चौथा जयपाल-जूलियस-हन्ना साहित्य पुरस्कार समारोह रविवार को रांची के स्थानीय टी.आर.आई. सभागार में पारंपरिक पुरखा गीतों की गूंज के साथ आरंभ हुआ। समारोह में मंच पर मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर स्नेहलता नेगी उपस्थित रहीं।
समारोह में इस वर्ष के तीनों पुरस्कार विजेता काशराय कुदादा (जमशेदपुर), सोनी रूमचू (अरुणाचल प्रदेश) और मनोज मुरमू (साहेबगंज, झारखंड) को सम्मानित किया गया।
अश्विनी पंकज ने अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया, जबकि वंदना टेटे ने पुरस्कार प्राप्त रचनाकारों का परिचय कराया। कार्यक्रम का संचालन प्रीति रंजना डुंगडुंग ने किया।
कार्यक्रम का समापन विभिन्न आदिवासी भाषाओं की कविताओं और गीतों की प्रस्तुति से हुआ।
पुरस्कृत विजेताओं का परिचय
लेखक परिचय : सोनी रूमचू (ओली)
पुरस्कृत रचना: “वह केवल पेड़ नहीं था” (हिंदी कविता संग्रह)

सोनी रूमचू ओली नोक्ते आदिवासी समुदाय से संबंध रखते हैं और अरुणाचल प्रदेश के निवासी हैं। उनका जन्म 6 सितम्बर 1997 को ईस्ट कामेंग जिले के शेरपा गांव में हुआ। उनके पिता का नाम तेमेंग रूमचू और माता का नाम रीना रूमचू है।
उनका पैतृक गांव लाजु (जिला तिरप) है, जहाँ आज भी उनकी सांस्कृतिक जड़ें और परंपराएँ जीवित हैं। सोनी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अरुणाचल प्रदेश में प्राप्त की और आगे की उच्च शिक्षा राजीव गांधी विश्वविद्यालय, ईटानगर से पूरी की, जहाँ से उन्होंने हिंदी साहित्य में एम.ए. की उपाधि अर्जित की। वर्तमान में वे इसी विश्वविद्यालय में पीएचडी शोधार्थी हैं।
सोनी रूमचू एक उभरते हुए आदिवासी कवि और शोधकर्ता हैं, जिनकी रचनाएँ प्रकृति, समुदाय, पहचान और सांस्कृतिक संघर्ष जैसे विषयों को केंद्र में रखती हैं। वे अपने लेखन के माध्यम से आदिवासी अनुभवों और मौखिक परंपराओं को समकालीन हिंदी साहित्य में एक सशक्त स्थान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।
नोक्ते समुदाय का गौरवशाली इतिहास रहा है — यह वही समुदाय है जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया और चाय की जानकारी सबसे पहले साझा करने वाले समुदायों में शामिल रहा। सोनी रूमचू अपनी कविताओं में इसी विरासत और प्रतिरोध की भावना को जीवंत रखते हैं।
लेखक परिचय : काशराय कुदादा
पुरस्कृत रचना: “दुपुब दिषुम” (हो भाषा निबंध संग्रह)

काशराय कुदादा हो भाषा के प्रमुख साहित्यकार, अनुवादक और संपादक हैं, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से कोल्हान क्षेत्र की भाषा, संस्कृति और समाज के गहरे आयामों को अभिव्यक्ति दी है। उनका जन्म 4 मई 1977 को झारखंड राज्य के पूर्वी सिंहभूम जिले के सरजमता प्रखंड स्थित जानेगोड़ा गांव में हुआ। उनके पिता का नाम बहादुर कुदादा और माता का नाम सोम्बाड़ी कुदादा है। वे अपने माता-पिता की पाँचवीं संतान हैं। उनकी जीवनसंगिनी का नाम पूनम पांडरा है।
काशराय कुदादा ने हो भाषा में साहित्यिक लेखन और अनुवाद को नई दिशा दी है। उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और वे साहित्य अकादमी के अनेक साहित्यिक पाठ्यक्रमों और चर्चाओं में आमंत्रित किए जा चुके हैं।
उनका कविता संग्रह “मुचुकुदी और द” विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है। उन्होंने लंबे समय तक हो भाषा के समाचार पत्र “कोल्हान सकम” का संपादन और प्रकाशन किया, जिसने स्थानीय साहित्यिक अभिव्यक्ति को एक नया मंच प्रदान किया।
