भारत अपनी तीनों सेनाओं- थल सेना, वायु सेना नौसेना की लगातार ताकत बढ़ा रहा है. इसी कड़ी में गाइडेड मिसाइल युद्धपोत INS तुशील को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है.
INS तुशील के नौसेना में शामिल करने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा
यह युद्धपोत समुद्र में भारत की बढ़ती क्षमता का गौरवपूर्ण क्षण होने के साथ रूस के साथ दीर्घकालिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. यह जहाज रूसी भारतीय उद्योगों के सहयोगात्मक कौशल का बड़ा सबूत है. भारत रूस एआई, साइबर सिक्योरिटी, अंतरिक्ष खोज आतंकरोधी क्षेत्रों में एक-दूसरे की विशेषज्ञता से फायदा लेते हुए सहयोग के एक नए दौर में पहुंचेंगे.
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भारतीय नौसेना के बेड़े में हाल ही में शामिल हुआ INS तुशिल भारतीय समुद्री रक्षा प्रणाली को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने वाला एक अत्याधुनिक युद्धपोत है। रूस में निर्मित यह “Project 11356” (Admiral Grigorovich-class frigates) का हिस्सा है, जिसे भारत और रूस के बीच गहरे रक्षा संबंधों का प्रतीक माना जा रहा है। इस युद्धपोत के निर्माण में तकनीकी जटिलताओं, भू-राजनीतिक संकट, और वैश्विक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः यह भारतीय नौसेना की शक्ति को और सुदृढ़ करने में सफल हुआ है।
INS तुशिल: परिचय और तकनीकी विशेषताएं
INS तुशिल भारतीय नौसेना की Talwar-class frigate श्रृंखला का हिस्सा है। इसे रूस के यंतर शिपयार्ड में बनाया गया है और यह आधुनिक युद्धक्षमता से लैस है।
- हथियार प्रणाली:
जहाज पर BrahMos सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, AK-630 गन, और A-190 गन जैसे अत्याधुनिक हथियार हैं।
इसमें पनडुब्बी रोधी टॉरपीडो और हेलीकॉप्टर संचालन की सुविधा भी है।
- रडार और सेंसर:
यह मल्टी-फंक्शनल Fregat M2EM रडार से लैस है, जो दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाने और ट्रैक करने में सक्षम है।
जहाज का स्टील्थ डिज़ाइन इसे रडार पर नजर आने से बचाता है।
- ऑपरेशनल क्षमता:
यह लंबी दूरी तक गश्त करने और दुश्मन के ठिकानों पर हमला करने में सक्षम है।
भारतीय समुद्री सुरक्षा के लिए इसे विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है।
INS तुशिल के लिए समझौता: भारत-रूस रक्षा साझेदारी
INS तुशिल का निर्माण भारत और रूस के बीच अक्टूबर 2016 में हुए $2.5 बिलियन के रक्षा समझौते का हिस्सा है। इस समझौते में कुल चार फ्रिगेट्स बनाए जाने का प्रावधान था:
दो फ्रिगेट्स रूस में यंतर शिपयार्ड में।
दो भारत में गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) द्वारा, ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी (ToT) के तहत।
इस समझौते के तहत जहाजों को भारतीय नौसेना की विशेष जरूरतों के अनुसार डिजाइन किया गया। इनमें BrahMos मिसाइल प्रणाली और अन्य स्वदेशी हथियारों को शामिल किया गया।
निर्माण में देरी और चुनौतियां
- रूस-यूक्रेन संघर्ष:
रूस और यूक्रेन के बीच 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए गए। इन जहाजों के लिए यूक्रेन से गैस टर्बाइन इंजन की आपूर्ति बाधित हो गई, जिससे निर्माण कार्य में देरी हुई। - ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी:
भारतीय शिपयार्ड को रूसी तकनीक अपनाने और निर्माण प्रक्रिया में सामंजस्य स्थापित करने में समय लगा। - COVID-19 महामारी:
महामारी के कारण उत्पादन प्रक्रिया धीमी हो गई, जिससे समय सीमा पर असर पड़ा।
राजनाथ सिंह की रूस यात्रा और INS तुशिल का महत्व
भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2020 में रूस का दौरा किया। इस यात्रा का उद्देश्य भारत-रूस रक्षा सहयोग को मजबूत करना और INS तुशिल जैसे प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा करना था।
इस दौरान भारत ने रूस से जहाजों की निर्माण प्रक्रिया तेज करने और तकनीकी सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया।
INS तुशिल भारत की “आत्मनिर्भर भारत” नीति का भी हिस्सा है, जो देश को अपनी रक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
INS तुशिल: सामरिक महत्व
- हिंद महासागर में शक्ति संतुलन:
INS तुशिल हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों का जवाब देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। - समुद्री सुरक्षा:
यह भारतीय तटों, आर्थिक क्षेत्रों और समुद्री व्यापारिक मार्गों की रक्षा सुनिश्चित करेगा। - सैन्य क्षमताओं का उन्नयन:
ब्रह्मोस मिसाइल जैसे उन्नत हथियारों से लैस यह जहाज दुश्मन के ठिकानों पर घातक हमला करने में सक्षम है।
INS तुशिल केवल एक युद्धपोत नहीं, बल्कि भारत और रूस के लंबे समय से चले आ रहे रक्षा सहयोग और भारत की बढ़ती सामरिक ताकत का प्रतीक है। इसके निर्माण में हुई देरी और चुनौतियों के बावजूद, इसे सफलतापूर्वक भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। यह जहाज न केवल भारतीय समुद्री सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की सैन्य क्षमताओं को भी प्रदर्शित करता है।
INS तुशिल का आगमन भारतीय नौसेना के भविष्य को और अधिक सशक्त और सुरक्षित बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।