सरना कोड लागू करने की मांग को लेकर शनिवार को भारत बंद रखा गया था। भारत बंद केंद्रीय सरना समिति, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद एवं आदिवासी सेंगेल अभियान आदि संगठनों के द्वारा बुलाई गयी थी।
भारत बंद के तहत झारखंड के रांची, हजारीबाग, लोहरदगा, खूंटी समेत सात राज्यों में रेल-रोड चक्का जाम किया गया.
झारखंड के कई जिलों में रेल-रोड चक्का जाम
रांची के कोकर में केंद्रीय सरना समिति के महासचिव संजय तिर्की के नेतृत्व में सड़क जाम किया गया. हजारीबाग में सरना समिति हजारीबाग के अध्यक्ष महेंद्र बेक के नेतृत्व में आई लव यू चौक जाम किया गया. लोहरदगा जिले में जिला सरना समिति लोहरदगा के अध्यक्ष चैतू उरांव के नेतृत्व में लोहरदगा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोकी गयी एवं कचहरी रोड में मुख्य चौक पर सड़क जाम किया गया.
2024 के चुनाव से पहले लागू हो सरना कोड
केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने भारत बंद को सफल बताया. उन्होंने कहा कि पूरे देश में आदिवासी सरना कोड की मांग को लेकर सड़क पर उतरे और रेल-रोड चक्का जाम कर सरना कोड लागू करो का नारा बुलंद कर रहे थे. उन्होंने कहा कि 2024 के चुनाव से पहले यदि केंद्र सरकार सरकार सरना कोड लागू नहीं करती है तो आदिवासी केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. केंद्रीय सरना समिति के उपाध्यक्ष प्रमोद एक्का ने कहा कि सरना कोड नहीं रहने से जबरन आदिवासी को हिंदू एवं ईसाई बनाया जा रहा है. सरना कोड लागू होने से हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध अपने आप डीलिस्टिंग हो जाएंगे.
क्या है आदिवासी धर्मकोड का इतिहास
ब्रिटिश भारत के जनगणना में 1871 से 1940 तक आदिवासियों के लिए अलग धर्मकोड के रूप में लिखा जाता रहा है, जिसमें 1871 में Aborigines, 1881 व 1891 में Aboriginal, 1901, 1911 व 1921 में Animist, 1931 में Tribal Religion, 1941 में Tribes तथा 1951 में Schedule Tribe.
बता दें कि वर्ष 2021 में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड के विधानसभा में सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित किया था. इसके अलावा हार्वड विश्वविद्यालय के एक कॉफ्रेंस में यहां तक कह दिया था कि “आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे, न हैं, इसमें कोई कंफ्युजन नहीं है. हमारा सबकुछ अलग है, इसी वजह से हम आदिवासी में गिने जाते हैं. हम प्रकृति पूजक है.”
इसके अलावा राजस्थान विधानसभा में डूंगरपुर विधायक गणेश घोघरा ने आदिवासी 9 मार्च 2021 को आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग करते हुए कहा था कि हमारा आदिवासी धर्म अलग है, हमारी संस्कृति, परंपरा व रीति रिवाज अलग है, हम प्रकृति को पूजते हैं. हिंदू के नाम पर हमारा शोषण हो रहा है, हमारा आदिवासी धर्म कोड अलग से दर्शाया जाए.
वहीं 11 अगस्त 2021 को राजमहल सांसद विजय हांसदा ने लोकसभा में सभी आदिवासियों को मिलाकर एक युनिक धर्मकोड की बनाने की मांग की थी, जिसके जवाब में कहा गया था कि यह संभव नहीं है, क्योंकि अलग-अलग राज्यों में आदिवासी अपने-अपने धर्मकोड की मांग कर रहें हैं.
इसके बाद पश्चिम बंगाल विधानसभा में टीएमसी के द्वारा 17 फरवरी को आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रस्ताव पास किया गया.