दुमका: राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव, जिसकी शुरुआत 3 फरवरी 1890 को हुई थी, इस वर्ष अपने 135वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 21 से 28 फरवरी तक आयोजित होने वाले इस मेले को लेकर हिजला गांव में मांझी बाबा (ग्राम प्रधान) सुनीलाल हांसदा की अध्यक्षता में कुल्ही दुरूप (बैठक) आयोजित की गई। बैठक में उपस्थित लोगों ने कहा कि आदिवासियों के नाम पर आयोजित यह मेला 135 वर्षों से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जो एक सराहनीय सरकारी पहल है।
हालांकि, बैठक में इस बात पर गहरी निराशा व्यक्त की गई कि झारखंड राज्य गठन के 25 वर्ष बीत जाने और अधिकतर समय आदिवासी मुख्यमंत्री रहने के बावजूद हिजला मेला में कभी भी संताल समुदाय की ओलचिकी लिपि में तोरण द्वार या सरकारी बैनर प्रदर्शित नहीं किए गए। इसे समुदाय के लिए दुखद और उपेक्षा का प्रतीक माना गया।
ग्रामीणों ने मेला समिति, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, दुमका विधायक बसंत सोरेन, दुमका सांसद नलिन सोरेन और शिक्षा मंत्री रामदास से आग्रह किया कि इस वर्ष हिजला मेला में तोरण द्वार और बैनर संतालों की ओलचिकी लिपि में लगाए जाएं।
इस कुल्ही दुरूप में सरला हांसदा, पतामुनी सोरेन, सोना सोरेन, पाकुटी हांसदा, सुजाता सोरेन, एमेल मरांडी, मनोज हेम्बरम, गणेश हांसदा, दिलीप सोरेन, सुनील हांसदा, स्विटी हांसदा, संतोष हेम्बरम, विलास हेम्बरम, रोहित हांसदा, निम्बुलाल हांसदा, प्रकाश सोरेन समेत आदिवासी समाज के प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।