कौन थे शहीद वीर बुधु भगत, जिन्होंने अंग्रेजों को चटाई थी धूल?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों और साहूकारों के अन्याय के विरुद्ध कई आदिवासी आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में हुआ ऐतिहासिक लरका आंदोलन विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान छोटानागपुर के आदिवासी इलाकों में आदिवासियों पर अत्याचारों की अति हो चुकी थी, जिसके खिलाफ मुंडा, उरांव सहित कई आदिवासी समुदायों ने विद्रोह किया। इन क्रांतिकारियों में एक प्रमुख नाम था वीर शहीद बुधु भगत, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया।

बुधु भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 को वर्तमान झारखंड के रांची जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों को देखा और महसूस किया, जिसने उनके मन में विद्रोह की भावना जगा दी। वे अंग्रेजों की कूटनीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष और योजनाएं बनाते रहे। बुधु भगत को झारखंड (तत्कालीन बंगाल) के उन स्वतंत्रता सेनानियों में गिना जाता है, जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता की जड़ों को हिलाकर रख दिया था।

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बुधु भगत के नेतृत्व में आदिवासियों ने तीर, धनुष, तलवार और कुल्हाड़ी जैसे पारंपरिक हथियारों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने न केवल अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को मुक्त कराया, बल्कि अपने साथियों को गुरिल्ला युद्ध की रणनीतियों में प्रशिक्षित भी किया। बुधु भगत छोटानागपुर के प्रथम क्रांतिकारी थे, जिनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेजों ने 1000 रुपये के इनाम की घोषणा की, लेकिन लालच में आकर किसी ने भी उन्हें पकड़वाने में अंग्रेजों का साथ नहीं दिया।

साल 1828-32 के कोल विद्रोह में बुधु भगत का नेतृत्व और साहस सामने आया। उनके नेतृत्व में हुए विद्रोह से परेशान अंग्रेजों ने उनकी गिरफ्तारी के प्रयास तेज कर दिए। अंततः 13 फरवरी 1832 को कैप्टन एम.पी. के नेतृत्व में अंग्रेजों ने सिलागांई गांव में बुधु भगत और उनके साथियों को घेर लिया। बुधु भगत निर्दोष ग्रामीणों की जान बचाने के लिए आत्मसमर्पण करना चाहते थे, लेकिन उनके साथियों ने उन्हें ऐसा करने से रोका और अंग्रेजों का मुकाबला किया। कैप्टन एम.पी. ने अंधाधुंध गोलियां चलवाईं, जिसमें बुधु भगत, उनके बेटे हलधर और गिरधर सहित 300 से अधिक ग्रामीण शहीद हो गए।

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बुधु भगत द्वारा संचालित आंदोलन ‘लरका आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। उनकी शहादत ने झारखंड के आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और उनकी वीरता हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई।

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