हो भाषा के डिजिटल विकास में भी कुदादा का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्होंने “कोल्हान ई-बुक” मोबाइल ऐप विकसित की, जो पाठकों, लेखकों और प्रकाशकों को एक साझा मंच पर जोड़ती है। साथ ही, उन्होंने “दुपूब हुदा” नामक वेबसाइट की भी स्थापना की, जो हो भाषा के साहित्यकारों और उनकी रचनाओं को संग्रहीत और प्रसारित करने का कार्य करती है।
हो भाषा और साहित्य के संवर्धन के लिए उन्होंने “ओत कोल गुरु लाको बोदरा सम्मान” की भी शुरुआत की, जो हो भाषा के लेखकों को सम्मानित करने की एक विशिष्ट पहल है।
उनकी पुरस्कृत पांडुलिपि “दुपुब दिषुम” एक निबंध संग्रह है, जिसमें भाषा, संस्कृति, समाज और पहचान के विविध पहलुओं पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया गया है। यह कृति हो समाज के समकालीन विमर्श और बौद्धिक परंपरा को एक नई दृष्टि प्रदान करती है।
लेखक परिचय : मनोज मुरमू
पुरस्कृत रचना: “मानवा जियोन” (संताली कविता संग्रह)

मनोज मुरमू झारखंड के उभरते हुए युवा साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से संताली समाज की संवेदनाओं, संघर्षों और स्वप्नों को एक नई भाषा दी है। उनका जन्म 10 फरवरी 1998 को तलबड़िया, बरहेट (साहेबगंज, झारखंड) में हुआ। उनके पिता का नाम दाऊद मुरमू और माता का नाम मलती हेम्ब्रम है।
वर्तमान में मनोज शिबू सोरेन जनजातीय डिग्री कॉलेज, बोरियों में अध्ययनरत हैं और साथ ही झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत सोशल यूनिट में लोकफील्ड कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं।
स्कूली जीवन से ही उन्हें कविता, कहानी और लेखन का गहरा शौक रहा है। उनकी पहली कविता दैनिक ‘संताल एक्सप्रेस’ (दुमका) में प्रकाशित हुई थी। वर्ष 2021 में आयोजित Tribal Short Story Writing Competition में उनकी कहानी “चेदाक” को द्वितीय पुरस्कार मिला। वहीं 2022 में जिला स्तरीय युवा उत्सव में “मेरे सपनों का भारत 2047” विषय पर लिखे निबंध के लिए उन्हें प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ।
उनकी पुरस्कृत पांडुलिपि “मानवा जियोन” संताली भाषा में रचित और देवनागरी लिपि में प्रकाशित कविता संग्रह है। इस संग्रह की कविताएँ मानव जीवन के विविध आयामों—संघर्ष, संवेदना और आशाओं को गहराई से व्यक्त करती हैं। इनमें संताली जीवन-दृष्टि, जिजीविषा और स्वप्नशीलता का सजीव चित्रण मिलता है।
“मानवा जियोन” के माध्यम से मनोज मुरमू ने न केवल संताली साहित्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है, बल्कि उन्होंने समकालीन आदिवासी युवाओं की आकांक्षाओं, अनुभवों और चिंताओं को कविताओं के रूप में स्वर दिया है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और प्रतिभागी
कार्यक्रम के दौरान आदिवासी सांस्कृतिक समूहों और कवियों ने अपनी पारंपरिक व आधुनिक सृजनशीलता का सुंदर प्रदर्शन किया।
सत्र संचालन: सुम्बरबोः शांति सावैयां
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ:
असुर लूर अखड़ा, नेतरहाट द्वारा दुरङ प्रस्तुति
खड़िया लूर अखड़ा की दुरङ प्रस्तुति
बिरजिया लूर अखड़ा की दुरङ प्रस्तुति
आमंत्रित कवि, गीतकार और गायक:
भिखा असुर (असुर), मोनिका सिंह (भूमिज), सरोज तेलरा (बिरजिया), सुशांति बोयपाई (हो), डॉ. किरण कुल्लू (खड़िया), अमित कुमार (खोरठा), गीता कोया (कुडुख), डॉ. वृंदावन महतो (कुड़मालि), जादु मुण्डा (मुण्डारी), सुषमा केरकेट्टा (नागपुरी), विष्णु चरण सिंह मुण्डा (पंचपरगनिया) और मनोज मुरमू (संताली)।
क्यों दिया जाता है जयपाल-जूलियस-हन्ना साहित्य पुरस्कार
