झारखंड सरकार ने ₹1.45 लाख करोड़ का बजट पेश किया है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, बुनियादी ढांचे और महिला सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देने का दावा किया गया है। सरकार का कहना है कि यह बजट समावेशी विकास को गति देगा, लेकिन क्या यह वाकई राज्य की जमीनी हकीकत से मेल खाता है?
1. सामाजिक क्षेत्र पर बड़ा बजट, लेकिन क्या होगा असर?
सरकार ने ₹62,844 करोड़ सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए आवंटित किए हैं। लेकिन झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को देखें तो सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और संसाधनों की भारी कमी है। गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं अब भी बदहाल हैं, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) खुद बीमार हालत में हैं।
शिक्षा क्षेत्र में भी चुनौतियां बरकरार हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी, बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी बड़ी समस्याएं बनी हुई हैं। क्या इस बजट से इन बुनियादी समस्याओं का समाधान होगा, या यह सिर्फ कागजी वादों तक सीमित रहेगा?
2. महिला कल्याण योजनाएं: दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं?
महिला सशक्तिकरण के लिए ₹13,363 करोड़ का आवंटन किया गया है, लेकिन यह राशि किन योजनाओं पर खर्च होगी, इसका स्पष्ट खाका बजट में नहीं दिखता। झारखंड में महिलाओं की सुरक्षा, रोजगार और शिक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दे हैं। अगर सरकार वास्तव में महिलाओं को सशक्त बनाना चाहती है, तो उसे सिर्फ अनुदान या आर्थिक सहायता के बजाय व्यवहारिक नीतियों पर काम करना होगा।
3. कृषि और ग्रामीण विकास: किसानों के लिए राहत या सिर्फ चुनावी जुमले?
झारखंड की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है, लेकिन किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। बारिश पर निर्भर कृषि, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की अनिश्चितता और बाजार तक पहुंच की समस्या किसानों को कर्ज और गरीबी के चक्र में फंसा देती है। इस बजट में किसानों के लिए कोई ठोस समाधान नजर नहीं आता। क्या यह बजट किसानों की समस्याओं का समाधान कर पाएगा, या फिर यह सिर्फ एक औपचारिकता मात्र है?
4. बुनियादी ढांचा और नवाचार: हकीकत या हवाई सपने?
बजट में बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान देने की बात कही गई है, लेकिन झारखंड में सड़क, बिजली, पानी और परिवहन सेवाओं की हालत आज भी खराब है। कई पिछड़े इलाकों में अब भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सरकार ने नवाचार और उद्योगों के विकास की बात की है, लेकिन झारखंड में उद्योगों की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है। बेरोजगारी बढ़ रही है और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं।
5. वित्तीय घाटा और आर्थिक प्रबंधन: विकास या कर्ज का बोझ?
बजट में ₹11,253 करोड़ का वित्तीय घाटा प्रस्तावित है। सवाल यह उठता है कि सरकार इस घाटे को कैसे पूरा करेगी? क्या यह कर्ज लेकर किया जाएगा, जिससे राज्य पर और आर्थिक बोझ बढ़ेगा? झारखंड की अर्थव्यवस्था पहले ही कई वित्तीय चुनौतियों से जूझ रही है, ऐसे में क्या यह बजट वास्तव में आर्थिक स्थिरता ला पाएगा, या सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी है?
वादों की हकीकत कब बदलेगी?
झारखंड बजट 2025-26 में बड़े-बड़े दावे किए गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये दावे जमीन पर उतरेंगे? झारखंड अब भी गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं और कमजोर बुनियादी ढांचे की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में यह बजट कितनी हकीकत और कितने दिखावे पर आधारित है, यह समय ही बताएगा।
अगर सरकार वास्तव में राज्य के विकास के प्रति गंभीर है, तो उसे बजट के क्रियान्वयन पर अधिक ध्यान देना होगा, सिर्फ आंकड़ों से खेलना काफी नहीं होगा। क्या यह बजट झारखंड के लोगों की जिंदगी बदल पाएगा?