झारखंड के चाईबासा में ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति की मौत के बाद कब्र में दफनाने पर विवाद खड़ा हो गया. आदिवास समाज के लोगों ने दफनाने का विरोध किया. इसके बाद ईसाई धर्म के लोगों ने अपनी जमीन में उसे दफन किया। बताया जा रहा है कि सामूदायिक कब्र में दफन करने के खिलाफ पूरा समाज था.
मामला झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम के मंझगांव थाना क्षेत्र के इचाकुटी गांव की है. मृतक पूर्व में गांव का दियुरी (पुजारी) था. जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था.
हो समाज के ग्रामीणों ने ईसाई धर्म में परिवर्तित ईचाकुटी ग्राम के पूर्व दियुरी 75 वर्षीय रमेश चंद्र पिंगुवा का शव ससन दिरी (श्मशान) में दफनाने पर गुरुवार को रोक लगा दी. ग्रामीणों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रमेश चंद्र पिंगुवा का बुधवार को सामान्य मृत्यु हुई थी.
वे गांव में पहले दियुरी रहकर ‘हो’ समाज का पर्व त्योहार, धार्मिक कार्यक्रम एवं अन्य सांस्कृतिक तथा पारंपरिक कार्यक्रमों का बोंगा- बुरु जैसे प्रमुख रीति-रिवाज के अगुवा थे. उन्होंने अपनी बहू एवं पोती के माध्यम से बीमारी ठीक होने के प्रलोभन में सरना धर्म को छोड़कर पांच वर्ष पूर्व ईसाई धर्म अपनाया था.
बेटा-बेटी को बनाना चाहता था ईसाई
रमेश चंद्र पिंगुआ ईसाई धर्म अपनाने के बाद बेटा- बेटी को ईसाई बनाना चाहता था, इसके लिए वह अपने बेटा-बेटी को भी ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रलोभन देता रहा,
लेकिन उसका बड़ा बेटा पिता से अलग हो गया और हो समाज की रीति-रिवाज के अनुसार प्राकृतिक आस्था के साथ सरना धर्म में ही रहे. गांव के दियुरी के रूप में आज तक कार्यभार संभाले हुए हैं.
जब रमेश चंद्र पिंगुवा की मृत्यु होने की खबर गांव में फैली तो सभी ग्रामीण एकजुट हो गए. इसकी सूचना ग्रामीण चंद्रकांत पिंगुवा को दी गई और गांव में हो समाज के अनुसार ससन दिरी स्थल में शव दफनाने का ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया. उनका शव दफनाने हेतु गांव के लोग मदद करने के लिए आगे नहीं आये और इसकी सूचना आदिवासी हो समाज युवा महासभा मझगांव प्रखंड कमिटी और जगन्नाथपुर अनुमंडल कमिटी को दी गई. समाज के हित में आदिवासी हो समाज युवा महासभा एवं मानकी-मुंडा संघ ने ग्रामीणों के फैसले का समर्थन दिया.
सर्वप्रथम शव को दफनाने के लिए ससन दिरी स्थल की जमीन पर मृतक का पोता तथा उसके ईसाई रिश्तेदारों ने कब्र खोदना शुरू किया. शव दफनाने के लिए पांच फीट के आस-पास कब्र खोदकर अंतिम-संस्कार की तैयारी चल रही थी. इसी क्रम में ग्रामीणों ने विरोध किया और उस खोदे गये कब्र को पुनः समतल करवा दिया.
इसके बाद दूसरी जगह अपनी जमीन में दफनाने के लिए सामाजिक दबाव डाला गया. दूसरी जगह में ईसाई धर्मावलंबियों ने कब्र खोदा. वहां एक स्वर में ग्रामीणों ने हो समाज की रीति-रिवाज के अनुसार नहीं दफनाने की कड़ी चेतावनी दी. आक्रोशित ग्रामीण चिल्लाकर कहने लगे कि हो समाज की रीति-रिवाज को किसी तरह छेड़ने का प्रयास न करें. अन्ततः ग्रामीणों के विरोध और सामाजिक एकता के भयंकर माहौल को देखकर ईसाई धर्म मानने वालों ने ईसाई रीति-रिवाज से दफना दिया.