी, और वन विभाग के साथ मिलकर इसे और फैलाने की तैयारी की जा रही है। 4S इंडिया के फंड रेजिंग और प्रोग्राम के उप निदेशक कुमार गौरव के अनुसार, गांव यह भी खोज रहे हैं कि इस शासन प्रणाली को चरागाह और जल संसाधनों पर कैसे लागू किया जा सकता है।
दुरियो के ग्राम प्रधान दुनु पहाड़िया के शब्दों में, “एक बदलाव आया है। लोगों के जंगल को देखने के नजरिए में बदलाव आया है — अब यह सिर्फ आमदनी का जरिया नहीं, बल्कि एक साझा ज़िम्मेदारी बन गया है।”