छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के गढ़बेंगाल निवासी, गोंड मुरिया जनजाति के प्रसिद्ध शिल्पकार और संगीतज्ञ पंडीराम मंडावी को कला के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। श्री मंडावी ने अपनी अनूठी कला और संगीत के माध्यम से गोंडी संस्कृति और बस्तर की समृद्ध धरोहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। लकड़ी पर नक्काशी और पारंपरिक बांसुरी निर्माण में उनकी उत्कृष्टता ने उन्हें लोककला के क्षेत्र में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है।
गोंडी संस्कृति और बस्तर की बांसुरी का संरक्षण
श्री पंडीराम मंडावी ने अपनी कला और शिल्प के माध्यम से गोंड मुरिया जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी कृति सुलुर और बस्तर फ्लूट पारंपरिक धुनों की गूंज के साथ बस्तर की मिट्टी और संस्कृति को जीवंत रखती हैं। बीते पाँच दशकों में उन्होंने बांसुरी और लकड़ी पर नक्काशी की अनगिनत कलाकृतियाँ तैयार की हैं, जो गोंडवाना संस्कृति की आत्मा को दर्शाती हैं। उनकी ये कृतियाँ भारत सहित आठ से अधिक देशों में प्रदर्शित हो चुकी हैं, जिससे छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कला को वैश्विक पहचान मिली है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर बस्तर की पहचान
श्री मंडावी ने अपनी कला को देश की सीमाओं से परे ले जाकर वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। उनकी बांसुरी, जिसे वे सुलुर कहते हैं, आदिवासी संगीत की अनमोल धरोहर बन चुकी है। उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपार सराहना मिली है, जिससे बस्तर और गोंडी संस्कृति की अनुगूंज विदेशों तक पहुंची है।
पद्मश्री सम्मान: प्रेरणा का प्रतीक
पंडीराम मंडावी को मिला पद्मश्री सम्मान उनके जीवनभर के समर्पण, साधना और निष्ठा का प्रमाण है। यह उन सभी कलाकारों और शिल्पकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो अपनी परंपरा और संस्कृति को जीवित रखने के लिए सतत प्रयासरत हैं। उनकी उपलब्धि विशेष रूप से छत्तीसगढ़ और आदिवासी समुदाय की युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देगी।
बस्तर का गौरव, गोंडवाना की धरोहर
श्री मंडावी की कला और शिल्पकला छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाती है। उनके द्वारा निर्मित पारंपरिक वाद्ययंत्र और लकड़ी की मूर्तियाँ बस्तर और आदिवासी समुदाय के गौरव का प्रतीक हैं। उनका यह सम्मान केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और आदिवासी समाज के लिए गर्व का क्षण है।