हिमालय की पहाड़ियों में बसे भूटान की तीन सीमाएं भारत से लगती हैं, जबकि इसकी उत्तरी सीमा चीन के साथ है। भारत और चीन जैसे एशिया की महाशक्तियों के बीच स्थित भूटान एक संवैधानिक राजशाही है। यह देश राजनीतिक मामलों से खुद को अलग रखने के लिए जाना जाता है। भारत लंबे समय से भूटान के लिए बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है और इसके विदेश, रक्षा और वित्तीय नीतियों पर भी भारतीय प्रभाव स्पष्ट है।
अमेरिका से दूरी, भारत से निकटता
भारत और चीन के बीच स्थित होने के चलते भूटान पर अमेरिका जैसी महाशक्तियों की निगाहें बनी रहती हैं। लेकिन सवाल यह है कि भूटान ने खुद को अमेरिका और रूस जैसे बड़े देशों के प्रभाव से कैसे दूर रखा? और भारत का भूटान पर इतना प्रभाव क्यों है?
भारत-भूटान के घनिष्ठ संबंध
भूटान ने हमेशा भारत के साथ मित्रवत संबंध बनाए रखे हैं। दोनों देशों के बीच करीब 605 किलोमीटर लंबी सीमा साझा होती है। इन संबंधों की जड़ें 1949 में हुई भारत-भूटान संधि में हैं। इस संधि के तहत भारत ने भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया था, लेकिन भूटान की विदेश नीति पर भारत का प्रभाव सुनिश्चित किया गया। भूटान भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी जनसंख्या भले ही कम हो, लेकिन इसका भौगोलिक क्षेत्र भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से अहम है।
महाशक्तियों से दूरी बनाए रखने की नीति
भूटान ऐसा देश है, जो लंबे समय से अपनी स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए अलग-थलग रहा है। 1971 में भूटान ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता प्राप्त की, लेकिन अधिकांश देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए। इसकी प्रमुख वजह अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भूटान ने 1970 तक किसी भी विदेशी पर्यटक को देश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। यहां तक कि इंटरनेट और टेलीविजन की शुरुआत भी 1999 में हुई। भूटान की सरकार ने अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए विदेशी पर्यटकों की संख्या सीमित रखी है।
भूटान की यह अनूठी नीति इसे अन्य देशों से अलग बनाती है और इसे महाशक्तियों के प्रभाव से बचाए रखती है।