भारत के आदिवासी समुदायों की संस्कृति और परंपराएँ उनकी प्रकृति-केन्द्रित जीवनशैली को दर्शाती हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है बाहा पर्व, जिसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। यह त्योहार झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और छत्तीसगढ़ के संथाल, मुंडा, हो, और उरांव समुदायों द्वारा मनाया जाता है। बाहा पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने और सामाजिक एकता को मजबूत करने का अवसर भी है।
बाहा पर्व का महत्व
बाहा पर्व आदिवासी समाज के प्रकृति-पूजक दृष्टिकोण को दर्शाता है। इस पर्व के माध्यम से वे अपनी भूमि, जल, जंगल और पेड़-पौधों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं। बाहा का शाब्दिक अर्थ “फूल” होता है, इसलिए इसे फूलों का त्योहार भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से वसंत ऋतु में मनाया जाता है, जब पेड़ों पर नए फूल खिलते हैं और प्रकृति अपने नए रूप में दिखती है।
1. प्रकृति और धर्म का संगम
आदिवासी समुदायों में प्रकृति को देवतुल्य माना जाता है। बाहा पर्व के दौरान साल (शाल) वृक्ष के फूलों को विशेष महत्व दिया जाता है। इन फूलों को गाँव के देवताओं और पूर्वजों को अर्पित किया जाता है।
2. सामाजिक और सांस्कृतिक एकता
बाहा पर्व केवल पूजा तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह सामुदायिक एकता और सामाजिक बंधन को भी मजबूत करता है। इस अवसर पर गाँव के सभी लोग एक साथ मिलकर अनुष्ठान करते हैं, पारंपरिक गीत गाते हैं और सामूहिक नृत्य करते हैं।
3. प्रकृति संरक्षण का संदेश
आदिवासी समुदायों की मान्यता है कि यदि वे प्रकृति का सम्मान करेंगे, तो प्रकृति भी उन्हें आशीर्वाद देगी। बाहा पर्व के दौरान वृक्षों की कटाई पर रोक होती है और लोगों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहने की सीख दी जाती है।
बाहा पर्व का आयोजन और परंपराएँ
बाहा पर्व की शुरुआत ग्राम के प्रधान (पाहन) द्वारा साल वृक्ष से फूल लाने और उसे ग्राम देवता को अर्पित करने से होती है। इसके बाद गाँव के सभी घरों में इन पवित्र फूलों को वितरित किया जाता है।
1. पूजा विधि
- ग्राम पाहन साल वृक्ष के फूलों को तोड़कर गाँव के देवताओं को अर्पित करता है।
- गाँव के लोग अपने घरों में साल फूल लेकर आते हैं और उसकी पूजा करते हैं।
- इस अवसर पर विशेष पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
2. सामूहिक नृत्य और गीत
बाहा पर्व के दौरान गाँव के सभी लोग पारंपरिक वेशभूषा में सजते हैं और समूह में नृत्य करते हैं। ढोल, मांदर और बांसुरी की धुन पर नृत्य करते हुए लोग अपनी खुशी व्यक्त करते हैं।
3. हडिया का सेवन
इस अवसर पर हडिया (चावल से बनी पारंपरिक शराब) का सेवन किया जाता है, जो आदिवासी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सामाजिक मेलजोल और आनंद का प्रतीक होता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बाहा पर्व
आज के बदलते समय में बाहा पर्व आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालाँकि, औद्योगीकरण, शहरीकरण और बाहरी प्रभावों के कारण इस पर्व के स्वरूप में कुछ बदलाव आए हैं, लेकिन यह अभी भी आदिवासी समाज के मूल्यों और विश्वासों का प्रतीक बना हुआ है।
बाहा पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के बीच गहरे संबंध को दर्शाने वाला पर्व है। यह त्योहार हमें पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का संदेश देता है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट का सामना कर रही है, बाहा पर्व की परंपराएँ हमें प्रकृति के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों की याद दिलाती हैं।