1 जनवरी को जश्न नहीं, शोक मनाते हैं झारखंड के आदिवासी! जानिए क्यों?

भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अबतक आदिवासियों ने कई नरसंहार झेले हैं. राजस्थान का मानगढ़ धाम नरसंहार हो, गुजरात का पाल-दढ़वाव नरसंहार, या फिर झारखंड का सेरेंगसिया नरसंहार. इनमें हजारों की संख्या में आदिवासी मारे गए, जिनकी यादें अब तक आदिवासी जेहन में मौजूद हैं. झारखंड के खरसांवा में नए साल के दिन हुआ ऐसा ही एक नरसंहार हुआ था. इसकी तुलना प्रसिद्ध जालियांवाला बाग हत्याकांड से की जाती रही है. लेकिन मुख्य धारा की समाज के खरसावां गोली कांड ने कभी इतना उद्वेलित नहीं किया. आज 74 सालों बाद उस घटना पर एक गंभीर चर्चा आवश्यकता है.

आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड

झारखंड के खरसावां हाट में 1 जनवरी 1948 को लगभग 50 हजार से अधिक आदिवासियों की भीड़ पर ओड़िशा मिलिटरी पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिसमें कई आदिवासी मारे गये थे. आदिवासी खरसावां को ओड़िशा में विलय किये जाने का विरोध कर रहे थे, आदिवासी खरसावाँ को बिहार में शामिल नहीं करना चाह रहे थे बल्कि अलग राज्य की मांग कर रहे थे. आजाद भारत का यह सबसे बड़ा गोलीकांड माना जाता है. खरसांवा क्षेत्र झारखंड में सरायकेला खरसांवा जिले में है.

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अलग राज्य की मांग को लेकर किया जा रहा था मंथन

प्रत्यक्षदर्शियों और पुराने बुजुर्गो की मानें तो 1 जनवरी 1948 को खरसावाँ हाट मैदान में हुए गोलीकांड स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक काला अध्याय बन गया. स्वतंत्रता के बाद जब राज्यों का विलय जारी था. तो बिहार व उड़ीसा में सरायकेला व खरसावां सहित कुछ अन्य क्षेत्रों के विलय को लेकर विरोधाभास व मंथन जारी था. ऐसे समय क्षेत्र के आदिवासी अपने को स्वतंत्र राज्य या प्रदेश में रखने की इच्छा जाहिर कर रहे थे. इसी पर आंदोलन को लेकर खरसावां हाट मैदान पर विशाल आम सभा 1 जनवरी को रखी गई थी. तत्कालीन नेता जयपाल सिंह सही समय पर सभा स्थल पर नहीं पहुंच पाए जिससे भीड़ तितर-बितर हो गई थी.

15 मिनट तक चली थी गोलियां

बगल में ही खरसावां राजमहल की सुरक्षा में लगी उड़ीसा सरकार की फौज ने उन्हें रोकने का प्रयास किया. भाषाई नासमझी, संवादहीनता या सशस्त्र बलों की धैर्यहीनता, मामला कुछ भी रहा हो आपसी विवाद बढ़ता गया. पुलिस ने गोलियां चलानी शुरू कर दी. इसमें कितने लोग मारे गए, कितने घायल हुए, इसका वास्तविक रिकार्ड आज तक नहीं मिल पाया है. पुलिस ने भीड़ को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं. 15 मिनट में कईं राउंड गोलियां चलाई गईं.

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और देखते ही देखते कुआं लाशों से पट गया

गोली लगने पर वहीं सैकड़ों आदिवासियों ने दम तोड़ दिया. खरसावाँ के इस ऐतिहासिक मैदान में एक कुआं था,भागने का कोई रास्ता नहीं था. कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया. खरसांवा गोलीकांड के बाद जिन शहीदों के लाशों को उनके परिजन लेने नहीं आये, उनके लाशों को उस कुआं में डाला गया और कुआं का मुंह बंद कर दिया गया. जहां पर शहीद स्मारक बनाया गया हैं. इसी स्मारक पर 1 जनवरी पर पुष्प और तेल डालकर शहीदों को श्रदांजलि अर्पित की जाती है.

यह आदिवासियों के द्वारा अलग राज्य झारखंड मांगने की सबसे बड़ी कुर्बानी है. जब आजाद भारत में आदिवासियों की चीखें बंद हो रही थी और पूरा देश खामोश था. बदस्तुर अब भी जारी है. देश को आजाद भारत की जालियांवाला बाग के बारें में कोई जानकारी नही है.

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