ओडिशा के मयूरभंज जिले के उदड़ा प्रखंड के जामोड़िया गांव निवासी 44 वर्षीय महेश्वर सोरेन को उनकी संताली नाटक “सेचड सावंता रेन अंडा मनमी” के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
फार्मेसी ऑफिसर से साहित्यकार तक का सफर
महेश्वर सोरेन वर्तमान में कटक के जगन्नाथपुर स्वास्थ्य केंद्र में फार्मेसी ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने 2009 में इस पद पर अपनी सेवा शुरू की थी। अब तक उनकी तीन प्रमुख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं:
सिकारिया (2015)
काराम बिनती (2022)
इसके अतिरिक्त, उनकी कई अन्य कृतियां जैसे काराम बिनती, सोहराय बिनती और जोमसिम बिनती जल्द ही प्रकाशित होने वाली हैं।
संताली सिनेमा के निर्माता और निर्देशक
साहित्य के साथ-साथ महेश्वर सोरेन का संताली सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने दो चर्चित संताली फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया है:
दुलाड़ माया (2010)
धोरोम दोरबार (2012)
स्कूली दिनों से साहित्य के प्रति लगाव
महेश्वर सोरेन ने साहित्य सृजन की शुरुआत नौवीं कक्षा में की थी। शुरुआती दौर में उन्होंने नाटक और कहानियां लिखीं, बाद में कविताएं भी रचने लगे। समाज के बुजुर्गों से संवाद और सामाजिक बदलावों पर चर्चा ने उनके लेखन को प्रेरित किया। नौकरी के बावजूद वे समय निकालकर संताली नाटक, कविता और फिल्मों की पटकथाएं लिखते हैं।
पारिवारिक सहयोग और प्रेरणा
महेश्वर की पत्नी निरूपमा हांसदा सोरेन कटक के एससीबी अस्पताल में नर्सिंग ऑफिसर हैं। निरूपमा भी संताली साहित्य में रुचि रखती हैं और महेश्वर को प्रोत्साहित करती हैं। महेश्वर अक्सर साहित्यिक गोष्ठियों और लेखकों के सम्मेलनों में अपनी पत्नी के साथ शामिल होते हैं। उनके पिता दिवंगत लालमोहन सोरेन किसान थे, जबकि माता बाल्ही सोरेन गृहिणी थीं। उनका एक बेटा जीतलाल सोरेन है, जो तीसरी कक्षा में पढ़ता है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार
यह पुरस्कार भारतीय भाषाओं के लेखकों को उनकी उत्कृष्ट कृतियों के लिए दिया जाता है। 2018 से 2022 के बीच प्रकाशित पुस्तकों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। विजेताओं को 8 मार्च 2025 को आयोजित समारोह में एक लाख रुपये नकद, एक उत्कीर्ण ताम्रफलक और शॉल के साथ सम्मानित किया जाएगा।