फाउंडेशन की सचिव वंदना टेटे ने कहा—
“हम भारत के 700 से अधिक आदिवासी समुदाय अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में बसे हैं। हमारे पुरखों ने इन इलाकों को न केवल रहने लायक बनाया, बल्कि उन्हें सांस्कृतिक परंपराओं से समृद्ध किया ताकि आने वाली पीढ़ियाँ समुदाय, गोत्र और परिवार की एकता के साथ जी सकें।”
उन्होंने बताया कि पाँच हजार साल पहले आए बाहरी समुदायों और बाद में औपनिवेशिक शासन ने आदिवासी इलाकों, संसाधनों और संस्कृति पर अतिक्रमण किया। यह सिलसिला आज़ादी के बाद भी मुख्यधारा और संस्कृतिकरण के नाम पर जारी रहा, जिसने आदिवासी वाचिक परंपराओं और मौखिक साहित्य को गहरा आघात पहुँचाया।
वंदना टेटे ने कहा—
“संविधान निर्माण के समय जयपाल सिंह मुंडा और जे.जे.एम. निकोल्स राय जैसे हमारे प्रतिनिधियों ने आदिवासी अधिकारों की आवाज़ उठाई, लेकिन उन्हें अनदेखा कर दिया गया। हमें नई संघीय व्यवस्था में ‘अंतिम जन’ बना दिया गया।”
उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्रता के बाद एक भाषा, एक धर्म, और एक संस्कृति थोपने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसके कारण आज आदिवासी समुदाय अपनी मातृभाषा में बोलने, पढ़ने और लिखने के अवसरों से वंचित हैं। राज्य और केंद्र की साहित्य अकादमियों में आदिवासी साहित्य को स्थान नहीं मिलता और न ही इन भाषाओं के लिए कोई प्रकाशन नीति या संस्थान मौजूद हैं।
फाउंडेशन का उद्देश्य और पुरस्कार की शुरुआत
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2022-2032 को आदिवासी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया है। इसके बावजूद भारत सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा पाई है।
औपनिवेशिक भाषाई नीति के खिलाफ सृजनात्मक संघर्ष प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन का प्राथमिक संकल्प है। इसी के तहत 2022 में अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के अवसर पर फाउंडेशन ने “जयपाल-जूलियस-हन्ना साहित्य पुरस्कार” की शुरुआत की। इसका उद्देश्य आदिवासी भाषाओं, हिंदी-अंग्रेज़ी या अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी मौलिक और अप्रकाशित रचनाओं को मंच प्रदान करना है।
पुरस्कार की प्रक्रिया और लाभ
हर वर्ष कविता, कहानी, उपन्यास, सामाजिक-राजनीतिक विमर्श और अन्य विधाओं में आदिवासी लेखकों से पांडुलिपियाँ आमंत्रित की जाती हैं। चयनित तीन सर्वश्रेष्ठ पांडुलिपियों का प्रकाशन किया जाता है।
पुरस्कार में शामिल हैं—
प्रत्येक विजेता की पुस्तक की 50 नि:शुल्क प्रतियाँ
100 प्रतियों की अग्रिम रॉयल्टी
पुस्तक की बिक्री पर वार्षिक 10% रॉयल्टी
अंगवस्त्र, मानपत्र और प्रतीक चिन्ह सहित सम्मान समारोह
अब तक के पुरस्कार विजेता
2022
धरती के अनाम योद्धा (कविता संग्रह) – उज्जवला ज्योति तिग्गा, दिल्ली
डकैत देवसिंग भील के बच्चे (आत्मकथात्मक उपन्यास) – सुनील गायकवाड़, महाराष्ट्र
कोंग्कोंग-फांग्फांग (कहानी संग्रह) – रेमोन ऑग्कू, अरुणाचल प्रदेश
2023
गोमपी गोमुक (आदि-हिंदी द्विभाषी कविता संग्रह) – डॉ. तुनुंग ताबिंग, अरुणाचल प्रदेश
हेम्टू (पावरा-हिंदी द्विभाषी कविता संग्रह) – संतोष पावरा, महाराष्ट्र
सोमरा का दिसुम (बांग्ला से हिंदी अनूदित कहानी संग्रह) – डॉ. पूजा प्रभा एक्का, पश्चिम बंगाल
2024
निरदन (सादरी काव्य संग्रह) – शिखा मिंज
हिरवाल मेटा (गोंडी काव्यकृति) – विनोद मोतीराम आत्राम
सिरजोनरे जीवेदोक (संताजी कविता संग्रह) – आलबिनुस हेम्ब्रम





