क्यों विक्की कौशल अभिनीत ‘छावा’ रियल लगती है और यह अभिनेता सबसे अलग क्यों है?

विक्की कौशल की अभिनय क्षमता और तैयारी:
विक्की कौशल उन चुनिंदा अभिनेताओं में से हैं, जो हर किरदार में पूरी तरह ढल जाते हैं। ‘छावा’ में छत्रपति संभाजी महाराज की भूमिका निभाने के लिए उन्होंने न केवल ऐतिहासिक संदर्भों को गहराई से समझा, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी खुद को उस युग में स्थापित किया। उनकी बॉडी लैंग्वेज, संवाद अदायगी और आंखों की भावनाएं दर्शकों को उस दौर की वास्तविकता का एहसास कराती हैं।

‘मसान’ से ‘छावा’ तक – सफर जिसमें हर किरदार जीवंत हुआ:
विक्की कौशल की पहली बड़ी फिल्म मसान (2015) थी, जिसमें उनके किरदार दीपक की मासूमियत, प्रेम और दर्द ने दर्शकों को झकझोर दिया। इसके बाद राज़ी (2018) में एक देशभक्त पति की भूमिका में उन्होंने आलिया भट्ट जैसे स्टार के सामने अपनी सादगी और सहजता से गहरी छाप छोड़ी।

उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक (2019) में मेजर विहान शेरगिल की भूमिका निभाकर उन्होंने न केवल राष्ट्रीय पुरस्कार जीता, बल्कि हर दर्शक को यह महसूस कराया कि वे एक सच्चे सैनिक हैं। उनका प्रसिद्ध संवाद “हाउज़ द जोश?” आज भी लोगों की जुबान पर है। इस फिल्म ने उन्हें स्टारडम तक पहुंचाया, लेकिन विक्की ने कभी स्टार होने का बोझ अपने अभिनय पर नहीं पड़ने दिया।

See also  सरना स्थल सिर्फ एक पेड़ बनकर रह गए, क्या यह आदिवासियों के विनाश का संकेत है? अन्य लोगों पर इसका प्रभाव

सरदार उधम (2021) में उनकी परफॉर्मेंस को इंटरनेशनल लेवल पर भी सराहा गया। उधम सिंह की शहादत और संघर्ष को उन्होंने इतनी ईमानदारी से पर्दे पर उतारा कि दर्शकों को इतिहास की एक झलक नहीं, बल्कि पूरा यथार्थ दिखा। इस फिल्म में उनकी आंखों ने जितना कहा, शायद संवाद भी नहीं कह पाए।

‘छावा’ में वास्तविकता का एहसास क्यों?
विक्की कौशल ने छावा के लिए घुड़सवारी सीखी, तलवारबाजी की ट्रेनिंग ली और मराठा इतिहास को समझा। यही वजह है कि उनके युद्ध दृश्य, चाल-ढाल और भावनात्मक क्षण इतने वास्तविक लगते हैं। फिल्म में उनका जुनून, दर्द और जिम्मेदारी का एहसास दर्शकों को उसी युग में ले जाता है। उनके हाव-भाव और आवाज़ में जो सच्चाई है, वही इस फिल्म को रियल बनाती है।

भावनाओं को जीवंत करना:
विक्की कौशल की सबसे बड़ी ताकत उनकी आंखें हैं, जो बिना संवाद बोले भी बहुत कुछ कह जाती हैं। ‘छावा’ में पिता की विरासत बचाने की जिम्मेदारी, मुगलों से लड़ते हुए अपनों को खोने का दर्द और अपनी प्रजा के लिए लड़ने का जुनून – ये सारी भावनाएं विक्की की आंखों से झलकती हैं, जिससे फिल्म एक अनुभव की तरह लगती है।

See also  झारखण्ड और पड़ोसी राज्यों में भाषा और लिपि की लड़ाई सिर्फ गलत और सही की लड़ाई नहीं है भाग-1

अलग नजरिया और फिल्म चयन:
विक्की कौशल की फिल्में उनकी विविधता और अलग सोच को दर्शाती हैं। जहां ज्यादातर अभिनेता सुरक्षित भूमिकाओं को चुनते हैं, वहीं विक्की ने मसान, राज़ी, संजू, मनमर्जियां, भूत: पार्ट वन – द हॉन्टेड शिप, सरदार उधम और छावा जैसी फिल्मों को चुना। इन फिल्मों में गहराई, इतिहास और समाज की सच्चाई है। उनका फिल्म चयन ही उन्हें भीड़ से अलग बनाता है।

बॉलीवुड में एक अलग जगह:
विक्की कौशल की सरलता, सहजता और मेहनत ही उन्हें सबसे अलग बनाती है। वे न केवल स्टारडम के पीछे भागते हैं, बल्कि अपने हर किरदार को जीवंत करने के लिए मेहनत करते हैं। चाहे ‘संजू’ में संजय दत्त के दोस्त कमली का हल्का-फुल्का किरदार हो या ‘सरदार उधम’ की गहरी कहानी, हर बार विक्की एक नया चेहरा लेकर आते हैं। यही वजह है कि दर्शक उन्हें सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि उस किरदार के रूप में देखते हैं, जिसे वे निभा रहे होते हैं।

See also  बिहार पिछड़ा हुआ क्यों है? वहाँ के लोग देशभर में मजदूरी के लिए पलायन क्यों करते हैं?

निष्कर्ष:
छावा की रियलिस्टिक फील का बड़ा कारण विक्की कौशल का असाधारण अभिनय और उनकी तैयारी है। वे अपने किरदारों में जान डालने के लिए जो मेहनत और ईमानदारी दिखाते हैं, वही उन्हें बॉलीवुड के सबसे विश्वसनीय और प्रतिभाशाली अभिनेताओं में शामिल करता है। मसान से छावा तक का उनका सफर यह साबित करता है कि वे एक कलाकार हैं, जो हर बार नया गढ़ते हैं और हर बार दर्शकों को एक नया अनुभव देते हैं। यही वजह है कि उनकी फिल्में रियल लगती हैं और वे भीड़ से अलग नज़र आते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 most Expensive cities in the World धरती आबा बिरसा मुंडा के कथन