केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड (सीयूजे), मनातू कैंपस में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय “स्वाभिमानी बिरसा–2025” कार्यक्रम का आज औपचारिक उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत कुलसचिव श्री के. कोसल राव और नैक अध्यक्ष प्रो. के.बी. पंडा द्वारा भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ की गई।
दोनों विशिष्ट अधिकारियों ने बिरसा मुंडा को झारखंड की धरोहर बताते हुए युवाओं से राज्य के समग्र विकास में योगदान देने का आह्वान किया।
प्रभात फेरी और अकादमिक गतिविधियों से हुआ प्रथम दिवस की शुरुआत
प्रातःकालीन कार्यक्रम के अंतर्गत स्कूल स्टाइल बिल्डिंग में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि दी गई, जिसके बाद कुलसचिव श्री के. कोसल राव ने प्रभात फेरी का नेतृत्व किया। उनके साथ प्रो. के.बी. पंडा, वित्त अधिकारी श्री पी.के. पंडा, नोडल अधिकारी डॉ. अनुराग लिंडा, संयोजक डॉ. हृषिकेश महतो, विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी शामिल हुए।
विश्वविद्यालय सभागार में आयोजित अकादमिक मीट में “बिरसा मुंडा के जीवन और विरासत” विषय पर आमंत्रित व्याख्यान हुआ। डॉ. रागिनी कुमारी और प्रो. सुचेता सेन चौधरी ने बिरसा मुंडा की पर्यावरणीय दृष्टि, जल संरक्षण, स्थानीय खाद्य प्रणालियों और झारखंड के सतत विकास पर अपने विचार साझा किए।
कार्यक्रम का संचालन शैक्षणिक समिति—डॉ. रजनिकांत पांडेय, डॉ. भास्कर सिंह, डॉ. सचिन कुमार और डॉ. एम. रामकृष्णा—द्वारा किया गया।
विभागाध्यक्ष प्रो. रविन्द्रनाथ सरमा ने युवाओं की जिम्मेदारी पर जोर देते हुए बिरसा मुंडा के स्वप्न को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रजनिकांत पांडेय ने किया।
लिटरेरी मीट और बिरसाइत आध्यात्मिक सत्र ने उत्सव में जोड़ा नया आयाम
साहित्यिक सत्र में पद्मश्री चामी मुर्मू, वंदना टेटे, सुषमा असुर, डॉ. दमयंती सिंकू, प्रो. बी.पी. सिंहा और दुलारी सुमन ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
वंदना टेटे ने कहा कि आदिवासी साहित्य की परंपरा 1840 से निरंतर चली आ रही है और आदिवासियत को समझने के लिए इसे पढ़ना आवश्यक है।
सुषमा असुर ने बिरसाइत परंपरा को गानों के माध्यम से प्रस्तुत किया और ‘जोहार—आम के डोबो डोबो’ गीत के साथ सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पद्मश्री चामी मुर्मू ने धरती आबा को आदिवासी अस्मिता का प्रतीक बताया और पेड़-पौधों से आदिवासी जीवन के गहरे संबंध को साझा किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. रत्नेश विश्वकसेन ने की, संचालन डॉ. जगदीश कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रवि रंजन ने दिया। संयोजक डॉ. कैल्सेंग वांग्मो ने बताया कि बिरसायत पर आयोजित सत्र में दुलारी सुमन ने सभी को इसकी आध्यात्मिक परंपरा से परिचित कराया।
स्वाभिमानी बिरसा ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल का सफल आयोजन
फिल्म फेस्टिवल और फोटोग्राफी प्रदर्शनी “SBTFF&PE–2025” कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रहा।
मेघनाथ, निरंजन कुजूर, सरल मुर्मू, स्नेहा मुंडारी, अंकुश कसेरा, मानसिंह बास्के और संजय टुडू की फिल्मों का विशेष प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शित फिल्मों में मुंडारी सृष्टिकथा, खंडवा—बर्थ प्लेस ऑफ धरती आबा, सारी सरजोम, व्हेयर डज द ट्रीज़ गो आदि शामिल थीं।
“जनजातीय पहचान से सिनेमा तक: कहानियों को विमर्श में बदलना” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार मेघनाथ, फिल्मकार निरंजन कुजूर, फिल्म शोधकर्ता स्नेहा मुंडारी, फिल्म निर्माता सेरल मुर्मू ने भाग लिया।
मॉडरेटर डॉ. नील कुसुम कुल्लू ने चर्चा का संचालन किया।
फिल्मकारों ने जोर देकर कहा कि जनजातीय कहानियों का सिनेमा में स्थान मिलना आवश्यक है ताकि उनकी वास्तविकता और ऐतिहासिक गौरव व्यापक समाज तक पहुँचे।
देर शाम रंग-बिरंगी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने मोहा मन
कोया कुम्मू डांस ग्रुप (आंध्र प्रदेश) के बफ़ैलो डांस, संकल्प परफ़ॉर्मेंस (राकेश नायक), सोनाली ग्रुप का डोमकच नृत्य, तथा सीयूजे के परफॉर्मिंग आर्ट्स विभाग की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
आर्ट–क्राफ्ट, फूड और बुक स्टाल बने केंद्र बिंदु
आर्ट–क्राफ्ट स्टॉल, पुस्तक प्रदर्शनी और फूड स्टॉल ने आगंतुकों का खास ध्यान आकर्षित किया।
बुक एग्जिबिशन में झारखंड की प्रमुख जनजातियों—कुरुख, मुंडारी, हो, संथाली, खड़िया—से संबंधित पुस्तकों के साथ-साथ नगपुरी साहित्य और जनजातीय धरोहर पर आधारित महत्वपूर्ण प्रकाशन प्रदर्शित किए गए।
श्री साई पब्लिकेशन द्वारा जनजातीय अध्ययन, पर्यावरण, स्वतंत्रता सेनानी, महिला अधिकार, संस्कृति, भूगोल, अनुसंधान पद्धति आदि पर पुस्तकों का विस्तृत संग्रह प्रस्तुत किया गया।
दूसरे दिन सम्मान समारोह और सांस्कृतिक कार्यक्रम
कार्यक्रम के दूसरे दिन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. क्षिति भूषण दास की उपस्थिति में कई विशिष्ट प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा। साथ ही, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला भी जारी रहेगी।





