जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ने 2024 में अपनी दूसरी वर्षगांठ पूरी की और आदिवासी शिक्षा और शोध के क्षेत्र में नए मानक स्थापित किए हैं। विश्वविद्यालय का नाम राजस्थान की मीणा जनजाति के पूजनीय देवता मीनेश जी के नाम पर रखा गया है, जो जनजातीय पहचान को संरक्षित करने का प्रतीक है।
यह विश्वविद्यालय दुनिया का पहला निजी आदिवासी विश्वविद्यालय है, जो राजस्थान के कोटा जिले के रणपुर औद्योगिक क्षेत्र में 30 एकड़ भूमि पर स्थापित किया गया है। यह संस्थान राजस्थान ही नहीं, पूरे देश में एक चर्चा का विषय बन चुका है।
दूसरे वर्ष की उपलब्धियां
अपने पहले वर्ष में 600 छात्रों को प्रवेश देने के बाद, विश्वविद्यालय ने 2024 में यह संख्या बढ़ाकर 1,200 से अधिक कर दी है। नई शिक्षा नीति के तहत, यहां पर्यावरण संरक्षण, आदिवासी समाजशास्त्र, और पारंपरिक कला व संस्कृति जैसे विषयों पर आधारित नए शैक्षिक पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय ने 20 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ साझेदारी करके शोध कार्यक्रम भी शुरू किए हैं। आदिवासी युवाओं के लिए मुफ्त सिविल सेवा कोचिंग भी प्रदान की गई, जिससे उन्हें सरकारी सेवाओं में प्रवेश आसान हो गया है।
जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण की दिशा में कदम
विश्वविद्यालय के दूसरे स्थापना दिवस पर सह-संस्थापक आर. डी. मीणा ने कहा, “हमारे आदिवासी छात्रों ने न केवल शिक्षा बल्कि खेल, कला, और तकनीकी क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बनाई है। यह संस्थान सिर्फ अध्ययन का केंद्र नहीं, बल्कि आदिवासी सशक्तिकरण का मंच बन चुका है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि अगले 30-40 वर्षों में यह विश्वविद्यालय जनजातीय अध्ययन और नीति निर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र बनेगा।
सरकार और समुदाय का सहयोग
इस परियोजना को राज्य सरकार और स्थानीय समुदाय से जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ। सरकार ने रियायती दरों पर भूमि उपलब्ध करवाई, जबकि 200 विधायकों ने इसके लिए अपने क्षेत्रीय विकास निधि से 10 लाख रुपये का योगदान दिया। लोकसभा अध्यक्ष और कोटा-बूंदी सांसद ओम बिरला ने 25 लाख रुपये की सहायता प्रदान की, जबकि 2,500 से अधिक सामुदायिक सदस्यों ने भी आर्थिक योगदान किया।
2024 में इस संस्थान को राज्य सरकार से आर्थिक समर्थन मिला और नए भवन और सुविधाओं के निर्माण के लिए अतिरिक्त फंडिंग की घोषणा की गई।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय ने 2024 में ‘आदिवासी कला महोत्सव’ का आयोजन किया, जिसमें देशभर से आदिवासी कलाकारों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया। यह महोत्सव आदिवासी कला और परंपराओं को राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास है।
भविष्य की दिशा
अब यह विश्वविद्यालय भारत का पहला “आदिवासी डिजिटल आर्काइव” तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है, जिसमें आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास को डिजिटल तरीके से संरक्षित किया जाएगा।
जय मीनेश आदिवासी विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षिक संस्थान नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान और विकास का प्रतीक बन गया है। कोटा, जो पहले आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग के लिए जाना जाता था, अब समावेशी शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण के प्रतीक के रूप में भी पहचाना जाएगा।